Follow us
बलराम कितने शक्तिशाली थे | बलराम के अस्त्र शस्त्र और उनके युद्ध | Was Balarama as powerful as Shri Krishna ?
हालांकि श्रीकृष्ण की लीलाओं की व्यापक चर्चा होती है, लेकिन उनके बड़े भाई बलराम की महानता और शक्तियों का अक्सर उतना उल्लेख नहीं होता। वे अपार शारीरिक बल, शस्त्र कौशल और तप के धनी थे। उनकी गदा के प्रहार से बड़े-बड़े योद्धा धराशायी हो जाते थे। आखिर कितने शक्तिशाली थे दाऊ ? आइए, विस्तार से जानते उनकी अद्वितीय शक्तियों के बारे में |
बलराम का जन्म और प्रारंभिक जीवन
बलराम, देवकी के सातवें गर्भ में थे, और कंस की कड़ी दृष्टि देवकी पर निरंतर बनी रहती थी, इसलिए इस शिशु का बच पाना भी अत्यंत कठिन था। तब भगवान विष्णु के आदेश पर देवी महामाया ने देवकी के गर्भस्थ भ्रूण को रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया। इस प्रकार, रोहिणी के गर्भ से उनका जन्म हुआ। इसी कारण उनका एक नाम संकर्षण भी है। जन्म के तुरंत बाद ही उनको नंद बाबा के यहाँ लालन-पालन के लिए भेज दिया गया।
बलराम की अनंत शक्ति और कौशल
संकर्षण जी की शक्ति अनंत है। वे भगवान अनंत शेषनाग के पूर्ण अवतार हैं, जो स्वयं भगवान नारायण के प्रत्यक्ष रूप हैं। उनका नाम ही उनकी अनंत शक्ति का संकेत करता है। “अनंत” का अर्थ है अंतहीन।
शिक्षा और ज्ञान
हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 79 के अनुसार, बलराम जी ने अपने भाई श्रीकृष्ण के साथ सान्दीपनि आश्रम में जाकर शिक्षा ग्रहण की थी। चौंसठ दिन और रातों में उन्होंने समस्त वेदों और वेदांगों का अध्ययन और ज्ञान प्राप्त कर लिया।
थोड़े ही समय में गुरु ने उन्हें युद्ध में प्रयोग होने वाले सभी अस्त्र-शस्त्र और धनुर्वेद के चारों अंगों की शिक्षा दी। उनकी अलौकिक बुद्धिमत्ता को देखकर गुरु सान्दीपनि ने सोचा कि मानो स्वयं चंद्रमा और सूर्य देव वहां उपस्थित हो गए हों।
राक्षसों और शत्रुओं का विनाश
बलराम जी ने बचपन में ही धेनुकासुर, मुष्टिक, कूट और प्रलंभासुर जैसे अन्य बहुत से शक्तिशाली राक्षसों तथा पहलवानों को मार गिराया था। जब श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर दिया, तो कंस के आठ छोटे भाई – कंक और न्यग्रोध आदि, अपने बड़े भाई का बदला लेने के लिए श्रीकृष्ण और बलराम जी की ओर दौड़े।
वहाँ दाऊ ने परिघ से उन्हें ऐसे मार डाला जैसे वे कोई कीड़े हों।
बलराम जी का प्रिय शस्त्र – हल
बलराम को हलायुध और हलधर कहा गया है क्योंकि उनका प्रिय शस्त्र हल था। उस हल का नाम ‘सम्वर्तक’ था। उन्होने अपने हल का कई बार उपयोग किया। इसके दो प्रमुख उदाहरण हैं:
हस्तिनापुर को डुबोने की शक्ति
भागवत पुराण स्कन्द 10 अध्याय 68 के अनुसार जब दुर्योधन ने अपनी बेटी लक्ष्मणा और श्री कृष्ण के पुत्र सांभ के प्रेम को अस्वीकार कर दिया और सांभ को बंधी बना लिया, तब बलराम जी ने तुरंत हस्तिनापुर की ओर प्रस्थान किया और विनम्रता से कौरवों से आग्रह किया कि सांभ को छोड़ दिया जाए और लक्ष्मणा को उनके साथ जाने की अनुमति दी जाए। लेकिन कौरवों ने न केवल इस प्रस्ताव को ठुकराया, बल्कि बलराम जी का अपमान भी किया।
तब क्रोधित होकर उन्होने बिना किसी चेतावनी के अपना हल हस्तिनापुर की भूमि में गाड़ दिया और पूरी नगरी को गंगा की ओर खींचना आरंभ कर दिया। वे हस्तिनापुर को गंगा में डुबो देना चाहते थे। उनकी इस शक्ति को देखकर हस्तिनापुर में हाहाकार मच गया, और भयभीत कौरवों ने क्षमायाचना करते हुए दाऊ की सभी शर्तें मान लीं। अंततः बलराम जी सांभ और लक्ष्मणा को द्वारिका वापस लेकर आए और वहां वैदिक रीति-रिवाज के साथ दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ।
यमुना नदी को खींचना
भागवत पुराण स्कन्द 10 अध्याय 65 में मिलता है , इसके अनुसार एक बार जब संकर्षण जी अपनी पत्नी रेवती और गोपियों के साथ यमुना नदी के तट पर गए, तब उन्होंने यमुना से अपनी ओर आने को कहा ताकि वे जलक्रीड़ा कर सकें। लेकिन यमुना ने उनके आदेश की अवहेलना की।
क्रोधित होकर उन्होने अपना हल उठाया और यमुना नदी को खींचना शुरू कर दिया ,और यमुना हल के बनाए हुए मार्ग से बहने लगी, तब भयभीत होकर यमुना जी ने क्षमा मांगी और संकर्षणजी की आज्ञा का पालन करना पड़ा
उनके अन्य अस्त्र शस्त्र
हल के अलावा बलराम जी के पास सौनन्द नामक गदा और रौद्र नामक भगवान शिव का एक धनुष भी था। कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले इस धनुष को उन्होंने अभिमन्यु को दिया था।
बलराम जी द्वारा लड़े गए युद्ध
जरासंध से युद्ध
हरिवंश पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, जरासंध ने मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया, और हर बार बलराम और श्रीकृष्ण ने उसकी सेना को पराजित किया। 17वें आक्रमण के समय संकर्षण और जरासंध के बीच भयंकर युद्ध हुआ। बलराम जी ने अपने अद्वितीय पराक्रम से जरासंध की विशाल सेना को ध्वस्त कर दिया। अपने हल और गदा से बलराम जी ने भीषण विनाश किया । जब बलराम जी ने जरासंध का वध करने हेतु अपना हल उठा लिया तो श्री कृष्ण ने उन्हे ऐसा करने से रोक दिया और उनको बताया के जरासंध की मृत्यु भीम के हाथों ही लिखी है, इस प्रकार बलराम जी ने जरासंध को जीवनदान दिया था
द्विविद वानर का वध
द्विविद वानर में दस हजार हाथियों का बल था। जब वह वानर बलराम जी की अवहेलना करने लगा। तो वे उसकी यह चेष्टा देखकर क्रोधित हो गये। द्विविद ने बड़ी-बड़ी चट्टानों, वृक्षों को उनकी और चलाया परन्तु बलराम जी ने अपने मूसल से उन सभी चट्टानों को खेल-खेल में ही चकनाचूर कर दिया। तदनंतर दाऊ ने हल और मूसल अलग रख दिये तथा क्रुद्ध होकर दोनों हाथों से उसके (हँसली) पर प्रहार किया। इससे वह वानर खून उगलता हुआ धरती पर गिर पड़ा।
रोमहरषण का वध
भागवत पुराण स्कन्द 10 अध्याय 78 के अनुसार – द्वापर युग के अंत में, सहस्रों ऋषि नैमिषारण्य के तट पर एक हज़ार वर्ष का यज्ञ करने के लिए एकत्र हुए ताकि कलियुग के आगमन को रोका जा सके। उन्होंने अपने नेता के रूप में व्यासदेव के प्रमुख शिष्य रोमहरषण को नियुक्त किया, जो उस समय भी उपस्थित थे जब शुकदेव गोस्वामी ने राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत सुनाया था।
जब भगवान बलराम सभा में पहुंचे, तो वहाँ उपस्थित सभी लोग उन्हें परमेश्वर के रूप में समझते हुए उनके सम्मान में खड़े हो गए। लेकिन रोमहरषण, जो अपने नेता होने के पद पर अभिमान कर रहे थे, खड़े नहीं हुए। दाऊ समझ गए कि भले ही रोमहरषण वेदांत के विशेषज्ञ थे, लेकिन वे इन शिक्षाओं का वास्तविक ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाए थे। उन्हें इस यज्ञ का नेतृत्व करने के लिए अयोग्य मानते हुए, बलराम जी ने कुशा की एक नोक से उन्हें स्पर्श किया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई
बाणासुर युद्ध
अनिरुद्ध, श्रीकृष्ण के पौत्र, बाणासुर की पुत्री से प्रेम करते थे। इस बात का ज्ञात होते ही बाणासूर ने अनिरुद्ध को अपने महल में बंदी बना लिया,। जब श्रीकृष्ण और बलराम जी बाणासुर से युद्ध करने पहुँचे, तो बाणासुर ने भगवान शिव से सहायता मांगी। भगवान शिव ने अपने शिवगणों के साथ युद्ध में बाणासुर का साथ दिया।
इस महायुद्ध में संकर्षण जी ने अपनी अद्वितीय शक्ति का प्रदर्शन करते हुए शिवगणों को पराजित किया। उनके प्रहार से शिवगणों की सेना बिखर गई। उन्होने बाणासुर के दो प्रमुख मंत्रियों कुम्भाण्ड और कुपकर्ण का भी वध किया था, बलरामजी की भी बाणासुर की हार सुनिश्चित करने में विशेष भूमिका थी
यमराज और बलराम का युद्ध
स्कन्द पुराण अवन्त्य खंड अध्याय 288 के अनुसार – एक समय बलरामजी और यमराज का युद्ध छिड़ गया , बहुत समय तक युद्ध चलने पर अंततः यम ने बलराम जी पर अमोघ अस्त्र कालदण्ड का प्रहार किया।
उस जलते हुए कालदण्ड को आते देख बलरामजी उसे ने लीलापूर्वक पकड़ लिया ओर पुनः उसे यमराजपर ही चलाने का विचार किया। इतने में ही ब्रह्माजी वहाँ आए और संकर्षण जी से बोले -‘ चराचर जगत्को धारण करने वाले वीरवर बलभद्रजी ! आप इस कालास्त्र को यमराज के ऊपर न छोडिये। इस संसार में आपकी समानता करनेवाला कोई नहीं है। सम्पूर्णं विश्वका पालन करनेवाले भगवान् विष्णु को भी आप सदा अपनी गोदमें धारण करते हैं । भला आपके समान दूसरा कौन है, जो सम्पूर्ण जगत् का भार वहन करनेमें समर्थ हो ।
भीम से युद्ध
मलयुध में उन्होने ने भीम को पराजित कर दिया था , इससे भीम इतने प्रभावित हो गए के उन्होने बलराम जी से उन्हे अपना शिष्य बनाने का अनुरोध किया , बलराम जी ने भी उन्हे अपना शिष्य बना लिया, दुर्योधन ने भी गदा चलाने की शिक्षा बलराम जी से ही ग्रहण की थी,
बलराम जी ने महाभारत युद्ध क्यों नहीं लड़ा
संकर्षण जी को कौरव और पांडव दोनों ही पक्ष प्रिय, भविष्य में होने वाले उस भारी ऊटपाट को वो नहीं देखना चाहते थे, इसीलिए वे तीर्थ यात्रा पर निकल गए थे
बलराम जी की महानता और विरासत
हरिवंश पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण संकर्षण जी की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि बलराम सृष्टि के विनाश के बाद भी शेष रहते हैं, और वे शेषनाग के रूप में संसार का आधार हैं। उनका सिर आकाश, शरीर जल, और धैर्य पृथ्वी है। वे अनंत और अपरिमेय हैं, वे हजार मुखों और भुजाओं वाले अनंत, अपरिमेय और अदृश्य हैं, जिनका वास्तविक रूप देवताओं के लिए भी अज्ञात है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे और बलराम एक ही शक्ति के दो रूप हैं, जो पृथ्वी के कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं। जय श्री कृष्ण