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काली के रूप: दक्षिणा, श्मशान, भद्र और महाकाली (Kali ke Roop: Dakshina, Shamshan, Bhadra, and Mahakali)

माँ काली के विभिन्न काली के रूप , जिनमें दक्षिणा काली, श्मशान काली, भद्रकाली और महाकाली प्रमुख हैं, हिन्दू धर्म में अपना विशेष स्थान रखते हैं। इस लेख को पढ़कर इन रूपों को विस्तार से समझें।
काली शब्द का अर्थ है – काल की पत्नी, और काल भगवान शिव का नाम है। इस प्रकार, शिव पत्नी को ही काली की संज्ञा से अभिहित किया गया है। तंत्र शास्त्रों में भगवती आद्या काली के दस भेद कहे गए हैं, जिन्हें हम दस महाविद्या के नाम से जानते हैं, और इनमें भगवती काली मुख्य हैं।
भगवती काली के रूप भेद असंख्य हैं। तत्वतः सभी देवियाँ, योगनियाँ आदि भगवती की ही प्रतिरूपा हैं। फिर भी, इनके आठ भेद मुख्य माने जाते हैं। इनमें भद्रकाली, श्मशान काली, दक्षिणा काली और महाकाली यह चार भेद विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। तंत्र ग्रन्थों के अनुसार, यह चार रूप इतने शक्तिशाली हैं कि आप उनकी कल्पना भी नहीं कर सकते। देवी काली के रूप को विस्तार से जानने के लिए इस लेख के अंत तक बने रहें।
दक्षिणा काली
भगवान शिव प्रकृति अर्थात महाभूत हैं। अस्थि-कंकाल आदि उज्ज्वल वर्ण सत्वगुण के बोधक हैं। शमशान में महाभूत शिव, शवमुंड आदि के रूप में तथा अस्थि-कंकाल आदि सत्वगुण के रूप में उपस्थित रहते हैं।
भगवती का यह रूप ‘दक्षिणा काली’ क्यों कहलाया अथवा “दक्षिणा काली’ शब्द का भावार्थ क्या है? इस सम्बन्ध में शास्त्रों ने विभिन्न मत प्रस्तुत किए हैं, जो संक्षेप में इस प्रकार हैं:

- निर्वाण तंत्र के अनुसार: दक्षिण दिशा में रहने वाले सूर्य-पुत्र यम, काली का नाम सुनते ही भयभीत होकर दूर भाग जाता है, अर्थात वह काली-उपासकों को नरक में नहीं ले जा सकता, इसी कारण भगवती को “दक्षिणां काली” कहते हैं।
- अन्य मतानुसार:
- जिस प्रकार किसी धार्मिक कर्म की समाप्ति पर दक्षिणा फल की सिद्धि देने वाली होती है, उसी प्रकार भगवती काली भी सभी कर्म फलों की सिद्धि प्रदान करती हैं, इस कारण उनका नाम दक्षिणा है।
- देवी वर देने में अत्यन्त चतुर हैं इसलिए उन्हें ‘दक्षिणा’ कहा जाता है।
- सर्वप्रथम दक्षिणामूर्ति भैरव ने इनकी आराधना की थी, अतः भगवती को “दक्षिणा काली” कहते हैं।
- पुरुष को दक्षिण तथा शक्ति को “वामा” कहते हैं। वही वामा दक्षिण पर विजय प्राप्त कर, महामोक्ष प्रदायिनी बनी, इसी कारण तीनों लोकों में उन्हें ‘दक्षिणा’ कहा गया है।
काली उपासकों में सर्वाधिक लोकप्रिय भी भगवती ‘दक्षिणा काली’ ही हैं! जो काली के रूप में मुख्य भी मानी जाती हैं

गुह्यकाली, भद्रकाली, श्मशान काली तथा महाकाली-ये चार काली के रूप भी प्रकारान्तर से भगवती दक्षिणा काली के ही हैं तथा इनके मंत्रों का जप, न्यास, पूजन, ध्यान आदि भी प्रायः भगवती दक्षिणा काली की भांति ही किया जाता है।
दक्षिणा काली के अनेक मंत्र हैं, यदि श्रद्धा भक्ति पूर्व भगवती के मंत्रों का साधन किया जाय तो साधक को चतुवर्ग की प्राप्ति तो होती है, अंत में भगवती का सायुज्य भी प्राप्त होता है।
वराही तंत्र के अनुसार, केवल दक्षिणा काली के महामंत्रों के ज्ञान से साधक जीवन में ही परम ज्ञान को प्राप्त कर लेता है। इन मंत्रों के कोई दोष-गुण परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती; वे स्वयं सिद्ध हैं। जो साधक काली की उपासना करता है, वह वाक्सिद्धि प्राप्त करता है, उसके शत्रु केवल दर्शन से निर्बल हो जाते हैं, और राजाओं तक को वश में कर लेता है। अंततः वह स्वयं देवी के गणों में शामिल हो जाता है। दक्षिणा काली के 22 अक्षरों वाले मंत्र के दो मन्त्रोद्धार दिए गए हैं, तत्पश्चात षोडश न्यास, तत्त्व न्यास और बीज न्यास का विधान है। दक्षिणा काली की सम्पूर्ण साधना साधक को अद्वितीय तेज, सिद्धि और मोक्ष प्रदान करती है।
शमशान काली
भगवती काली को शमशान वासिनी कहा गया है। शमशान का लौकिक अर्थ है – जहां मृत प्राणियों के शरीर जलाए जाते हैं। परंतु देवी के निवास स्थल के संबंध में शमशान शब्द का यह अर्थ लागू नहीं होता है। पंच महाभूतों का चिद्- ब्रह्मा में लय होता है। भगवती आद्याकाली चिद्- ब्रह्मा स्वरूपा हैं। जिस स्थान पर पंचभूत (अर्थात पृथ्वी, जल, वायु, तेज और आकाश) लय हों, वही शमशान है और वहीं भगवती का निवास है।

भगवान शिव प्रकृति अर्थात महाभूत हैं, तथा अस्थि-कंकाल आदि उज्ज्वल वर्ण सत्वगुण के बोधक हैं अर्थात शमशान में महाभूत शिव, शवमुंड आदि के रूप में तथा अस्थि-कंकाल आदि सत्वगुण के रूप में उपस्थित रहते हैं।
शिव से जब शक्ति प्रथक हो जाती है, तो वह शव मात्र रह जाता है अर्थात जिस प्रकार शिव का अंश स्वरूप जीव-शरीर प्राण रूपी शक्ति के हट जाने पर मृत्यु को प्राप्त होकर शव हो जाता है, उसका भौतिक शरीर शव की भांति निर्जीव हो जाता है, उस स्थिति में भगवती आद्या शक्ति उसके अपना आसान बनाती हैं अर्थात उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं और उसे स्वयं में सन्निहित कर, भौतिक जगत से मुक्त कर देती हैं। यही भगवती का शवासन है और इसीलिए शव को भगवती का आसान कल्पित किया गया है।
वराही तंत्र में श्मशान काली की उपासना को अत्यंत गोपनीय माना गया है। कहा गया है कि इनकी साधना बिना दीक्षा और गुरुपरंपरा के करना घातक हो सकता है। यह देवी तंत्र मार्ग के लिए महामंत्रशक्ति का स्वरूप हैं। उन्हें ही “तामसी काली” कहा गया है। यह अविद्या को नष्ट कर परम विद्या का द्वार खोलती हैं।
बृहद्धर्म पुराण में उल्लेख मिलता है कि श्मशान काली की उपासना केवल उन्हीं को करनी चाहिए जो भोग और भय दोनों को जीत चुके हों। इनकी उपासना से रोग, शत्रु, तांत्रिक बाधाएं, और मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।
शमशान काली के साधक काम, क्रोध, भय, घृणा, लोभ, मोह, अहंकार यह सब अपने अधीन कर लेते हैं।
भद्रकाली
इन्हें दक्षयज्ञविनाशिनी के रूप में जाना जाता है। शिव पुराण के अनुसार, सर्वप्रथम इनकी उत्पत्ति तब हुई, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर आत्मदाह किया था, तब भगवान शंकर ने दक्ष, उसकी सेना और वहां उपस्थित उनके सभी सलाहकारों को दंड देने का ठान लिया और वहीं उन्होंने अपनी एक जटा को निकालकर रोषपूर्वक उसे पर्वत के ऊपर दे मारा जिससे महाबली वीरभद्र उत्पन्न हुए,

और एक दूसरी जटा से भगवान शिव ने भद्रकाली को उत्पन्न किया जो बड़ी भयंकर दिखाई देती थीं और करोड़ों भूतों से घिरी हुई थीं। क्रोध से भरे हुए भगवान शिव ने वीरभद्र और भद्रकाली से कहा कि तुरंत जाओ और दक्ष का यज्ञ नष्ट कर दो, और वहाँ इन दोनों ने बड़ी ही क्रूरता से दक्ष का यज्ञ नष्ट कर वहाँ उपस्थित सभी देवों को दंड दिया था।
विभिन्न कल्पों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों द्वारा असुरों का वध वर्णित है। श्वेत-लोहित कल्प में महिषासुर और दारुकासुर का वध भद्रकाली द्वारा किया गया था, यह तथ्य कुछ शाक्त ग्रंथों और स्थानीय परंपराओं में मिलता है, यद्यपि देवी महात्म्य में महिषासुरमर्दिनी का एक एकीकृत रूप वर्णित है। प्रत्येक कल्प में देवी की लीलाएँ भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट होती हैं।
कुछ शाक्त आगमों में देवी दुर्गा के तीन प्रमुख तामसिक रूपों — उग्रचण्डा, भद्रकाली और कात्यायनी — का उल्लेख मिलता है। भद्रकाली यहाँ रौद्र और सुरक्षात्मक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। उग्रचण्डा अपनी प्रचंडता और शत्रुओं के नाश के लिए जानी जाती हैं, जबकि कात्यायनी सौंदर्य और शक्ति का समन्वय हैं। भद्रकाली इन तीनों में एक विशिष्ट स्थान रखती हैं, जो भक्तों को भय से मुक्ति और दुष्टों का दमन करने वाली हैं।
माँ भद्रकाली, माँ मातंगी की बहन हैं, जो श्रीकुल परंपरा से संबंधित हैं। इस प्रकार, माँ भद्रकाली भी माँ ललिताम्बिका का ही एक स्वरूप हैं। देवी भागवत के अनुसार, माँ भद्रकाली मणिद्वीप में देवी के साथ निवास करती हैं और वे शाश्वत हैं। वे अपनी लीलाओं का संचालन करने के लिए अनेक माध्यमों (जैसे भगवान रुद्र की जटा से प्रकट होना) से अनेक रूप धारण करती हैं।
महाकाली
महाकाली समय और आकाश की सीमाओं से परे हैं। वे केवल एक सृष्टि की नहीं, बल्कि असंख्य ब्रह्मांडों की संहारक शक्ति हैं। उनका स्वरूप केवल एक देवी नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि की आदि और अंत का रहस्य है।

देवी महात्म्य के प्रथम अध्याय में महाकाली को विश्वरूपिणी शक्तिरूपा के रूप में वर्णित किया गया है — दस मुख, दस भुजाएं और दस चरणों वाली। उनके हर हाथ में विभिन्न देवताओं के आयुध हैं, जो यह दर्शाते हैं कि सभी देवशक्तियाँ उन्हीं से उत्पन्न होती हैं। एकमुखी रूप में भी उनकी दस भुजाओं के साथ ही दर्शाया जाता है।
वो महामाया महाकाली ही थीं जिन्होंने भगवान विष्णु की मधु और कैटभ का वध करने में सहायता की थी, उससे पहले मधु और कैटभ के साथ पाँच हज़ार वर्षों तक युद्ध करते रहे थे भगवान विष्णु पर कोई परिणाम नहीं निकल रहा था।
एक समय जब महाकाली ने युद्ध में समस्त दैत्यों का संहार कर दिया, तो उन्होंने विजय के उत्साह और उन्माद में एक उग्र तांडव नृत्य आरंभ किया। उनका यह नृत्य इतना प्रचंड और विकराल था कि तीनों लोकों में कंपन और अस्थिरता उत्पन्न हो गई।
देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस स्थिति को शांत करें। लेकिन देवी किसी की बात सुनने की स्थिति में नहीं थीं।
तब शिवजी स्वयं एक निर्जीव शव के समान रक्तरंजित रणभूमि पर लेट गए, जब देवी का पाँव अनजाने में अपने पति शिवजी के वक्ष पर पड़ गया, तो उन्हें अचानक भान हुआ कि वे शिवजी को रौंद रही हैं। यह समझते ही लज्जा से उनकी जीभ बाहर निकल आई, जो उनके प्रसिद्ध रूप का प्रतीक बन गया। जय माँ दुर्गा।
निष्कर्ष:
इस लेख में, हमने माँ काली के रूप (चार अत्यंत महत्वपूर्ण और शक्तिशाली स्वरूपों ) – दक्षिणा काली, श्मशान काली, भद्रकाली और महाकाली – के बारे में विस्तार से जाना। प्रत्येक रूप का अपना विशिष्ट महत्व, उत्पत्ति और उपासना विधि है। उम्मीद है, यह काली के रूप पर आधारित यह जानकारी आपके लिए ज्ञानवर्धक रही होगी। माँ काली के किस रूप ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया? नीचे टिप्पणी अनुभाग में अपने विचार साझा करें।

महाकाली के शाश्वत साथी महाकाल हैं, जो स्वयं काल और मृत्यु से परे माने जाते हैं। परंतु महाकाली तो स्वयं महाकाल से भी परे हैं — वे कालातीत, अखंड और नित्य हैं।
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महाकाली ही चंडीविद्या हैं। प्रधानिक रहस्यम में वे आदिम ऊर्जा हैं। वैकृतिक रहस्य में वे दस हाथों, दस मुखों और दस पैरों वाली योगनिद्रा हैं।
