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चौसठ योगिनी कौन हैं | 64 योगनियाँ की सम्पूर्ण जानकारी
64 योगिनी का इतिहास क्या है, सर्वप्रथम कैसे उत्पन्न हुई थी योगिनी, कहाँ निवास करती हैं 64 yoginis, 64, आइये विस्तार से जानते हैं 64 योगनियों के बारे में
Table of Contents
64 योगिनी का इतिहास
माँ काली ही हैं इनका स्त्रोत
64 योगनियों का प्रादुर्भाव माँ काली से ही हुआ है, 64 योगिनियाँ सृष्टि के विभिन्न आयामों पर शासन करती हैं, और हर एक योगिनी का एक विशिष्ट चरित्र हैं, मुख्यता इंका संबंध या कहें सामान्य कारक 8 मातृकाओं से है, ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं और देवी महात्म्य के अनुसार, इन आठ देवियों ने शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज राक्षसों के विरुद्ध युद्ध में माँ दुर्गा की सहायता की थी, और देवी दुर्गा ने स्वयं मातृकाओं की रचना की थी । इनमें से सात देवी शक्तियों को संभन्धित देवों के ही नारीत्व रूप माना जाता है, ये सात देवियां अपने पतियों के वाहन तथा आयुध के साथ यहां उपस्थित होती हैं, आठवीं मातृका स्वयं माँ काली हैं, हर एक मातृका की सहायक आठ शक्तियाँ, इसीलिए इनकी संख्या 64 हो जाती है
8 मातृकाएँ कौन है और किन देवों से संबन्धित हैं
1, ब्राह्माणी, भगवान ब्रह्मा – उनके चार सिर और चार बुजाएँ हैं, ब्रह्मा जी की ही तरह इनका वाहन हंस है
2। माहेश्वरी, भगवान शिव – भगवान शिव की ही तरह उनकी जटाओं में अर्धचंद्र है तथा उनका वाहन नंदी है, चतुर्भुजाओं में त्रिशूल , खड़ग आदि है
3। कौमारी – कार्तिकेय जी – कौमारी के छः सिर और दस हाथ हैं, तथा उनका वाहन मयूर है। वे अपने हाथों में शक्ती, ध्वजा, दण्ड, धनुष, बाण,आदि धारण करती हैं
4। वैष्णवी – भगवान विष्णु – वनमाला पहने हुए देवी वैष्णवी के दो हाथों में शंख व चक्र हैं , इनकी सवारी विष्णु जी की तरह गरूड़ ही है
5। ऐंद्रि – देवराज इन्द्र – वे अपने वाहन हाथी पर विराजमान, वज्र धारण कर रखती हैं
6। वराही – वराह – भगवान विष्णु के वराह अवतार की तरह चर्तुभुजी इन देवी का चेहरा वराह का व धड़ मनुष्य का है। हाथों में दंड़, खड्ग, खेतका और फाश धारण करती है। मेष इंका वाहन है और कहीं कहीं भैंसे पर भी सवार दिखाई गयी हैं
7। नारसिंही – भगवान नरसिम्हा – इंका चेहरा सिंह का व धड़ मानव का है और हाथों में शंख, चक्र, त्रिशूल, डमरू आदि धारण करती हैं
8। और अंत में आती हैं माँ काली – जिनहे चामुंडा के नाम से भी जानते हैं एकमात्र ऐसी मातृका हैं जिनहे किसी भी देव के स्त्री शक्ति अवतार के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाता , रौद्र मुखमुद्रा वाली यह देवी के हाथों में कपाल, शूल, नरमुण्ड तथा अग्नि है तथा इनका वाहन सियार है
माता काली और चौसठ योगिनी का क्या नाता है
जैसा हमने पहले बताया योगनियाँ साक्षात आदि शक्ति काली के ही अवतार हैं, तथा सदैव माता पार्वती की सखियों की तरह सदैव उनके साथ ही रहती हैं, देवी पार्वती द्वारा लड़े गए प्रत्येक युद्ध में समस्त योगनियों ने भाग लिया था तथा अपनी वीरता का परिचय दिया था , महा विद्याएँ , सिद्ध विध्याएँ भी योगनियों की ही श्रेणी में आती हैं , यह भी माँ काली के ही भिन्न भिन्न अवतारी अंश हैं , समस्त योगनियाँ अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न हैं तथा इन्द्र्जाल, जादू, वशीकरण, मारन, स्तंभन आदि कर्म इनही की कृपा द्वारा सफल हो पाते हैं, मुख्य रूप से आठ योगनियाँ अपने गुणों तथा स्वभाव से भिन्न भिन्न रूप धारण करती हैं, यह सभी तंत्र तथा योग विद्या में भी निपुन्न हैं
64 योगनियों से जुड़ी पौराणिक कथा
स्कन्द पुराण में है चौसठ योगिनी की कहानी
स्कन्द पुराण के काशी खंड पूर्वार्ध के अनुसार भगवान शंकर राजा दिवोदास से काशी पूरी प्राप्त करना चाहते थे , परंतु राजा दिवोदास धर्मपुरवाक प्रजा का पालन करते और उनके राज्य में अपराध नाम की कोई चीज़ ही न थी, भगवान शिव के कहने पर समस्त देवताओं ने उन सर्वत्र शुद्ध राजा के छिद्र अर्थात कोई कमी ढूंढने की बहुत चेष्ठा की, किन्तु वह असफल रहे , इन्द्र आदि देवताओं ने दिवोदास के राज्य तथा शासन को असफल बनाने के लिए अनेक प्रकार के विघ्न उपस्थित किए, किन्तु राजा ने अपने तपोबल से उन सब विघ्नों पर विजय पायी, तदनन्तर मद्राञ्चल से महादेव जी ने चौसठ योगिनियों को राजा के छिद्र देखने के लिए काशी भेजा, उन योगिनियों ने विभिन्न रूप धारण कर लिए और अलग अलग वेश धारण अलग अलग कार्यों में लग गयी, वह योगनियाँ बारह महीनों तक काशी में रहकर निरंतर चेष्ठा करते रहने पर भी राजा का कोई छिद्र अर्थात दोष न पा सकीं, परंतु वह सब लौट कर मंदरांचल भी नहीं गयी , तब से लेकर आज तक योगिनियों ने कभी भी काशी को नहीं छोड़ा हालांकि वह तीनों लोकों में घूमती हैं परंतु उनका निवास काशी ही है
स्कन्द देव ने वेद व्यास जी को बताया 64 Yogini का महत्व
आगे व्यास जी के पूछने पर स्कन्द देव इन योगनियों के बारे में बताते हैं के यदि कोई मनुष्य इन चौंसठ नामों का प्रतिदिन भोर, दोपहर और संध्या के समय जप करे तो उसके भूत-प्रेत द्वारा दिये गए सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।, इनके 64 नामो का पाठ करने वालों को न डाकिनी, शाकिनी, कुष्मांड और न ही कोई अन्य राक्षस कष्ट दे सकता है , यह नाम युद्ध, वाद विवाद आदि में विजय प्रदान करते हैं
जो योगिनी पीठों की सेवा करता है, उसे वांछित शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। और यदि कोई अन्य मंत्रों को भी उनके आसनों के सामने दोहराता है, उससे भी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। यज्ञ, पूजा और प्रसाद तथा धूप और दीपक के समर्पण से योगिनि जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं और वे सभी इच्छाओं को अवश्य पूर्ण करती हैं , अश्वयुज ) के महीने में, शुक्ल पक्ष के पहले चंद्र दिन से शुरू होकर नौवें दिन तक, मनुष्य को (64 योगिनियों) की पूजा करनी चाहिए। इससे वह जो चाहे प्राप्त कर सकता है, काशी तीर्थ यात्रा करते समय इनकी आराधना भी अवश्य करनी चाहिए अन्यथा उनके कार्यों में यह विघ्न डाल सकती हैं
64 योगिनी के नाम
1.बहुरूप, 2. तारा, 3. नर्मदा, 4. यमुना, 5. शांति, 6. वारुणी 7. क्षेमंकरी, 8. ऐन्द्री, 9. वाराही, 10. रणवीरा, 11. वानरमुखी, 12. वैष्णवी, 13. कालरात्रि, 14. वैद्यरूपा, 15. चर्चिका, 16. बेतली, 17. छिन्नमस्तिका, 18. वृषवाहन, 19. ज्वालाकामिनी, 20. घटवार, 21. कराकाली, 22. सरस्वती, 23. बिरूपा, 24. कौवेरी, 25. भलुका, 26. नारसिंही, 27. बिरजा, 28. विकतांना, 29. महालक्ष्मी, 30. कौमारी, 31. महामाया, 32. रति, 33. करकरी, 34. सर्पश्या, 35. यक्षिणी, 36. विनायकी, 37. विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40. अम्बिका, 41. कामिनी, 42. घटाबरी, 43. स्तुती, 44. काली, 45.उमा, 46. नारायणी, 47. समुद्र, 48. ब्रह्मिनी, 49. ज्वालामुखी, 50. आग्नेयी, 51. अदिति, 51. चन्द्रकान्ति, 53. वायुवेगा, 54. चामुण्डा, 55. मूरति, 56.गंगा, 57. धूमावती, 58. गांधार, 59. सर्वमंगला, 60.अजिता, 61. सूर्यपुत्री 62. वायुवीणा, 63. अघोर और 64. भद्रकाली.
कहाँ स्थित हैं चोसठ जोगनी(चौसठ योगनियों) के मंदिर
अलग अलग पुरानों में इन 64 योगनियों के नामों में थोड़ा अंतर अवश्य मिलता , वैसे तो भारत में इनके कई पीठ हैं पर मुख्य पीठ Odisha और Madhya Pradesh के मुरैना में स्थित है