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अश्वत्थामा की अनसुनी कहानी | Is Ashwatthama still alive ?
आप सबने महाभारत के महायोद्धा अश्वत्थामा क नाम अवश्य सुना होगा , अश्वत्थामा को भी चिरंजीवियों में से एक माना जाता है, कई लोग मानते हैं कि वह आज भी जिवित हैं और कलयुग में भटक रहे हैं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उन्होंने उसे देखा है, कुछ स्थलों पर उसकी उपस्थिति होने की खबरें भी अक्सर आपने सुनी होंगी , क्या सच अश्वत्थामा का अस्तित्व आज भी है? अश्वत्थामा की बारे में जितना आपने सुन रखा होगा वह उससे कहीं अधिक शक्तिशाली थे, आइये अश्वत्थामा के जीवन से जुड़े एक एक रहस्य को विस्तार से जानते हैं
Table of Contents
कैसे हुआ जन्म
द्रोणाचार्य ने भगवान शिव को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके अश्वत्थामा नामक पुत्र को प्राप्त किया था। इनकी माता का नाम कृपि था, जो कृपाचार्य जी की बहन थी | जन्म ग्रहण करते ही इनके कण्ठ से अश्व के समान हिनहिनाने की सी ध्वनि हुई, जिससे इनका नाम अश्वत्थामा पड़ा, जन्म से ही उनके माथे पर एक रत्न जड़ा था जो उन्हे भूख, प्यास थकान, साँप, राक्षस आदि से बचाता था, अश्वत्थामा | महादेव, यम, काम और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न हुए थे, कई लोगों को यह लगता है के वह रुद्र अवतार हैं, परंतु ऐसा नहीं, वह महादेव, यम, काम, या क्रोध के अवतार नहीं थे, उनका जन्म इन चारों के अंशों के मिश्रण से हुआ था, वो केवल भगवान शिव के ही अंश से उत्पन्न नहीं हुए थे, भगवान शिव ने भगवान विष्णु जी के जैसे कभी कोई अवतार नहीं लिए, भगवान शिव के अंश से 11 रुद्र, काल भैरव, वीरभद्र आदि की उत्पत्ति हुई थी |
अश्वत्थामा की शिक्षा और उनके अस्त्र शस्त्र
अश्वत्थामा ने अपनी आरंभिक शिक्षा अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य जी से ही ली थी, अश्वथमा को अपने पिता से ब्रह्मास्त्र, ब्रहमशीर, और नारायणास्त्र का ज्ञान मिला था, इसके साथ उसके पास वरुण अस्त्र और आग्नेयास्त्र भी था, इनके अतिरिक्त गुरु द्रोण ने अपनी सभी विद्याओं का ज्ञान भी उसे दिया था और लगभग सभी अस्त्र शस्त्र जो गुरु द्रोण के पास थे वह अश्वत्थामा के पास भी थे, गृरु द्रोण से उसे एक दिव्य धनुष भी प्राप्त हुआ था
विराट नगर में अर्जुन के साथ युद्ध
विराट युद्ध में वे पहले योद्धा थे जो अर्जुन के गाँडीव धनुष के प्रत्यंचा को काटने में सफल रहे थे, और उसी विराट युद्ध में उन्होने लगभग अर्जुन की बराबरी की थी, अश्वथामा को विराट युद्ध में अर्जुन के विरुद्ध केवल इसी कारण से पीछे हटना पड़ा था क्योंकि उस समय उनके सारे अस्त्र समाप्त हो गए थे, पर अर्जुन के सम्मोहन अस्त्र का उनके पास भी कोई उत्तर नहीं था और अंत में वह भी बाकी समस्त कौरव योद्धाओं की तरह पराजित हुए थे
कुरुक्षेत्र युद्ध से पूर्व उनसे जुड़ी घटनाएँ
महाभारत के कई अनुवादित संस्करणों के अनुसार अश्वत्थामा, द्रौपदी स्वयंवर में मौजूद थे, और यह भी विवरण है के वे धनुष की प्रत्यंचा चड़ाने से चूक गए थे
द्यूत सभा में जब दूसरा दौर शुरू होने वाला था उन्होने इसका विरोध किया था
अश्वथामा ने दुर्योधन के किसी भी षड्यंत्र में भाग नहीं लिया था, उन्होने ने पहला युद्ध ही विराट नगर में लड़ा था, घोष यात्रा में अश्वथामा दुर्योधन के साथ नहीं गए थे
कुरुक्षेत्र युद्ध शुरू होने से पहले भीष्म पितामह ने उन्हे महारथी की उपाधि दी थी, भीष्म के अनुसार, अश्वत्थामा के बाण अर्जुन के बाणों की तरह ही एक दूसरे को स्पर्श करते हुए निरंतर रेखा में चलते हैं, यह उनके कौशल को दर्शाता है
कुरुक्षेत्र युद्ध में उसका का प्रदर्शन
अश्वत्थामा ने युधिष्ठिर, भीम, सात्यकी और धृष्टद्युम्न शिखंडी आदि पांडव पक्ष के योद्धाओं को एक से अधिक बार पराजित किया था
अश्वत्थामा घटोत्कच युद्ध
14वीं रात को घटोत्कच के साथ उसका भीषण युद्ध हुआ था, उसने उस रात घटोत्कच की एक अक्षौनी राक्षसी सेना का संहार किया था, उस रात को एक वे ही योद्धा थे जिनहोने सर्वप्रथम घटोत्कच और उसकी सेना का डटकर मुक़ाबला किया था और उसे अपनी धनुरता के बल पर पराजित भी किया था, इसके अतिरिक्त उसी रात उन्होने एक लाख से अधिक अन्य पांडव सेना का संहार कर दिया था, घटोत्कच के पुत्र अंजनपर्व का वध भी उसी की आँखों के सामने कर दिया था, अश्वथमा एक मात्र कुरु योद्धा थे जो घटोत्कच द्वारा उत्पन्न किए गए यतुधन राक्षसों से डर कर नहीं भागे थे, बल्कि उन्होने यतुधन के साथ पौलस्त्य राक्षसों को मार गिराया था, अश्वत्थामा ने घटोत्कच की मायावी शक्ति के भेदन के लिए , वज्रास्त्र तथा व्यव्यास्त्र का उपयोग किया था
जयद्रथ का पीछा करते हुए अर्जुन को रोककर उनसे युद्ध
कुरुक्षेत्र युद्ध के 14वें दिन जब अर्जुन ने जयद्रथ को सूर्य ढलने से पहले मारने की प्रतिज्ञा ली थी, उसी दिन एक समय कर्ण अर्जुन के युद्ध में जब अर्जुन ने कर्ण को रथहीन कर दिया था तो अश्वथमा ने कर्ण को अपने रथ में बैठाकर अर्जुन से कर्ण के प्राणों की रक्षा की थी, अश्वत्थामा ने कुरुक्षेत्र युद्ध में ऐसे ही तीन बार कर्ण की रक्षा की थी, और जब अर्जुन ने दुर्योधन के वध हेतु शक्तिशाली मानवास्त्र का उपयोग किया था तो उसे भी अश्वत्थामा ने हवा में ही काट दिया था
अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र और आग्नेयास्त्र का प्रयोग
अपने पिता गुरु द्रोण की छल द्वारा किए वध से क्रोधित हुए अश्वत्थामा ने कुरुक्षेत्र युद्ध के 15वें दिन पांडव सेना पर नारायणास्त्र चला दिया था जिसने पांडव पक्ष को भारी क्षति पहुंचाना आरंभ कर दिया, तब श्री कृष्ण ने सभी को उस शक्तिशाली अस्त्र के आगे नतमस्तक होने की सलाह दी, तब वह अस्त्र शांत हुआ, पर तब तक उस अस्त्र ने कौरव सेना के बड़े भाग को नष्ट कर दिया था, और 15वें दिन पुनः अश्वथमा आग्नेयास्त्र चलकर पांडव सेना की एक अक्षौनी सेना नष्ट कर दी थी , कुल मिलाकर अश्वत्थामा ने 3 से अधिक अक्षौनी पांडव सेना का संहार किया था
उसके हाथों मारे गए योद्धा
अश्वत्थामा के हाथों कई प्रसिद्ध योद्धा भी मारे गए थे, जैसे के मालव के राजा सुदर्शन , पौरव के राजा वृद्धाक्षत्र, चेदी देश के राजकुमार, महिष्मती के राजा नील, सुरथ आदि
कर्ण अर्जुन के अंतिम युद्ध से पहले अश्वथामा ने बड़ा प्रयास किया था के दोनों पक्षों में संधि हो जाए , उन्होने इसके पहले भी दुर्योधन कई अवसरों पर समझाया भी था, कर्ण से भी कई बार उनका कटु संवाद , पर दुर्योधन ने कभी उनकी बात नहीं मानी
वो क्यों पाना चाहता था सुदर्शन चक्र
एक समय तो वह सुदर्शन चक्र को भी उठाना चाहते थे पर वह ऐसा कर नहीं पाये , वह सुदर्शन चक्र को पाकर अजय बनना चाहते थे , यहाँ तक की उन्होने श्री कृष्ण से ब्रहमशीर के बदले सुदर्शन चक्र मांगा भी था
सेनापति बनने के बाद अश्वत्थामा ने क्या किया
कौरव पक्ष के अंतिम सेनापति अश्वथामा ही बने थे, हालांकि वह पांडव पक्ष के विरोधी नहीं थे पर जब उन्होने दुर्योधन के अंतिम युद्ध के बाद उनकी वह बुरी स्तिथी देखि थी, तब उनके क्रोध की कोई सीमा ही न रह गयी थी और उसके बाद उनके हाथों बहुत विनाश हुआ था , उन्होने प्रतिज्ञा ली के बाकी बचे हुए सभी पंडाव पक्ष के योद्धाओं को मार डालेंगे और वहाँ से निकल पड़े
भगवान शिव और अश्वत्थामा युद्ध और उसे वरदान प्राप्ति
जब वो पांडवों को मारने के लिए निकला तो पांडव पक्ष के शिविर-द्वार पर एक विशालकाय अद्भुत प्राणी उनके सामने आकार खड़ा हो गया, वह वास्तव में भगवान शिव ही थे परंतु अश्वत्थामा उन्हे पहचान न सके और अपने सारे अस्त्र शस्त्र उनपर चला दिये परंतु उस महाभूत ने अश्वत्थामा के छोड़े हुए सारे बाणों, अस्त्र शस्त्रों-को अपना ग्रास बना लिया। तब विचलित होकर भगवान शिव की ही स्तुति करने लगे, भगवान शिव वहाँ प्रकट हुए, भगवान शिव ने अपने स्वरूपभूत उसके शरीर में प्रवेश किया और उसे एक उत्तम खड्ग प्रदान किया। भगवान का आवेश हो जाने पर अश्वत्थामा पुन: अत्यन्त तेज से प्रज्ज्वलित हो उठा। वहाँ उसने धृष्टद्युम्न , शिखंडी , द्रौपदी के पुत्रों , और कई अन्य लोगों का वध कर दिया था
उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र चलना और श्री कृष्ण का उसे शाप देना
अंत में जब वह और पांडव आमने सामने थे, तो उन्होने ब्रहमशीर चला दिया, अर्जुन ने भी उसके उत्तर में अपना ब्रहमशीर चलाया, पर तभी वेदव्यास जी , नारद के साथ आकार उन दोनों महान अस्त्रों की बीच में आकार खड़े हो गए, और उन्होने अर्जुन और अश्वत्थामा से अपने अपने अस्त्र वापिस लेने को कहा , अर्जुन ने तो अपना अस्त्र वापिस ले लिया परंतु अश्वत्थामा ऐसा करने में सक्षम न थे , उन्होने और भी बड़ा अपराध कर दिया वह अस्त्र उन्होने वह अस्त्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की गर्भ की और मोड दिया, यह एक निंदनीय अशोभनीय और अपराधिक कार्य था, जिसने अश्वथामा के सारे अच्छे कार्यों को धूमिल कर दिया, श्री कृष्ण ने अभिमन्यु के पुत्र को जीवित कर दिया था, और अश्वत्थामा के इस कार्य को सबसे बड़ा अधर्म माना था और अश्वत्थामा के उस रत्न को भी निकलवा दिया था और इसके साथ ही श्री कृष्ण ने उन्हे श्राप भी दिया था के वह 3000 वर्षों तक रिसते हुए घावों के साथ पृथ्वी पर एकांत में जीवन व्यतीत करोगे, और वह वहाँ से वन की और प्रस्थान कर गए थे
क्या आज भी जीवित है अश्वत्थामा
यह माना जाता है कि अश्वत्थामा कलयुग में भी जिवित है, लेकिन उनके बारे में कोई प्रमाणित जानकारी या तथ्य नहीं है कि वह कलयुग में किस-किस से मिले हैं। कुछ लोक कथाएँ और आज के समय में उपदेशकों के कथन के अनुसार, अश्वत्थामा ने कुछ महान योगियों और संतों से मिलने का प्रयास किया है, लेकिन यह सभी कथाएँ अधिकतर आधारहीन और अविश्वसनीय हैं।महाभारत के अनुसार अश्वथामा को श्री कृष्ण से 3000 वर्षों तक भटकने का श्राप मिला था , अश्वत्थामा का अंतिम बार उल्लेख उनका कामयक वन में व्यास जी के आश्रम में होने का किया गया है , बाकी उनपर कई किस्से कहानियाँ , और लोक कथाएँ प्रचलित हैं के उन्हे विभिन्न स्थानों पर देखा गया है , पर हम उस बात की पुष्टि नहीं करते क्यूंकी हमें कोई प्रमाण नहीं मिला
अश्वत्थामा बनेंगे आगामी वेद व्यास
विष्णु पुराण के तृतीय अंश अध्याय 2 में श्री प्राशर जी श्री मैत्रेय जी को बताते हैं के अश्वत्थामा सातवें मन्वंतर के 29वें महायुग में आगामी व्यास होंगे, फिर प्राशर जी मैत्रेय जी से सावर्णिक नाम के 8वें मन्वंतर जो की आगे होने वाला है , उस समय दीप्तिमान , गालव , राम , कृप , द्रोण पुत्र अश्वत्थामा , मेरे पुत्र व्यास और सातवें ऋषयशृंग- यह सप्तऋषि होंगे , इसका अर्थ है के अश्वत्थामा 8वें मन्वंतर सप्तरीशियों में से एक होंगे, जय श्री कृष्ण