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श्री कृष्ण के बिना अर्जुन ने कितने युद्ध जीते थे | Why Arjun Was Undefeated Even Without Krishna ?
आपने भी अक्सर ये सुना होगा के श्री कृष्ण के बिना अर्जुन कुछ भी न थे, और यह कहकर अर्जुन की प्रतिभा पर प्रश्न उठा दिया जाता है के कृष्ण न होते तो अर्जुन की मृत्यु निश्चित थी। इस लेख में हम अर्जुन द्वारा लड़े गए उन युद्धों की चर्चा करेंगे जिसमें श्रीकृष्ण उनके साथ नहीं थे, परंतु फिर भी वे विजयी हुए।
और ऐसे-ऐसे योद्धा, दानव, देव, राक्षस और अन्य प्राणी उनसे कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले ही पराजित हो चुके थे, जिनके बारे में जान आप भी अचंभित हो जाएंगे। खासकर जिनको लेकर अर्जुन को नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता है, वे न जाने कितनी बार श्री कृष्ण के बिना अर्जुन के हाथों पराजित हुए। आइये विस्तार से जानते उन अनसुने युद्धों के बारे में जिनमें आप जानेंगे के अर्जुन कितने शक्तिशाली थे।
द्रुपद के साथ युद्ध
पाण्डवों तथा धृतराष्ट्र के पुत्रों को अस्त्र-विद्या में निपुण देख द्रोणाचार्य ने गुरु-दक्षिणा स्वरूप उनसे मांगा – “पाञ्चालराज द्रुपद को युद्ध में कैद करके मेरे पास ले आओ। यही मेरे लिए सर्वोत्तम गुरु-दक्षिणा होगी।” अर्जुन ने द्राणाचार्य से कहा – “गुरुदेव! इन कौरवों को पराक्रम दिखाने के पश्चात् हम लोग युद्ध करेंगे।”
तब राजा द्रुपद ने कौरवों को देखकर उन पर सब ओर से धावा बोल दिया और बाणों का बड़ा भारी जाल-सा बिछाकर कौरव सेना को मूर्छित कर दिया। द्रुपद ने कर्ण और दुर्योधन के सम्पूर्ण अंगों की संधियों में पृथक-पृथक कई बाण मारे, जिससे कर्ण के सम्पूर्ण अंग क्षत-विक्षत हो गए। वह भयभीत हो रथ से कूद कर भाग चला, तथा कौरव-सैनिक चीखते-चिल्लाते हुए पाण्डवों की ओर भागे।
तदान्तर अर्जुन भीम और नकुल-सहदेव को साथ लेकर द्रुपद की सेना से भिड़ गए, उनमें बड़ा ही भयंकर युद्ध हुआ। कुछ ही देर में अर्जुन द्रुपद पर हावी हो गए, और तलवार लेकर सहसा पंचाल नरेश के रथ पर कूद पड़े। इस प्रकार द्रुपद के रथ पर चढ़कर अर्जुन ने उन्हें अपने काबू में कर लिया। समस्त सैनिकों को अपना बाहुबल दिखाते हुए अर्जुन द्रुपद को बंधी बनाकर सिंहनाद करके वहाँ से लौटे।
गंधर्व चित्ररथ से युद्ध
जब पांडवों के साथ कुंती ने पांचाल देश की ओर प्रस्थान किया। तब मार्ग में एक जगह गंधर्वराज अंगारपर्ण चित्ररथ अपनी पत्नी के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। उस एकांत में पांडवों की पदचाप सुनकर वह क्रुद्ध हो उठा।
पांडवों में सबसे आगे हाथ में मशाल लिये अर्जुन थे। जब उसने अर्जुन पर प्रहार किया तो अर्जुन ने उस पर आग्नेयास्त्र छोड़ दिया, जिससे वह मूर्छित हो गया। उसकी पत्नी कुंभीनसी ने युधिष्ठिर की शरण ग्रहण की, तो पांडवों ने चित्ररथ को छोड़ दिया। चित्ररथ ने कृतज्ञता प्रदर्शन करते हुए अर्जुन को चाक्षुषी विद्या सिखायी तथा गंधर्वलोक के सौ-सौ घोड़े प्रदान किये। वे घोड़े कभी भी स्मरण करने पर उपस्थित हो सकते थे।
द्रौपदी स्वयंवर युद्ध
स्वयंवर के उपरांत जब कर्ण और अर्जुन आमने-सामने आए थे, तो यह इन दोनों की पहली भिड़ंत थी। वहाँ सर्वप्रथम अर्जुन ने साधारण बाणों से ही कर्ण के कई अंगों को बींध डाला था, जिससे उन्हें मूर्छा आने लगी। कर्ण ने भी अर्जुन के कई बाणों को काट डाला था। दोनों में कौन बड़ा था, कौन छोटा, यह बताना असंभव था।
अंत में कर्ण बोले, “मैं आपके बाहुबल से बहुत संतुष्ट हूँ। आप में थकावट का कोई चिन्ह नहीं देता और आपने सभी अस्त्रों-शस्त्रों को जीतकर मानो अपने काबू में कर लिया है। आपकी यह सफलता देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। आप मूर्तिमान धनुर्वेद हैं? या परशुराम? अथवा आप इन्द्र? या आप स्वयं साक्षात विष्णु हैं?” यह कहकर कर्ण ब्रह्म-तेज को अजय मानते हुए युद्ध से हट गए।
दिग्विजय
जब युधिष्ठिर को छोड़कर चारों भाई कर वसूली के लिए दिग्विजय करने का निर्णय किया, तो वहाँ व्यास मुनि बोले, “अर्जुन, तुम देवताओं द्वारा सुरक्षित उत्तर दिशा में जाओ, क्योंकि देवताओं को जीतकर वहाँ से बलपूर्वक रत्न ले आने में तुम ही समर्थ हो।” तदानंतर अर्जुन यात्रा पर निकल गए और अनेक देशों तथा राजाओं को पराजित कर उनसे कर वसूल किया।
दिग्विजय करते हुए जब वे भगदत्त की नगरी पहुंचे तो उससे अर्जुन का बड़ा भीषण युद्ध हुआ, परंतु भगदत्त को पराजय का सामना करना पड़ा। वहाँ से अर्जुन कई पर्वतीय देशों में गए जिनमें अंतर्गिरी, बहिर्गिरी और उपगिरि प्रमुख थे और उनके नरेशों को पराजित कर उनसे कर वसूला। इसके उपरांत किम्पुरुषदेश जहां किन्नरों का निवास था, गुह्यकों द्वारा सुरक्षित हाटकदेश तथा उत्तर कुरुपुर पर विजय पाकर अर्जुन इंद्रप्रस्थ लौट आए।
महादेव से युद्ध
हालांकि यह युद्ध अर्जुन हार गए थे, परंतु फिर भी उन्होंने महादेव को युद्ध में संतुष्ट करके महा पाशुपतास्त्र प्राप्त किया था।
विराट युद्ध
दुर्योधन ने कर्ण, भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, दुशासन आदि के साथ मिलकर विराट नगर की राजधानी पे हमला कर उनकी गायों को लूट लिया था।
तब अर्जुन ने विराट पुत्र उत्तर को सारथी बनाकर गायों को छुड़ाने के लिए समस्त कौरव योद्धाओं से अकेले युद्ध किया। वहाँ अर्जुन के हाथों गुरु द्रोण, अश्वत्थामा, दुर्योधन, कृपाचार्य सहित अन्य समस्त कौरव योद्धा पराजित हुए थे। कर्ण को तो वहाँ तीन बार पराजय का सामना करना पड़ा था।
घोष यात्रा युद्ध
महाभारत के वन पर्व अध्याय 237 के अनुसार जब जुए में अपना सब कुछ गवां देने के उपरांत पांडव वन में निवास कर रहे थे, तो एक समय कर्ण और शकुनि ने दुर्योधन को उकसाया और बोले, “महाराज! सुनने में आया है कि पांडव लोग द्वैतवन में सरोवर के तट पर वनवासी ब्राह्मणों के साथ रहते हैं। महाराज! तुम उत्कृष्ट राजलक्ष्मी से सुशोभित होकर वहाँ चलो, तुम्हें देख उन पांडवों को जलन होगी।”
जब दुर्योधन अपनी सेना लेकर वन में पहुँचा, तो उसने देखा के जहां पांडव हैं, उससे पहले एक सरोवर है जिसे गन्धर्वराज ने घेर रखा है। दुर्योधन ने सैनिकों को यह आदेश देकर भेजा कि ‘गन्धर्वों को वहाँ से मार भगाओ’।
जब गन्धर्वराज चित्रसेन को यह ज्ञात हुआ तो उसने बाकी गन्धर्वों के साथ वहाँ पहुँचकर दुर्योधन की सेना पर आक्रमण कर दिया। वहाँ चित्रसेन ने कर्ण को युद्ध से भगाकर दुर्योधन को बंधी बना लिया।
तब युधिष्ठिर के कहने पर अर्जुन ने दुर्योधन को छुड़ाने की प्रतिज्ञा की। फिर अर्जुन ने उन गन्धर्वों से युद्ध किया और उन्हें बुरी तरह पराजित कर कितने ही गन्धर्वों को मार गिराया। यह देख गंधर्वराज चित्रसेन स्वयं युद्ध करने आए, उन्हें भी अर्जुन ने बिना किसी परिश्रम के ही पराजित कर दिया। इसके बाद गंधर्वराज ने दुर्योधन को मुक्त कर दिया।
निवातकवच और कालकेय से युद्ध
इंद्रभवन में जब अर्जुन ने अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा ग्रहण कर ली, तो एक दिन देवराज इन्द्र अर्जुन के पास आए और बोले, “निवातकवच नामक दानव मेरे शत्रु हैं। उनकी संख्या तीन करोड़ बतायी जाती है और उन सभी के रूप, बल और तेज एक समान हैं। तुम उन दानवों का संहार कर डालो। इतने से ही तुम्हारी गुरु-दक्षिणा पूरी हो जायेगी।”
तब अर्जुन और उन दानवों का भीषण युद्ध हुआ था। अंततः अर्जुन ने उन सब पर वज्रास्त्र का उपयोग कर दिया, जिससे पृथ्वी के भीतर घुस जाने पर भी वे बच न सके। सभी दानव मारे गये और शेष जीवित बचने वाले दानव अपने प्राणों की रक्षा के लिये अर्जुन से क्षमा मांगने लगे।
इसी तरह एक अन्य कालकेय नामक असुर के साथ भी अर्जुन का भयंकर युद्ध हुआ था। उन असुरों का बल तो निवातकवचों से भी बहुत अधिक था। अर्जुन ने उन असुरों से पूरे पांच दिन और रात लगातार युद्ध किया और युद्ध के अंत में उन सभी असुरों का संहार कर दिया।
अश्वमेध यज्ञ युद्ध
अर्जुन ने अश्वमेध यज्ञ के दौरान कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े, जो उनकी वीरता और युद्ध कौशल को दर्शाते हैं। इस अभियान का उद्देश्य युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ को सफलतापूर्वक सम्पन्न करना था, जिसके लिए अर्जुन ने विभिन्न राज्यों में जाकर चुनौती स्वीकार की। और उनको पराजित भी किया, इन युद्धों में अर्जुन ने अपनी दिव्यास्त्रों की क्षमता और रणनीति का प्रभावशाली उपयोग किया, जिससे कई राजाओं ने आत्मसमर्पण कर दिया। इन विजयों ने न केवल युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ की सफलता सुनिश्चित की, बल्कि पूरे भारतवर्ष में पांडवों की शक्ति और प्रतिष्ठा को भी दृढ़ता से स्थापित किया,
तो यह वो सभी युद्ध थे जो श्री कृष्ण के बिना अर्जुन ने जीते थे, जय श्री कृष्ण