कलयुग में कहाँ रहते हैं 7 चिरंजीवी | Chiranjeevi in Kalyug

चिरंजीवी कलयुग निवास

हमारे सनातनी धर्मग्रंथों में सात चिरंजीवी का वर्णन आता है, उनके इतिहास के बारें में तो हम में से अधिकतर लोग जानते हैं, पर सबमें यह जिज्ञासा अवश्य होती है, की अगर वह सब चिरंजीवी हैं, तो वह कलयुग में भी अवश्य होंगे, परंतु कलयुग में वह कहाँ निवास कर रहे हैं, जितनी भी प्रामाणिक जानकारी हमें मिल सकी वही हम आपके समक्ष रखेंगे, यह लेख किसी भी लोक कथा या कीव्दंती पर आधारित नहीं है

परशुराम

एक समय जब क्रोध में भरे जमदग्नि ऋषि ने अपने पुत्र परशुराम जी से उनकी माता का वध करने को कहा था, तब परशुराम जी ने फरसा लेकर उसी क्षण माता का मस्तक काट डाला। इससे महात्मा जमदग्नि का क्रोध सहसा शान्त हो गया और उन्होंने प्रसन्न होकर परशुराम जी से कुछ भी मांगने को कहा था, तब परशुराम जी ने मांगा था के युद्ध में मेरा सामना करने वाला कोई न हो और मैं बड़ी आयु प्राप्त करूँ, जमदग्नि ऋषि से ही उन्हे चिरंजीवी होने का वर प्राप्त हुआ था, परशुराम जी को चिरंजीवी माना गया है, रामायण काल में श्री राम ने परशुराम जी की सम्पूर्ण तपस्वी योग्यता भंग कर दी थी और उनसे विष्णु तत्व भी छीन लिया था, इसके उपरांत वह श्री राम की आज्ञा लेकर महेंद्र पर्वत पर पुनः तपस्या करने चले गए थे, महाभारत काल में भी उनका निवास महेंद्र पर्वत में ही था, और कलयुग में भी वह महेंद्र पर्वत पर ही हैं, भगवान विष्णु के अंतिम अवतार भगवान कल्कि के उपदेशक के रूप में वह पुनः उपस्थित होंगे

राजा बलि

असुरों के राजा बलि अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था वे भी एक चिरंजीवी है , एक बार राजा बलि एक बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे थे, यह यज्ञ असीम शक्तियों की प्राप्ति के लिए था, सभी देवता इस यज्ञ से चिंतित हो उठे, तब भगवान विष्णु के अवतार वामन, ब्राह्मण वेश में वहाँ दान लेने पहुँच गए, वामन के दान मांगने पर बलि ने उनको तीन पग भूमि दान में दे दी, तब ब्राह्मण वेश में वामन भगवान ने अपना विराट रूप दिखा दिया, एक पग में भूमंडल नाप लिया। दूसरे में स्वर्ग और तीसरे के लिए बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखूं? पूछने पर बलि ने मुस्कराकर कहा, इसमें तो कमी आपके ही संसार बनाने की हुई, मैं क्या करूं भगवान? अब तो मेरा सिर ही बचा है। इस प्रकार विष्णु ने उसके सिर पर तीसरा पैर रख दिया। देवी भागवत के अनुसार उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हे पाताल में सुतल लोक में बसाया था, जिसे इंद्रादी देवता भी नहीं पा सकते, वह अमित लक्ष्मी इनके पास है, इस समय सुतल लोक में बलि का आधिपत्य हैं और वे अब भी सुतल लोक में विराजमान हैं , कलयुग के अंत तक वह इसी लोक में विराजमान हैं, और आने वाले मन्वंतर में वह श्री विष्णु जी की कृपा से इन्द्र बनेंगे

हनुमान जी – सबसे शक्तिशाली चिरंजीवी

बजरंग बली जी ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। इनकी आराधना से बल, कीर्ति,आरोग्य और निर्भीकता बढती है, हनुमान जी कालजयी व चिरंजीव देवता हैं, हनुमान चरित्र या नाम स्मरण ही जगत के लिये संकटमोचन व विघ्रहरण का बेहतर रास्ता माना गया है, हनुमान जी कहाँ रहते हैं इस बात का वर्णन हमें महाभारत के वन पर्व अध्याय अध्याय 151 में मिलता है, इसके अनुसार जब हनुमान जी द्रौपदी के लिए सौगन्धिक कमल लेने के लिए गन्धमादन पर्वत पर गए तब वहाँ उनकी भेंट हनुमान जी से हुई जो उस समय वहाँ कदलीवन में ही रहते थे, हनुमान जी ने यह सोचकर कि भीमसेन इसी मार्ग से स्वर्गलोक की ओर न चले जायें, इसीलिए वहाँ हनुमान जी उनकी राह रोकी थी , उसके उपरांत श्रीहनुमान और भीमसेन का संवाद हुआ, हनुमान जी ने भीमसेन को अपने विशाल रूप का दर्शन दिया और चारों युगों के धर्मों का वर्णन भी किया, जब भीमसेन वहाँ से विदा लेने लगे तब हनुमान जी बोले ,’वीर! अब तुम अपने निवास स्थान पर जाओ। बातचीत के प्रसंग में कभी मेरा भी स्मरण करते रहना। कुरुश्रेष्ठ! मैं इस स्थान पर रहता हूं, यह बात कभी किसी से न कहना, ऐसा कहकर हनुमान जी अन्तर्धान हो गये। इस वृतांत से हमें यह ज्ञात होता है के हनुमान जी कलयुग में भी गन्धमादन पर्वत पर ही निवास करते हैं, और जहां जहां प्रभु श्री राम का नाम लिया जाता है वह वहाँ उपस्थित रहते हैं

विभीषण

विभीषण रावण के छोट्टे भाई थे, उन्होने अपने भाई के ही विरुद्ध जाकर श्री राम का साथ दिया था, उन्हें वहाँ नैतिकता और धार्मिकता बनाए रखने और दुनिया भर के लोगों को धर्म का मार्गदर्शन करने के लिए इस महायुग के अंत तक जीवित रहने का वरदान प्राप्त हुआ था , उनके रामायण काल के बाद भी जीवित होने का प्रमाण हमें महाभारत में भी मिलता है, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के दौरान सहदेव विभीषण से मिले थे और विभीषण ने सहदेव को उपहार भी दिये थे , यह बात तो निश्चित है अगर वह द्वापर युग में भी जीवित थे तो वह कलयुग में भी मौजूद हैं, परंतु इस बात का वर्णन किसी भी प्रामाणिक हिन्दू ग्रन्थों में हमें नहीं मिला , हो सकता है वह किसी दूसरे आयाम में हो

अश्वथामा कृपाचार्य और व्यास जी

महाभारत में गुरु द्रोण पुत्र अश्वथामा को श्री कृष्ण से 3000 वर्षों तक भटकने का श्राप मिला था, अश्वत्थामा का अंतिम बार उल्लेख उनका कामयक वन व्यास जी के आश्रम में होने का किया गया है, बाकी उनपर कई किस्से कहानियाँ और लोक कथाएँ प्रचलित हैं के उन्हे विभिन्न स्थाओं पर देखा गया है , पर हम उस बात की पुष्टि नहीं करते क्यूंकी हमें कोई प्रमाण नहीं मिला हाँ , विष्णु पुराण के अंश 3 अध्याय 2 के अनुसार आठवें मन्वंतर में –, दीप्तिमान , गालव, राम ,कृपाचार्य , अश्वत्थामा , व्यास जी और ऋषयशृंग – यह सब सप्तऋषि होंगे