शेषनाग के अवतार होते हुए भी मेघनाद के नागपाश ने कैसे बांध लिया लक्ष्मण को

एक बात हम सभी जानते हैं के लक्ष्मण स्वयं शेषनाग जी के अवतार थे , तो फिर क्यों जब उनका मेघनाद के साथ युद्ध हुआ था तो वे मेघनाद के नागपाश का सामना न कर पाये और मूर्छित हो गए , क्या वो नागपाश शेषनाग से भी शक्तिशाली था ? क्या मेघनाद के उस नागपाश का उत्तर श्री राम के पास भी नहीं था , आखिर क्या रहस्य है इसके पीछे , वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड सर्ग 45 के अनुसार श्रीरामने इन्द्रजित्‌- का पता लगाने के लिए दस वानर-यूथपतियो को आज्ञा दी ॥ ९॥ तब वे सभी वानर भयंकर वृक्ष उठाकर दसों दिशाओं में उसे खोजते हुए आकाश मार्ग से चले किंतु इन्द्रजित्‌ ने अत्यन्त वेगशाली बाणों की वर्षा करके उन वानरो के वेगको रोक दिया ॥ ५॥ तत्पश्चात्‌ रावणपुत्र इन्द्रजित्‌ फिर श्रीराम ओर लक्ष्मण पर ही उनके सम्पूर्ण अंगों को विदीर्ण करने वाले बाणों की बारम्बार वर्षा करने लगा ॥ ७ ॥ कुपित हए इंद्रजीत ने उन दोनों वीर श्रीराम ओर लक्ष्मण को बाणरूप धारी सर्पों द्वारा इस तरह वींधा कि उनके शरीर में थोडा- सा भी ऐसा स्थान नहीं रह गया, जहां बाण न लगे हों ॥ उन दोने के अंगों में जो घाव हो गये थे, उनके मार्ग से बहुत रक्त बहने लगा बहुत रक्त बहने लगा । उस समय इन्द्रजित्‌ अन्तर्धान-अवस्थामें ही उन दोनों भाइयों से बोला ॥ ‘युद्धके समय अलक्ष्य हो जानेपर तो मुझे देवराज इद्र भी नहीं देख या पा सकता; फिर तुम दोनों की क्या बिसात हे ?॥ “मने तुम दोनों रघुवंशियों को कंकपत्र युक्त बाण के जाल मे फंसा किया हे। अब मै अभी तुम दोनोको यमलोक भेजे देता हू ॥ ऐसा कहकर वह दोनों भाई श्रीराम ओर लक्ष्मणको पैने बाणोंसे भींधने लगा ओर जोर-जोर से गर्जना करने लगा ॥ युद्ध के मुहाने पर बाण के बन्धन से बंधे हुए वे दोनों बन्धु पलक मारते-मारते ऐसी दशा को पहुँच गये कि उनमें आंख उठाकर देखने की भी शक्ति नहीं रह गयी (वास्तवमें यह उनकी लीला मात्र ,वे तो काल के भी काल हैँ । उन्हें कोन बांध सकता था ) इस प्रकार उनके सारे अंग बिंध गए थे । बाणोसे व्याप्त हो गये थे। वे महान्‌ धनुर्धर वीर भूपाल ममर्म स्थलों के भेदन से विचलित एवं कृशकाय हो पृथ्वीपर गिर पडे ॥ उनके सारे अंगों में बाणरूपधारी नाग लिपटे हुए थे तथा वे अत्यन्त पीडित एवं व्यथित हो रहे थे ॥ जिसने पूर्वकालं में इन्द्रको परास्त किया था, उस इन्द्रजित के क्रोधपूर्वक चलाय हुए बाणों द्वारा आहत होनेके कारण पहले श्रीराम ही धरारायी हुए ॥ २२ ॥ धरती पर पड़े हुए श्रीराम को देखकर लक्ष्मण वहाँ अपने जीवनसे निराश हो गये , उन्हे बड़ा शोक हुआ , तदन्तर लक्ष्मण जी भी स्वयं अपनी इच्छा से उस पाश में बंध गए उन्हें उस अवस्थामें देखकर वानरोको भी बड़ा संताप हआ । वो शोक में आतुर हो नेत्र में आंसू भरकर घोर आर्तनादः करने कगे ॥ उन दोनों भाइयों को चारों ओरसे घेरकर सब वानर खड़े हो गये । वहाँ आये हए हनूमान्‌ आदि मुख्य-मुख्य वानर व्यथित हो बडे विषादमें पड़ गये इस घटना के उपरांत हनुमान जी आह्वान पर गरुड देव वहाँ पधारे और उन्होने उन नागों से श्री राम और लक्ष्मण जी को मुक्त किया वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड सर्ग 51 में जब रावण को यह ज्ञात हुआ के श्री राम और लक्ष्मण जी पुनः जीवित हो गए हैं तो राक्षसराज रावण चिन्ता तथा शोकके वशीभूत हो गया ओर उसका चेहरा उतर गया , (वह मन-ही-मन सोचने कगा-) “जो विषधर सर्पों के समान भयंकर,, वरदान में प्राप्त हृए ओर अमोघ थे तथा जिनका तेज सूर्य के समान था, उन्ही के द्वारा युद्धस्थल में इन्द्रजित ने जिन्हें बांध दिया था, वे मेरे दोनों शत्रु यदि उस अस्रन्धन में पड़कर भी उससे छूट गये, तब तो मुझे अपनी सारी सेना पर संशय ही होता है “जिन्होंने पहले युद्धस्थले मेरे शत्रुओं के प्राण ले लिये थे, वे अग्नितुल्य तेजस्वी बाण निश्चय ही आज निष्फल हो गये” ॥ १७ ॥ लक्ष्मण जी ने श्री राम की वैसी स्थिति देख स्वेच्छा से ही उस नागपाश के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था , श्री राम के धरती पर गिर जाने के उपरांत वी युद्धभूमि में अटल खड़े थे , परंतु उन सर्पों द्वारा श्री राम को अपने वश में देख वे टूट गए और वे भी उस नागपाश की चपेट में आ गए , मेघनाद का शक्तिशाली नागपाश लक्ष्मण जी को वश में नहीं कर पाया था , परंतु एक प्रश्न उठता है के श्री राम जी पर कैसे वे नाग पाश हावी हो गया सुंदर कांड अध्याय 51 में हनुमान जी रावण से कहते हैं के महायशस्वी श्री राम चंद्र जी चराचर प्राणियों सहित सम्पूर्ण लोकों का संहार करके फिर उनका नए सिरे से निर्माण करने की शक्ति रखते हैं , देवता , असुर , यक्ष , राक्षस , सर्प , विद्याधर , नाग , गंधर्व एवं अन्य समस्त प्राणियों में कहीं किसी समय कोई भी ऐसा नहीं है जो श्री रघुनाथ जी के साथ लोहा ले सके वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड सर्ग 18 में श्री राम ने ने स्वयं सुग्रीव से कहा था के यदि मैं चाहूँ तो पृथ्वी पर जीतने भी पिशाच , दानव , यक्ष और राक्षस हैं , उन सबको एक अंगुली के अग्रभाग से मार सकता हूँ अब आप स्वयं विचार करें वह तीनों लोकों का स्वामी है, , वह संपूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट और पुन: निर्मित कर सकते हैं , उन सृष्टि के स्वामी श्री राम के लिए किसी अस्त्र का समाना कठिन कार्य होगा चाहे वो कितना भी शक्तिशाली हो , जिसके सामान्य बाणों ने मकराक्ष के शूल को तोड़ दिया था, जो स्वयं भगवान शिव ने उसे दिया था? क्या उन्हे कोई पाश बांध सकता था , बिलकुल नहीं । यह सब उनकी उनकी दिव्य लीला थी . वह पलक झपकते ही लंका की समस्त सेना को समाप्त कर सकते थे , परंतु उन्होने ऐसा नहीं किया , अन्यथा उनके मानव अवतार का उद्देश्य विफल हो जाता। रामचरित मानस लंका कांड अध्याय 184 में एक स्थान पर शिव जी श्री राम के बारे में गिरिजा जी से कहते हैं , जो स्वतंत्र , अनंत , अखंड और निर्विकार हैं , वो श्री राम जी लीला से नागपाश के वश में हो गए , और उससे बंध गए , श्री रामचंद्र जी सदा स्वतंत्र , एक अद्वितीय भगवान है , वे नाटक की तरह अनेकों प्रकार के दिखावटी चरित्र करते हैं , रण की शोभा के लिए प्रभु ने अपने को नाग पाश में बंधा लिया , कितनु उससे देवताओं को बड़ा भय हुआ , हेय गिरिजे , जिंका नाम जपकर मुनि भाव जन्म मृत्यु की फांसी को काट डालते हैं , वे सारव्यापक और विश्व के आधार प्रभी कहीं बंधन में आ सकते हैं हेय भवानी , श्री राम जी की इन सगुण लीलाओं के विषय में बुद्धि और वाणी के बल से तर्क या निर्णय नहीं किया जा सकता , वाल्मीकि रामायण के ही अनुसार मेघनाद के अस्त्रों को ब्रह्मा जी से अचूकता का वरदान प्राप्त था , श्री राम जी ब्रह्मा जी के मान को भंग भी नहीं करना चाहते थे और लीला करते हुए स्वयं ही उस पाश से बंध गए , वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड सर्ग 71 में जब लक्ष्मण और मेघनाद का युद्ध चल रहा था , तो लक्ष्मण जी ने वहाँ अपने साधारण बाणों से ही मेघनाद को मूर्छित कर दिया था ,और लक्ष्मण जो उस नागपाश से बिना प्रभित हुए निडर खड़े थे वे श्री राम जी के जैसे ही उस पाश से स्वयं बंध गए , वरना ऐसा कोई अस्त्र या पाश नहीं था जो प्रभु श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण को बांध सके, श्री राम और लक्ष्मण जी मानव रूप में थे, उन्हें मानव सीमा में रहना पड़ा , जय श्री राम