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अरुण देव की कहानी | क्या अरुण गरुड़ देव के समान शक्तिशाली थे ?
भगवान विष्णु जी वाहन गरुड देव जी के बारे में तो सब जानते हैं परंतु उनके ही भाई अरुण देव जो सूर्य देव के सारथी थे उनकी शक्तियों की जानकारी कम ही लोगों को है, आखिर कितने शक्तिशाली थे अरुण क्या वे गरुड से भी अधिक बलशाली थे, कौन है अरुण , क्या है उनकी कहानी, आइये अरुण देव से जुड़े एक एक रहस्य को जानते हैं
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अरुण देव का जन्म
महाभारत के आदि पर्व अध्याय 16 के अनुसार, दक्ष प्रजापति की बहुत सी कन्याओं का विवाह महर्षि कश्यप से हुआ था , उनही कन्याओं में एक थी विनता और दूसरी कदरू, दोनों ही, पुत्र की कामना से तपस्यापूर्वक ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करने लगी।
उस समय कश्यप जी ने विनता से कहा- ! तुम्हारा यह अभीष्ट अवश्य सफल होगा। तुम ऐसे दो पुत्रों को जन्म दोगी, जो बड़े वीर और तीनों लोकों पर शासन करने की शक्ति रखने वाले होंगे। । मेरे संकल्प से तुम्हें दो परम सौभाग्यशाली पुत्र प्राप्त होंगे, जिनकी तीनों लोकों में पूजा होगी।’‘तुम्हारे ये दोनों पुत्र सम्पूर्ण पक्षियों के इन्द्र पद का उपभोग करेंगे। स्वरूप से पक्षी होते हुए भी इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ और लोक-सम्भावित वीर होंगे,और वहीं कदरू को एक हज़ार शक्तिशाली नागों को पुत्र स्वरूप पाने का वरदान दिया
अरुण देव का माँ विनता को श्राप
तत्पश्चात पाँच सौ वर्ष पूरे होने पर कद्रू के एक हजार पुत्र अण्डों को फोड़कर बाहर निकल आये, परन्तु विनता के अण्डों से उसके दो बच्चे निकलते नहीं दिखायी दिये। इससे विनता सौत के सामने लज्जित हो गयी।
फिर उसने अपने हाथों से एक अण्डा फोड़ डाला। फूटने पर उस अण्डे में विनता ने अपने पुत्र को देखा, उसके शरीर का ऊपरी भाग पूर्णरूप से विकसित एवं पुष्ट था, किन्तु नीचे का आधा अंग अभी अधूरा रह गया था। उस पुत्र ने क्रोध के आवेश में आकर विनता को शाप दे दिया।
‘मा! तूने लोभ के वशीभूत होकर मुझे इस प्रकार अधूरे शरीर का बना दिया- मेरे समस्त अंगों को पूर्णतः विकसित एवं पुष्ट नहीं होने दिया; इसलिये जिस सौत के साथ तू लाग-डाँट रखती है, उसी की पाँच सौ वर्षों तक दासी बनी रहेगी।
और मा! यह जो दूसरे अण्डे में तेरा पुत्र है, यही तुझे दासी-भाव से छुटकारा दिलायेगा;
इस प्रकार विनता को शाप देकर यह बालक अरुण अन्तरिक्ष में उड़ गया। ! तभी से प्रातःकाल सदा जो लाली दिखायी देती है, उसके रूप में विनता के पुत्र अरुण का ही दर्शन होता है। वह सूर्यदेव के रथ पर जा बैठा और उनके सारथि का काम सँभालने लगा, तदनन्तर समय पूरा होने पर सर्प संहारक गरुड़ का जन्म हुआ।
अरुण की सूर्य देव तक पहुँचने की कथा
अरुण का भगवान सूर्य तक पहुँचने का वृतांत हमें महाभारत के आदि पर्व अध्याय 24 में मिलता है, इसके अनुसार
समुद्र मंथन पश्चात जब राहु अमृत पी रहा था, उस समय चन्द्रमा और सूर्य ने उसका भेद बता दिया; इसीलिये उसने चन्द्रमा और सूर्य से भारी बैर बाँध लिया और उन्हें सताने लगा। राहु से पीड़ित होने पर सूर्य के मन में क्रोध का आवेश हुआ।
वे सोचने लगे, ‘देवताओं के हित के लिये ही मैंने राहु का भेद खोला था जिससे मेरे प्रति राहु का रोष बढ़ गया। अब उसका अत्यन्त अनर्थकारी परिणाम दुःख के रूप में अकेले मुझे प्राप्त होता है। संकट के अवसरों पर मुझे अपना कोई सहायक ही नहीं दिखायी देता। देवता लोग मुझे राहु से ग्रस्त होते देखते हैं तो भी चुपचाप सह लेते हैं। अतः सम्पूर्ण लोकों का विनाश करने के लिये निःसंदेह मैं अस्ताचल पर जाकर वहीं ठहर जाऊँगा।’ ऐसा निश्चय करके सूर्यदेव अस्ताचल को चले गये। और वहीं से सूर्यदेव ने सम्पूर्ण जगत का विनाश करने के लिये सबको संताप देना आरम्भ किया।
तदनन्तर देवता तथा ऋषिगण ब्रह्मा जी के पास जाकर बोले- ‘भगवन! आज यह कैसा महान दाहजनित भय उपस्थित होना चाहता है? अभी सूर्य नहीं दिखायी देते तो भी ऐसी गरमी प्रतीत होती है मानो जगत का विनाश हो जायेगा। फिर सूर्योदय होने पर गरमी कैसी तीव्र होगी, यह कौन कह सकता है?
ब्रह्मा जी ने कहा- ये सूर्यदेव आज सम्पूर्ण लोकों का विनाश करने के लिये ही उद्यत होना चाहते हैं। जान पड़ता है, ये दृष्टि में आते ही सम्पूर्ण लोकों को भस्म कर देंगे। किन्तु उनके भीषण संताप से बचने का उपाय मैंने पहले से ही कर रखा है।
महर्षि कश्यप के एक बुद्धिमान पुत्र हैं, जो अरुण नाम से विख्यात हैं। उनका शरीर विशाल है। वे महान तेजस्वी हैं। वे ही सूर्य के आगे रथ पर बैठेंगे। उनके सारथि का कार्य करेंगे और उनके तेज का भी हरण करेंगे। ऐसा करने से सम्पूर्ण लोकों, ऋषि-महर्षियों तथा देवताओं का भी कल्याण होगा। तत्पश्चात पितामह ब्रह्मा जी की आज्ञा से अरुण ने उस समय सब कार्य उसी प्रकार किया। सूर्य अरुण से आवृत होकर उदित हुए।
अरुण देव का विवाह
अरुण का विवाह श्येनी से हुआ था ने दो महाबली और पराक्रमी पुत्र उत्पन्न किये एक का नाम था सम्पाती और दूसरे का जटायु , जो बड़ा शक्तिशाली था
काशी में अरुण ने की थी सूर्यदेव की तपस्या
स्कन्द पुराण काशी खंड उत्तरार्ध अध्याय 249 के अनुसार
विनतानन्दन अरुण ने काशीमें तपस्या करके भगवान् सूर्य की आराधना की। इससे प्रसन्न होकर आदित्यने अरुण को अनेक वर दिये ओर उन्ही के नाम पर अरुणादित्य नामसे विख्यात हुए ।
सूर्यदेव बोले-विनतानन्दन ! तुम जगत्के हितके लिये घोर अन्धकारका नाश करते हुए सदा मेरे रथपर आगे सारथि के स्थान पर बैठा करो। जो यहाँ अरुणादित्य नामसे प्रसिद्ध मेरा निरन्तर पूजन करेगे, उन्हें दुःख, दरिद्रता ओर पापको प्राप्ति नहीं होगी। ऐसा कहकर भगवान् सूर्य उन्हे रथपर बिठाकर अपने साथ ले गये। तबसे लेकर आज भी प्रातःकाल सूर्य के रथ पर अरुण का उदय होता हे। जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर प्रतिदिन सूर्यसहित
अरुणको नमस्कार करता है, उसे दुख का भय नहीं होता है। जो मनुष्य अरुणादित्य का माहात्म्य सुनेगा, उसे किसी प्रकार के पाप की प्राप्ति नहीं होती
सामान्यतः सूर्य मंदिर के निर्माण के पूर्व अरुणस्तंभ, को स्थापित किया जाता है। सूर्य मंदिरों में उन्हें कमर तक चित्रित किया गया है। विष्णु जी के मंदिरों में, उन्हें दरवाजे की चौखट पर घोड़े की लगाम पकड़े हुए दिखाया जाता है
अरुण देव का स्त्री रूप धरना
कुछ लोक कथाओं के अनुसार एक समय अरुण देव ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया था , उस स्त्री रूप पर पहले देवराज इन्द्र और फिर स्वयं सूर्यदेव मोहित हो गए थे
उसी अरुणि जो अरुण देव का स्त्री रूप थी उससे देवराज इन्द्र ने बाली और सूर्यदेव ने सुग्रीव नामक पुत्र उत्पन्न किए थे , यह केवल लोक कथा ही प्रतीत होती है किसी पुराण या महाभारत में इसका प्रमाण हमें नहीं मिला , जय श्री हरी नारायण