पाँच प्रेत कौन हैं | 5 Types of Preta in Hindu Dharma

प्रेत

हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है, और मुख्यता 5 प्रकार के प्रेत होते हैं, और इन प्रेतों का विभाजन भूत, पिशाच, कूष्मांड, ब्रह्मराक्षस, तथा बेताल के रूप में किया गया है ।
प्रेत योनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं, सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं परंतु बलवान नहीं होते, यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है, आइये विस्तार से जानते हैं इन सभी पाँच प्रकार के प्रेतों के बारे में

ब्रह्मराक्षस

प्रेत ब्रह्मराक्षस

ब्रह्मराक्षसों की गिनती हमारे सनातनी धर्म ग्रन्थों में सर्वोच राक्षसों में की जाती है, ब्रह्मराक्षस मूलतः ब्राह्मण वर्ग की आत्माए होती है, जो मृत्यु के अंत तक धर्म का पालन और आध्यात्मिक शक्ति से युक्त रहते है, ब्रह्मराक्षस ऐसे प्रेत हैं जिनको देवतुल्य गन्धर्वों से भी ऊपर की योनि में माना गया है, ब्रह्मा पुराण अध्याय 94 में पार्वती जी जब भगवान शिव से राक्षसों के बारे में प्रश्न करती हैं तो शिव जी उनसे कहते हैं, देवी। लोक धर्म के प्रतिपादक शास्त्र और प्राचीन मर्यादा को प्रमाण मानकर जो उसका अनुसरण करते हैं, वह दृढ़ संकल्प एवं यज्ञ तत्पर माने जाते हैं परंतु जो मोह के वशीभूत हो अधर्म को ही धर्म बताते हैं, वह व्रत और मर्यादा का लोप करने वाले मानव ब्रह्मराक्षस होते हैं
ब्रह्मराक्षस वह ज्ञानी आत्माएँ हैं जिनमें सात्विक और तामसिक दोनों गुण होते हैं, इसी कारण इनमें ब्रह्मा ज्ञान भी है और यह कुछ अनुचित कर्म भी करते हैं, मूलतः यह किसी निर्जन स्थान पर बसेरा डाल कर रहते है, इन्हे बहुत सारी शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं और बड़े ही कम लोग इनसे लड़ने की क्षमता रखते हैं या उन्हे उनके इस रूप से मुक्ति दिला सकते हैं, इन्हे अपने पूर्व जन्म का स्मरण तथा वेदों का भी ज्ञान होता है

भूत

हमारे धर्म ग्रन्थों के अनुसार भूतों की गिनती दिव्य प्राणियों में ही की जाती है, ब्रह्मांड पुराण के अनुसार भगवान शिव ने ही नीललोहित रुद्र के रूप में भूतों की रचना की थी, और उनकी आकृति नीललोहित जी के जैसी ही थी,
झुके हुए अंग, लंबे कान, मोटे लटकते होंठ, लाल आंखें, भारी भौहें, लंबे, नुकीले और उभरे हुए दांत, लंबे नाखून, धूल से भरे उलझे बाल आदि इन भूतों की विचित्र विशेषताएं थीं। संगीत से घृणा करने वाले यह जीव नागों को अपने यज्ञोपवीत के रूप में प्रयोग करते हैं
पुराणों में रुद्र को भूत का प्रधान माना गया है। इसलिए रुद्र को “भूतनायक”, “गणनायक”, “रुद्रानुकार”, “भावपरिषद” आदि नामों से भी जाना जाता है। सामान्य तौर पर सभी भूतों के स्वामी को रुद्र के नाम से ही संभोधित किया जाता है परंतु , वामन पुराण के अनुसार रुद्र कोई एक ही व्यक्ति नहीं है। वामनपुराण में वीरभद्र जी को एक रुद्र के रूप में भूतों का स्वामी बताया गया है और वहीं मत्स्यपुराण में नंदिकेश्वर जी को एक रुद्र के रूप में भूतों का स्वामी दर्शाया गया है , वामन पुराण में भूतों की संख्या 11 करोड़ बताई गयी है , इनमें स्कन्द, सखा, भैरव प्रमुख हैं। इनके अधीन असंख्य भूत हैं
जब भगवान शिव का अंधकासुर से युद्ध हुआ था तो उस समय भूतों ने भगवान शिव को और से युद्ध लड़ा था , तथा देवों के साथ मिलकर और भी कई असुरों के साथ भूतों ने युद्ध लड़े थे, कुछ लोक कथाओं के अनुसार भूत कई जादुई तथा मायावी शक्तियों के स्वामी होते हैं और मुख्यता यह खजाने की रक्षा करते हैं

पिशाच

महाभारत के आदि पर्व प्रथम अध्याय के अनुसार ब्रह्मकल्प के आदि में ब्रह्मा जी ने 18 प्रजापतियों, यक्षों, गन्धर्वों तथा पिशाचों की रचना की थी, कई कथाओं में पिशाचों को महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री क्रोधवर्षा के पुत्र कहा गया है, पिशाचों के अतिरिक्त कई कई सर्प और विषैले जीवों की उत्पत्ति भी क्रोधवर्षा से ही हुई थी , पुरानों में इन्हे मांसभक्षी बताया गया है, पिशाच नामक प्रेत का भोजन मांस है और वे मृत या जीवित दोनों ही जंतुओं का रक्त पी जाते हैं, यह इच्छाधारी होते हैं और किसी का भी रूप धर सकते हैं जैसे कई राक्षस पीड़ित के देह में प्रविष्ट होकर रक्त पीते हैं, वहीं पिशाच पीड़ित को प्रताड़ित कर उसका रक्त निचोड़ लेते हैं, पिशाच एक नकारात्मक ऊर्जा है, ये मुख्यता जीवित मनुष्यों पर ही प्रभाव डालते हैं। जिनपर पिशाच सवार होता है वह व्यक्ति एकांत में ही अपना समय व्यतीत करना पसंद करते हैं

बेताल

विक्रम और बेताल की कहानियां विश्व साहित्य के धरोहरों में से एक हैं जो हम सबने ही सुनी और पड़ी हैं, इन्हे बेताल पच्चीसी के नाम से जाना जाता है, जिसमें बेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और आखिर में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है, शिव और कालिका पुराण में उन्हे शिव गणों में से एक ही माना गया है, पिशाचों में जो सबसे शक्तिशाली होते हैं उन्हे ही बेताल कहा जाता है और हैं यह भी प्रेत ही, यह काल भैरव के भक्त और सेवक के रूप में नियुक्त होते हैं, बेतालों की कई शाखाएँ हैं, और भारत में कुछ स्थाओं पर बेताल स्वामी के मंदिर भी हैं,

5 प्रकार के प्रेत पर हमारा विडियो

कूष्माण्ड

यह भी बेताल और पिशाच आदि की श्रेणी में ही आते हैं परंतु होते यह भी प्रेत ही हैं, और अधिकांश पुरानों में इन्हे भी भगवान शिव के गणों के रूप में ही वर्णित किया गया है, यह शवों के मांस का भक्षण करते हैं तथा उनका रक्त पीते हैं, यह जीवित प्राणियों में कई प्रकार के रोग उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं
श्रीमद भागवत पुराण के दशम स्कन्द में यह कहा गया है के डाकिनी, राक्षसी और कूष्माण्डा आदि छोटे बच्चों के लिए अति घातक हैं, तथा भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस और विनायक, कोटरा, रेवती, आदि; शरीर, प्राण तथा इन्द्रियों का नाश करने वाले हैं
भगवान शिव को भूत-नाथ कहा जाता है क्योंकि भूत, प्रेत, प्रमथ, गुह्यक, शाकिनी, पिंडक, कुम्मान, वेताल, विनायक और ब्रह्म-राक्षस तथा अन्य नरक के निवासी वे सभी उनके अधीन हैं, और इन सभी ने भगवान शिव द्वारा लड़े गए कई युद्धों में उनकी सहायता की थी