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अशोक सुंदरी कौन थी : शिव और पार्वती की पुत्री अशोकसुंदरी की दिव्य गाथा
पौराणिक कथाओं में, देवी अशोक सुंदरी की कथा अद्वितीय है। यह कथा न केवल उनकी उत्पत्ति और सौंदर्य को दर्शाती है, बल्कि यह धर्म और सत्य की शक्ति का भी प्रतीक है। इस लेख में, हम अशोक सुंदरी की उत्पत्ति, उनके पति नहुष और दानवराज हुंड के वध की रोचक गाथा का विस्तार से वर्णन करेंगे।
Table of Contents
कल्पवृक्ष का अद्भुत रहस्य
प्राचीन काल की बात है, जब भगवान शिव और देवी पार्वती अपनी लीला में मग्न थे। एक दिन, वे दोनों नन्दन वन में भ्रमण के लिए गए। यह वन अपने प्राकृतिक सौंदर्य और दिव्य वातावरण के लिए प्रसिद्ध था। इस वन में स्थित था एक अद्भुत वृक्ष, जिसे कल्पवृक्ष कहा जाता था। यह कोई साधारण वृक्ष नहीं था, बल्कि देवताओं के लिए इच्छापूर्ति करने वाला दिव्य तरु था।
इस कल्पवृक्ष को देखकर देवी पार्वती आश्चर्यचकित हो गईं और उन्होंने भगवान शिव से इसका महत्व जानने की इच्छा प्रकट की। भगवान शिव ने कहा:
“हे प्रिये! यह वृक्ष अन्य सभी वृक्षों में श्रेष्ठ है। जैसे नदियों में गंगा प्रधान है, पर्वतों में हिमालय श्रेष्ठ है, और जलाशयों में समुद्र सर्वोच्च है, उसी प्रकार यह वृक्ष वृक्षों का राजा है। देवगण इस वृक्ष के समीप अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आते हैं। यह वृक्ष उन्हें सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर प्रदान करता है।”
भगवान शिव के मुख से यह सुनने के बाद, देवी पार्वती ने अपनी जिज्ञासा को और बढ़ाते हुए शिवजी से इसे दिव्य रूप में अनुभव करने की इच्छा जताई। शिवजी ने उनकी इस इच्छा को सहर्ष स्वीकार किया।
अशोक सुंदरी का सृजन और उसका नामकरण
देवी पार्वती ने शिवजी की अनुमति लेकर कल्पवृक्ष से एक सुंदर और दिव्य कन्या की कल्पना की। यह कन्या ऐसी थी, जैसे स्वयं सौंदर्य और गरिमा ने मानो मनुष्य रूप धारण कर लिया हो। उसकी कांति स्वर्ण के समान दमक रही थी। उसके विशाल नेत्र कमल के समान थे, और उसका चेहरा सौंदर्य की पराकाष्ठा को दर्शाता था।
इस कन्या को देखकर पार्वतीजी प्रसन्न हुईं और उसका नाम रखा अशोक सुंदरी। पार्वतीजी ने कहा:
“हे कन्या! तुम्हारा नाम अशोकसुंदरी होगा क्योंकि तुम अशोक (दुख) को समाप्त करने वाली और संसार के लिए सौंदर्य का प्रतीक हो। तुम्हारे सभी गुण उत्तम और श्रेष्ठ हैं।”
इसके बाद, देवी पार्वती ने अशोकसुंदरी को वरदान दिया कि वह सोमवंश के धर्मात्मा नहुष की पत्नी बनेगी।
हुंड दानव का आगमन और अशोक सुंदरी का दृढ़ निश्चय
एक समय दानवराज विप्रचिति का हुंड नामक पुत्र उस वन मे आया, वह भयंकर और तीव्र स्वभाव का था । वह स्वेच्छाचारी, और महाकामी था। अशोक सुन्दरी को देखते ही वह कामार्त हो गया ॥
उसने अशोक सुंदरी से कहा तुम कौन हो ? और किसकी पुत्री हो ? तुम किस कारण से इस उत्तम वन में आयी हो ?॥
अशोक सुंदरी ने कहा– सुनो ! मैं भगवान् शिव की पुत्री हूँ और मेरी माता कार्तिकेय की माता है आप कौन हैं ? और मुझसे किसलिए पूछते हें ?
हुंड ने कहा ! मैं विप्रचित्ति का पुत्र हूँ और मेरा नाम हुंड है । मैं दैत्यो में श्रेष्ठ हूँ, मेरे समान कोई राक्षस नहीं है ।
देवलोक में तथा मृत्यु लोक में एवं नाग लोक में भी कोई मेरे समान, तपस्वी,यशस्वी, धनी तथा भोग सम्पन्न नहीं है । हे विशालाक्षी ! तुमको देखते ही काम ने मेरे ऊपर बाण से प्रहार कर दिया है ॥ तुम मेरी प्राण के समान प्रियतमा बन जाओ ॥
अशोक सुंदरी ने कहा– तुम सुनो, शंकर जी की अनुमति से. देवी पार्वती ने मेरे पति की भी कल्पना की । वे धर्मात्मा महाप्राज्ञ सोमवंश में उत्पन्न होंगे.। वे जगत् पर विजय प्राप्त करने वाले तथा भगवान् विष्णु के समान
पराक्रम वाले होंगे, उन धर्मात्मा नहुष को पार्वती देवी तथा शङ्करजी ने मुझे पति रूप से प्रदान किया है । उनसे मैं समस्त गुणों से युक्त ययाति नामक पुत्र को मैं प्राप्त करूंगी ।
हुंड ने जोर से हँसकर अशोक सुंदरी से कहा । तुम उम्र में बड़ी हो और वह तुमसे छोटे. उम्र का तुम्हारा पति होगा । अतएव तुम दोनों का विवाह उचित नहीं है।छोटी उम्र की स्त्री प्रशस्त होती है, पुरुष. नहीं । हे भद्रे ! वह पुरुष तुम्हारा पति कब होगा?।तुम्हारी जवानी तो इस समय है वह व्यर्थ ही बीत जायेगी । हे विशालाक्षि ! तुम मेरे साथ सुख पूर्वक रमण
करो ।
हुंड की वाणी को सुनकर वह शिव पुत्री बोली, हे दैत्य ! यह निश्चित है कि तुम मेरे निश्चल मन को चंचल नहीं बना सकते हो, मैं पतिव्रता हूँ । मेरा चित्त दृढ है, मुझको कौन चंचल बना सकता है ? हे महासुर ! तुम यहाँ से चले जाओ अन्यथा मैं तुम्हें भस्म कर दूँगी
हुंड की माया और अशोक सुंदरी का अपहरण
हुंड वहाँ से वेग पूर्वक निकलकर चला गया दूसरे दिन तमोमयी माया करके । उस दानव ने अपना मायामय दिव्य रूप बनाकर अपनी माया से कन्या का रूप बना लिया, वह मायावी कन्या वहाँ गयी जहाँ पर शिवपुत्री रहती थी ॥ वह स्त्री जो वास्तव मे स्वयं हुंड ही था, अशोक सुंदरी को बहला फुसला कर हुंड के महल में ले गयी, वहाँ अशोक्सुंदरी ने उससे पूछा– हे सखि ! बतलाओ यह किस देवता का स्थान है ?
उसने कहा कि जिस दानवेन्द्र को तुमने पहले देखा है, उसी की यह नगरी है और मैं वही दानवेन्द्र हूँ ॥ हे सुन्दरि ! मैं तुमको माया के सहारे यहाँ लाया हूँ । इस तरह से उसको कहकर वह अशोक सुन्दरी को अपने सुवर्ण निर्मित सुन्दर भवन में लाया
तुम जो-जो चाहोगी मैं तुम्हें उन सभी वस्तुओं को प्रदान करूगाँ । मैं तुम्हें प्राप्त करना चाहता हूँ, तुम मेरी बन जाओ । अशोक सुन्दरी ने कहा– हे दानवेश्वर ! तुम मुझको विचलित नहीं कर सकते हो । तुम मेरे विषय में होने वाले मोह को मन से भी छोड़ दो
तुम्हारे जैसे महापापी देवताओं अथवा दानवाधमो के लिए मैं दुष्प्राप्य हूँ, अब बार-बार न कहो, अशोक सुंदरी महान क्रोध से जलने लगी,
उस देवी ने हुंड से कहा ॥ तुम अपने वंश तथा स्वजनों का नाश करने के लिए अपने घर में जलती हुयी अग्नि की ज्वाला को लाये हो ॥ इस समय में तुम्हारे पुत्रों, धन-धान्य तथा वंश का नाश करने वाली हूँ ॥
जिस तरह से तुमने नहुष को पति रूप से प्राप्त करने के लिए परम तपस्या करने वाली मुझको यहाँ लाया है ॥ हे दानव ! मेरे पति उसी प्रकार से तुम्हारा नाश कर देंगे । मुझको ही निमित्त बनाकर देवताओं ने तुम्हारे नाश के इस उपाय को रचा है ॥
अरे दुष्ट ! जब महात्मा नहुष के बाणों द्वारा युद्ध के मैदान में गिरे हुए, केशों वाले तुमको मरा हुआ तथा खून से लथपथ मैं देख लूँगी तब ही मैं अपना विवाह करूंगी ॥ इस तरह से नियम करके गंगा के तट पर हुंड का नाश करने के लिए निश्चल होकर वह शिव पुत्री बैठ गयी ॥
नहुष का जन्म और शिक्षा
हुंड ने नहुष के जन्म को रोकने के लिए कई प्रयास किए। उसने नहुष की गर्भवती मां इंदुमति का अपहरण करने की योजना बनाई, लेकिन दत्तात्रेयजी के आशीर्वाद से उसका प्रयास असफल रहा। नहुष का जन्म हुआ और वह वशिष्ठ मुनि के आश्रम में पले-बढ़े।
वशिष्ठजी ने नहुष को वेदों, धनुर्विद्या, और अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा दी। उन्होंने नहुष को यह भी बताया कि उसकी पत्नी अशोकसुंदरी उसके लिए तपस्या कर रही है और वह हुंड के अत्याचारों से उसे मुक्त करेगा।
हुंड और नहुष का महायुद्ध
जब नहुष युवा हुआ, तो उसने हुंड का वध करने का संकल्प लिया। वह हुंड के महल पहुंचा और उसे युद्ध के लिए ललकारा। हुंड और नहुष के बीच भीषण युद्ध हुआ। यह युद्ध कई दिनों तक चला। हुंड ने अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग किया, लेकिन नहुष की वीरता और पराक्रम के आगे वह टिक नहीं सका। अंततः नहुष ने हुंड का वध कर दिया।
अशोक सुंदरी और नहुष का मिलन
हुंड का अंत होते ही अशोकसुंदरी मुक्त हो गई। नहुष ने अशोकसुंदरी को अपने साथ अपने राज्य में ले जाकर विवाह किया। इस विवाह में देवताओं और ऋषियों ने भी भाग लिया।
अशोक सुंदरी की पतिव्रता शक्ति का महत्व
अशोकसुंदरी की कथा यह सिखाती है कि निष्ठा और धर्म के प्रति अडिग रहना ही सच्ची शक्ति है। उनकी पतिव्रता शक्ति ने न केवल उन्हें विपत्तियों से बचाया, बल्कि उनके पति नहुष को भी प्रेरणा दी।
पौराणिक कथाओं में अशोक सुंदरी का स्थान
अशोकसुंदरी की कथा पौराणिक ग्रंथों, विशेषकर स्कंद पुराण में वर्णित है। यह कथा हमें सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आदर्शों और धर्म का पालन करना चाहिए।
अशोकसुंदरी की कथा के प्रमुख संदेश
- धर्म और निष्ठा की शक्ति
अशोकसुंदरी ने अपने धर्म का पालन करते हुए हुंड जैसे शक्तिशाली दानव को हराया। - सत्य की विजय
नहुष और अशोकसुंदरी का विवाह यह दर्शाता है कि सत्य और धर्म हमेशा विजयी होते हैं। - पराक्रम का महत्व
नहुष का हुंड के साथ युद्ध युवाओं को अपने पराक्रम और ज्ञान को विकसित करने की प्रेरणा देता है।
निष्कर्ष
अशोक सुंदरी की कथा केवल एक पौराणिक गाथा नहीं है; यह धर्म, सत्य, और निष्ठा का प्रतीक है। उनकी कहानी हमें जीवन में कठिनाइयों का सामना करने और अपने आदर्शों पर अडिग रहने की प्रेरणा देती है।
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हर हर महादेव