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क्या अभिमन्यु सच में शक्तिशाली था या किसी वरदान के बल पर विजयी हुआ

अभिमन्यु किसके पुत्र थे ? इस रहस्य को आप भी अवश्य जानना चाहेंगे
महाभारत के आदि पर्व अध्याय 67 (सड़सठ) में वैशम्पायन जी जनमेजय को महाभारत काल में देवताओं और दैत्यों के जो अंशवतार हुए थे उनका वर्णन करते हैं ,वहाँ अभिमन्यु के बारे में बताते हुए वैशम्पायन जी कहते हैं
वर्चा नाम से विख्यात जो चन्द्रमा का प्रतापी पुत्र था वही महायशस्वी अर्जुनकुमार अभिमन्यु हुआ। जनमेजय! उसके अवतार काल में चन्द्रमा ने देवताओं से इस प्रकार कहा- ‘मेरा पुत्र मुझे अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय है, अतः मैं इसे अधिक दिनों के लिये नहीं दे सकता। इसलिये मृत्युलोक में इसके रहने की कोई अवधि निश्चित कर दी जाये। फिर उस अवधि का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। पृथ्वी पर असुरों का वध करना देवताओं का कार्य है और वह हम सबके लिये करने योग्य है। अतः उस कार्य की सिद्धि के लिये यह वर्चा भी वहाँ अवश्य जायेगा। परन्तु दीर्घकाल तक वहाँ नहीं रह सकेगा।
भगवान नर, जिनके सखा भगवान नारायण हैं, इन्द्र के अंश से भूतल में अवतीर्ण होंगे। वहाँ उनका नाम अर्जुन होगा और वे पाण्डु के प्रतापी पुत्र माने जायेंगे। श्रेष्ठ देवगण! पृथ्वी पर यह वर्चा उन्हीं अर्जुन का पुत्र होगा, जो बाल्यवस्था में ही महारथी माना जायेगा। जन्म लेने के बाद सोलह वर्ष की अवस्था तक यह वहाँ रहेगा। इसके सोलहवें वर्ष में वह महाभारत युद्ध होगा, जिसमें आप लोगों के अंश से उत्पन्न हुए वीर पुरुष शत्रु वीरों का संहार करने वाला अद्भुत पराक्रम कर दिखायेंगे। देवताओं! एक दिन जबकि उस युद्ध में नर और नारायण (अर्जुन और श्रीकृष्ण) उपस्थित न रहेंगे, उस समय शत्रुपक्ष के लोग चक्रव्यूह की रचना करके आप लोगों के साथ युद्ध करेंगे। उस युद्ध में मेरा यह पुत्र समस्त शत्रु सैनिकों को युद्ध से मार भगायेगा और बालक होने पर भी उस अभेद व्यूह में घुसकर निर्भय विचरण करेगा। तथा बड़े-बड़े महारथी वीरों का संहार कर डालेगा। आधे दिन में ही महाबाहु अभिमन्यु समस्त शत्रुओं एक चौथाई भाग को यमलोक पहुँचा देगा। तदनन्तर बहुत से महारथी एक साथ ही उस पर टूट पड़ेंगे और वह महाबाहु उन सबका सामना करते हुए संध्या होते-होते पुनः मुझसे आ मिलेगा। वह एक ही वंश प्रर्वतक वीर पुत्र को जन्म देगा, जो नष्ट हुए भरतकुल को पुनः धारण करेगा।’ सोम का यह वचन सुनकर समस्त देवताओं ने ‘तथास्तु’ कहकर उनकी बात मान ली और सबने चन्द्रमा का पूजन किया।
यह बात तो हो गयी वरदान की , परंतु क्या आपको लगता है अभिमन्यु केवल वरदान पर ही निर्भर थे ?
अभिमन्यु वास्तव में बहुत शक्तिशाली योद्धा थे और चक्रव्यूह में प्रवेश करने के लिए उसकी वीरता की सराहना करनी आव्यश्यक है । एक बात हमें स्मरण रहना चाहिए के अभिमन्यु को इस वरदान की कोई जानकारी नहीं थी , यह सब तो उसके जन्म से पहले नि निर्धारित कर दिया गया था कि उसके जन्म से पहले ही इसकी योजना बना ली गई थी, इसलिए हमें उनकी र वीरता की प्रशंसा करनी चाहिएऔर अभिमन्यु कोई अपवाद नहीं है.
युद्ध के 9वें दिन भीष्म इतने प्रचंड रूप से लड़ रहे थे के युधिष्ठिर ने विजय की आशा ही छोड़ दी थी
युद्ध के 15वें दिन द्रोण अजेय थे । उन्होने पांडव सेना को नष्ट कर दिया था , द्रुपद और विराट जैसे अन्य कई अन्य बड़े बड़े योद्धाओं को मार डाला था
12वें दिन भगदत्त और उसके हाथी सुप्रतीक ने ऐसा उत्पात मचाया था . कि भीम और सात्यकि मिलकर भी उस हाथी और बूढ़े योद्धा भगदत्त से निपट नहीं सके थे ।
13वें दिन जयद्रथ ने सबको आश्चर्याचकित कर दिया था । उन्होंने अकेले ही पांडवों की सम्पूर्ण सेना को रोक दिया था
14वीं रात्रि को घटोत्कच अपराजेय था। कर्ण को उस पर वासवी शक्ति का प्रयोग करना पड़ा था
तो 13वें दिन वीरता के अद्भुत प्रदर्शन के लिए अभिमन्यु को क्यों अलग से देखा जाये , वह कोई एक दिन का योद्धा नहीं था. और यह तथ्य है
अभिमन्यु ने द्वापर युग के सबसे बड़े योद्धाओं से शिक्षा ग्रहण की थी , अर्जुन , श्री कृष्ण और बलराम जी , और प्रद्युम्न इन सभी ने अभिमन्यु को प्रशिक्षित किया था और अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुण बनाया
इतना ही नहीं, उन्हें अपने पिता से शक्तिशाली अस्त्र भी प्राप्त हुए थे और उन्हें चक्रव्यूह सहित अन्य व्यूह रचनाओ का ज्ञान भी अर्जुन से प्राप्त हुआ था
महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 46 में गुरु द्रोण कर्ण से कहते हैं , क्या तुम्हें इस कुमार अभिमन्यु में कोई भी दुर्बलता नज़र आई , वह सभी दिशाओं में विचर रहा है , अभिमन्यु यद्यपि अपने बाणों द्वारा मेरे प्राणों को अत्यंत कष्ट दे रहा है , मुझे मूर्छित किए देता है , तथापि बारंबार मेरा हर्ष बड़ा रहा है , रण क्षेत्र में विचारता यह सुभद्रा पुत्र मुझे अत्यंत आनंदित कर रहा है , क्रोध में भरे हुए महारथी उसकी कोई कमजोरी तक नहीं पकड़ पाये , वह शीग्रतापूर्वक हाथ चलता हुआ अपने महान बाणों से सम्पूर्ण दिशाओं को व्याप्त कर रहा है , मैं युद्ध स्थल में गाँडीव धारी अर्जुन और इस अभिमन्यु में कोई अंतर नहीं देख पाता हूँ
गुरु द्रोण के यह वचन अभिमन्यु के श्रेष्ठ कौशल का सत्य प्रमाण देते हैं
और एक और बात भी हम स्पष्ट कर दें ले BORI critical edition में अभिमन्यु के वरदान कोई वर्णन नहीं है , परंतु अभिमन्यु के इस वरदान के बारे गीता प्रैस और KMG में विस्तार से बताया गया है , जय श्री कृष्ण
