अंगद की कहानी | How powerful was Angad in Ramayana ?

अंगद

वाल्मीकि कृत रामायण की राम कथा में अंगद की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, अंगद राजा बाली और तारा के बेटे और सुग्रीव के भतीजे थे, कितने शक्तिशाली थे अंगद और क्या थी उनकी शक्तियाँ आइये विस्तार से जानते हैं

माता सीता को खोजने मे थी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका

बाली की मृत्यु के उपरांत अंगद, सुग्रीव तथा अन्य प्रभावशाली वानरों के संरक्षण में रहे और उन्होने ने उनका मार्गदर्शन किया। जब सुग्रीव ने करोड़ों वानरों को माता सीता की खोज के लिए भेजा तब भी अंगद ने उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड सर्ग 41 के अनुसार:

लंका पुरी पहुँचने पर श्री राम ने लंका के उत्तर द्वार को घेरने का उत्तरदायित्व महाबली अंगद को सौंपा था और उनके सहायक ऋषभ, गवाज्ञ, गज, गवय नामक वानर थे।

अंगद का दूत बनकर रावण की लंका में जाना

प्रभु श्री राम ने मंत्रियों से परामर्श कर रावण के पास दूत भेजने का विचार कर अंगद को भेजना निश्चित किया, और उनको रावण को यह संदेश देने के लिया कहा कि तूने मेरी स्त्री को हरण कर जो अपराध किया है उसका उचित दंड देने के लिए साक्षात काल बन मैं लंका के द्वार पर आ पहुंचा हूँ।

तब अंगद अग्नि की तरह आकाश मार्ग से उड़ कर रावण के भवन में जा पहुंचे और रावण के निकट जा खड़े हुए तथा श्री रामचन्द्र जी का हितकर संदेशा ज्यों का त्यों रावण को सुना दिया। फिर उन्होने अपना नाम बतला कर कहा कि मैं बाली पुत्र, श्री रामचन्द्र का दूत हूँ, और प्रभु राम ने कहा है कि अब घर के बाहर आकार युद्ध कर और मर्द बन जा, मैं तुझे मंत्रियों, पुत्रों तथा भाईवंदों सहित मारने आया हूँ। तेरे मारे जाने पर लंका का ऐश्वर्य विभीषण को मिलेगा। यह बातें तभी होंगी जब तू समनपूर्वक सीता मुझे ना देगा।

अंगद का धरती पे पैर जमाना, कैसे आया उनके पैर मे इतना दम

रामचरित मानस के अनुसार

जब अंगद ने भरी सभा में अपना पैर धरती पर जमा दिया तो उसे उठाते रावण के सेनापतियों तथा मेघनाद की भी हवा निकल गयी थी। आखिर एक वानर में इतनी शक्ति कैसे आई, तो इसका उत्तर बड़ा साधारण है।

जब वे राम जी का दूत बन कर आए तो रावण ने श्री राम के संदेश को नजरअंदाज कर दिया। यह देखकर अंगद को क्रोध आ गया और उन्होंने अपना पैर जमीन पर जमा दिया। उन्होंने रावण के सभी सेनापतियों को चुनौती देते हुए कहा कि यदि कोई मेरा यह पैर हटाने में सफल हो गया, तो श्री राम अपनी हार स्वीकार कर लेंगे और वापिस अयोध्या लौट जाएंगे।

उनको श्री राम पर पूर्ण विश्वास था, उन्हे स्मरण था कि ना तो प्रभु श्री राम वापिस लौटेंगे और न ही उनके पैर को हिलने देंगे, वह जानते थे कि उनकी पराजय स्वयं श्री राम की पराजय होगी। राम जी के प्रति उनकी आस्था से ही प्रोत्साहित होकर उन्होने वहाँ अपना पैर जमाया था और राम जी के आशीर्वाद से ही उनका पैर कोई हिला नहीं पाया।

सभी राक्षसों के असफल होने पर जब रावण पैर उठाने के लिए आगे बढ़ा तो उन्होने ने पैर हटा लिया और रावण वहीं गिर गया। वह बोले चुनौती सेनापतियों के लिए थी, तुम्हारे लिए नहीं। अगर गिरना ही है तो मेरे नहीं श्री राम के चरणों में गिरो और क्षमा मांग लो।

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उनके कठोर वचन सुन राक्षस राज अत्यंत क्रुद्ध हुआ और अपने मंत्रियों से बोला इस दुर्बुद्धि वानर को पकड़ कर मार डालो। तभी चार भयंकर राक्षसों ने अंगद को पकड़ लिया। अंगद ने उन्हें पकड़ लेने दिया, उन चार राक्षसों ने अंगद को पकड़ा ही था कि उन्होने उन चारों को पक्षी की तरह अपनी दोनों भुजाओं से लटका लिया और छलांग मार कर ऊंची अटारी पर चढ़ गए। उस छलांग के झटके से वह राक्षस भूमि पर गिर पड़े और उन राक्षसों की छाती फट गई। रावण के ऊंचे भवन की अटारी को रावण की आँखों के सामने ही एक ऐसी लात मारी जिससे वह फट गई।

उस राजभवन की अटारी को विध्वंस कर और लंका में सब को अपना नाम सुना, आकाश मार्ग से श्री रामचन्द्र के पास वापिस पहुँच गए।

अंगद द्वारा लंका में लड़े गए युद्ध

अंगद का मेघनाद से युद्ध

अंगद ने रावण के महापराक्रमी पुत्र मेघनाद को उनकी पहली भिड़ंत में पराजित कर दिया था। वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड सर्ग 44 के अनुसार, युद्ध क्षेत्र में अंगद जब अपने शत्रुओं को मार रहे थे, उस समय ही उन्होने मेघनाद पर वार करते हुए उसके रथ के सारथी और घोड़ों को बड़ी फुर्ती से मार डाला। तब उस भयंकर युद्ध में उनके द्वारा अपने सारथी और घोड़ों के मारे जाने पर, इंद्रजीत रथ को त्याग कर वहीं अन्तर्धान हो गया।

उनकी इस वीरता को देख, समस्त देवता, ऋषिगण तथा दोनों राजकुमार श्री रामचन्द्र और लक्ष्मण भी संतुष्ट हुए, क्योंकि युद्ध में इंद्रजीत कैसा बलवान था – यह बात सब लोग जानते थे। उस युद्ध में एक वानर द्वारा पराजित होने से इंद्रजीत अत्यंत क्रुद्ध हुआ था।

अंगद और वज्रदंष्ट्र का युद्ध

इसके उपरांत युद्ध कांड सर्ग 53 के अनुसार, वज्रदंष्ट्र नामक एक क्रूर राक्षस जो रावण का अनुयायी था, वह अपनी विशाल सेना को लेकर वहाँ युद्ध भूमि में पहुंचा, और वहाँ उसका सामना अंगद से हुआ। पहले तो अंगद ने उसकी राक्षसी सेना का संहार किया। अपने सेना को मारा जाना और एक वानर की जीत को देख, महाबली राक्षस वज्रदंष्ट्र कुपित हुआ, और स्वयं अंगद से युद्ध करने लगा। उसने अपने बाणों से पहले उनको घायल किया।

इसके उत्तर में अंगद ने बड़ी सी शिला उठाकर उस राक्षस की और चला दी, पर वह तुरंत रथ से कूद गया और उस शिला की नीचे दबकर उसका रथ नष्ट हो गया और उसके घोड़े मारे गए। गुस्साया हुआ वह राक्षस फिर से उनकी और दौड़ा, तब अंगद ने एक और विशाल शिला उसकी और फेंकी जिसके नीचे वह दब गया और मूर्छित हो गया। जब वह राक्षस सचेत हुआ तब वे उसके सामने ही खड़े थे, और उनके बीच पुनः युद्ध शुरू हो गया। अंत में अंगद ने उसी की तलवार से वज्रदंष्ट्र का सिर धड़ से अलग कर दिया।

अंगद का नरान्तक तथा महापार्शव से युद्ध

आगे चलकर उन्होने सुग्रीव के कहने पर रावण पुत्र नरान्तक पर भी प्रहार कर दिया था। युद्ध कांड सर्ग 69 के अनुसार अंगद नरान्तक के सामने जाकर उससे बोले, “इन तुच्छ वानरों के साथ युद्ध करने से तुझे क्या लाभ होगा, वज्रप्रहार के समान प्रहार करने वाले अपने भाले की चोट मेरी छाती पर कर।” अंगद के वचन सुनकर नरन्तक बहुत क्रुद्ध हुआ और उसने अपना भाला उनके ऊपर चलाया, किन्तु वह भाला वानरराज की वज्र समान छाती में लगकर टुकड़े टुकड़े हो भूमि पर गिर पड़ा।

फिर नरान्तक ने उनके सिर पर मुष्टिका प्रहार किया, जिससे उनके सिर पर घाव हो गया। तब वे नरान्तक के बल को देख विस्मित हुए। तब उन्होने भी नरान्तक पर मुष्टिप्रहार किया जिससे नरान्तक का कलेजा फट गया, उसका सारा शरीर रक्त से तर हो गया, वह वहीं पृथ्वी पर गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गयी।

एक और शक्तिशाली राक्षस जिसका नाम महापार्शव था, उसका वध भी उन्होने नरान्तक की ही तरह किया था। अंगद ने एक जोरदार प्रहार उसकी छाती पर किया जिससे उसका कलेजा फट गया और वहीं उसकी मृत्यु हो गयी थी। इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड सर्ग 98 में किया गया है।