भंडासुर की कहानी | Was Bhandasura the most powerful demon in Hindu Religion ?

भंडासुर

क्या आप जानते हैं हमारे सनातनी इतिहास में भंडासुर नामक एक ऐसे दानव के बारे में बताया गया है जो न केवल स्वयं ही शक्तिशाली था बल्कि वह ऐसी विद्याओं से सम्पन्न था जिसके बल से उसने कितने ही मृत असुरों तथा राक्षसों को पुनः जीवित कर दिया था, रावण, हिरण्यकश्यप, महिशासुर आदि और भी कई शक्तिमान राक्षस फिर से जीवित हो गए थे और सम्पूर्ण सृष्टि त्राहिमाम कर रही थी, क्या हुआ था आगे, आइये ब्रह्मांड पुराण के माध्यम से जानते हैं इस दानव के बारे में

भंडासुर की उत्पत्ति कैसे हुई

ब्रह्मांड पुराण के दूसरे खंड में ललिता माहात्म्य के अंतर्गत भंडासुर उद्भव की कथा है। इसके अनुसार, जब भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था, तो एक समय चित्रकर्मा, जो रुद्र गणों का नेतृत्व करते हैं, ने खेल-खेल में कामदेव की भस्म हुई राख से एक गुड़िया बनाई। जैसे ही उस गुड़िया को वे भगवान शिव के समीप ले गए, उसमें जान आ गई और उसने एक बालक का रूप ले लिया। चित्रकर्मा ने उस बालक को शत रुद्रीय मंत्र का उपदेश दिया और उसे तपस्या करने के लिए कहा।

उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव वहां प्रकट हुए और उस बालक ने वरदान मांगा कि जो कोई भी मेरे विरुद्ध युद्ध करे, उसका आधा बल क्षीण हो जाए और वह आधा बल मुझमें आ जाए। साथ ही, उस समय मेरे शत्रु का कोई भी अस्त्र मुझे बांध न पाए। इस बीच, कामदेव की राख से विशुक्र और विशंग का जन्म हुआ। उसी राख से और भी कई राक्षस उत्पन्न हुए। भंडासुर ने 300 अक्षौनी की एक शक्तिशाली सेना बना ली थी। इसी के वध के लिए ललिता त्रिपुर सुंदरी की उत्पत्ति हुई थी।

भंडासुर और ललिता त्रिपुर सुंदरी का युद्ध

जब रण में भंडासुर ने अपने भाई, पुत्र, और अन्य सहोदरों के मारे जाने का संदेश पाया, तो उसने भारी विलाप किया। फिर वह क्रोध की अग्नि में जल उठा और हुंकारते हुए बोला, “जिस दुष्टा ने माया के बल से युद्ध में मेरे भाइयों और पुत्रों को मारा है, उस स्त्री के कंठ से निकले हुए रुधिर से मैं अपने शोक की अग्नि को शांत करूंगा।” ऐसा कहकर उसने अपना शक्तिशाली कवच धारण किया और क्रुद्ध होकर अपने नगर से निकल पड़ा। उसके साथ दो सहस्त्र अक्षौहनी सेना थी, और उसके शून्यक नगर में केवल स्त्रियाँ ही रह गई थीं। इतनी बड़ी सेना जब सिंहनाद करती हुई निकली, तो सम्पूर्ण जगत विदीर्ण हो गया।

शक्तियों ने भय से विभ्रष्ट आयुधों को पुनः धारण कर लिया, परंतु देवी ललिता ने विचार किया कि यह महान संग्राम शक्तियों द्वारा नहीं किया जा सकता। इसलिए, भंडासुर के समागमन का निश्चय कर, ललिता देवी ने स्वयं ही युद्ध करने की इच्छा की और चक्रराज रथ पर सवार हो वहाँ से चल दी। उस रथ में नौ पर्व थे और नौ पर्वों पर देवियाँ स्थित थीं, जिन्होंने बड़े-बड़े धनुषों को चढ़ा रखा था। तब दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ और इस युद्ध के कारण वहाँ रुधिर की नदी प्रवाहित हो रही थी।

इसके अनंतर श्री ललिता देवी और भंडासुर का युद्ध हुआ। माता ने विशाल बाणों से भंडासुर के मर्मों का भेदन कर दिया। तब भंडासुर ने क्रोध में अंध तामिस्त्र नामक महा अस्त्र छोड़ा, जिसे माहेश्वरी ने महतरणी बाण से काट दिया। भंडासुर ने दृष्टि के विनाशक अन्धास्त्र का प्रहार किया, जिसका देवी ने चाक्षुषमन महा अस्त्र से शमन कर दिया। इसी प्रकार, भंडासुर के कितने ही दिव्यास्त्र ललिता जी ने नष्ट कर दिए।

भंडासुर द्वारा महासुरास्त्र का उपयोग और कई शक्तिशाली मृत राक्षसों का पुनः जीवित होना

तब उस दानव ने महासुरास्त्र को छोड़ा, जिससे सहस्त्रों महाकाय और महाबली उत्पन्न हो गए। उनमें कई कालकेय और असुर जैसे मधु-कैटभ, महिषासुर, धूम्रलोचन, चंडमुंड, चामर, रक्तबीज, निशुंभ थे। वे सभी श्रेष्ठ दानव कठोर शस्त्रों से प्रहार करने लगे और शक्तियों का मर्दन करने लगे। तब सभी शक्तियाँ ललिता देवी की शरण में गईं। यह देखकर देवी क्रोध से रुष्ट हो गईं और उन्होंने अट्टहास किया। तभी वहाँ दुर्गा उत्पन्न हुईं। वह विश्वरूपिणी सब देवों के तेजों से निर्मित हुई थीं और समस्त देवों ने उन्हें अपने आयुध प्रदान किए थे। सिंह पर आरुढ़ होकर दुर्गा ने वहाँ युद्ध किया और महिषमुखी दानवों को मार गिराया।

इसके उपरांत भंडासुर ने अपने अस्त्र से उन असुरों को उत्पन्न किया जिन्होंने पहले सब वेद चुरा लिए थे। देवी ने उन्हें अपने दाहिने हाथ के अंगूठे के नख से तिरस्कार कर दिया। फिर भंडासुर ने अन्वास्त्र का उपयोग किया, जिससे इतना जल उत्पन्न हुआ कि शक्ति सेना डूब गई।

इसके अनंतर श्री ललिता के दाहिने हाथ की तर्जनी के नख से कूर्म उत्पन्न हुए। भगवान कूर्म ने जल का पान कर लिया। इसके बाद भंडासुर ने एक और महान अस्त्र छोड़ा जिससे सहस्त्रों हिरण्याक्ष गदा लिए हुए उत्पन्न हो गए। उनकी काट के लिए ललिता देवी के दक्षिण हाथ की माध्यम अंगुली के नख से महान वराह उत्पन्न हुए, जिन्होंने वज्र के समान पोट्री से सभी हिरण्याक्ष को विधीर्ण कर दिया।

इसके पश्चात, भंडासुर ने क्रोध से अपनी भौंहें तान लीं। उसकी भृकुटी से करोड़ों हिरण्यकश्यप उत्पन्न हो गए। ललिता देवी ने दाहिने हाथ की अनामिका को हिलाया, जिससे सिंहमुखी पुरुषाकार जनार्दन उत्पन्न हुए। उनकी भुजाएँ सहस्त्रों की संख्या में थीं और उन्होंने भंडासुर के उत्पन्न हिरण्यकश्यपों को अपने नखों से मार गिराया। भंडासुर ने बलिन्द्र नाम का एक घातक दिव्यास्त्र चलाया, जो देवों के लिए भी विनाशक था। तब महादेवी के दाहिने हाथ के कनिष्ठिका के नख के अग्रभाग से महान ओज वाले वामन उत्पन्न हुए, जिन्होंने उस अस्त्र का विनाश कर दिया।

इसी प्रकार, भंडासुर ने हैहयास्त्र चलाकर सहस्त्रों अर्जुन उत्पन्न कर दिए, जिसके विनाश के लिए माता ने भार्गव राम को प्रकट किया। उन्होंने एक ही क्षण में उन सभी को विनष्ट कर दिया। इसके पश्चात, भंड दैत्य ने क्रोध से हुंकार की, जिससे चंद्रहास तलवार लिए रावण उत्पन्न हो गया। वह सहस्रों राक्षसों की सेना के साथ घिरा हुआ था। कुंभकर्ण और मेघनाद को लेकर उसने शक्तियों की सेना को मर्दित कर दिया। इसके अनंतर, ललिता देवी के बाएँ हाथ के कनिष्ठिका के अग्र भाग से लक्ष्मण सहित कोदंड लिए हुए प्रभु राम उत्पन्न हुए। उन्होंने कुछ ही समय में दिव्यास्त्रों से राक्षसों की सेना का विनाश कर दिया।

भंडासुर पर हमारा विडियो अवश्य देखें

भंडासुर ने फिर राजसुर नामक महान अस्त्र छोड़ा, जिससे शिशुपाल, दंतवक्र, शाल्व, पौंडरक, प्रलंभ, बाणासुर, कंस, त्रिनावृत आदि उत्पन्न हो गए। उनके विनाश के लिए श्री देवी के बाएँ हाथ की अनामिका के नख से सनातन वासुदेव प्रकट हुए। वे चारों ने चतुरव्यूह बनाया जिसमें वासुदेव, बलराम, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध थे। इन चारों ने उन माहासुरों का विनाश कर दिया।

इसके पश्चात, ललिता के वाम कर कमल से कल्कि नामक जनार्दन प्रभु प्रकट हुए, जो अश्व पर आरूढ़ थे। उनकी वज्र समान ध्वनि से सभी किरात बेहोश हो गए और मूर्छित होकर नष्ट हो गए। दशावतारों के नाथों ने इस प्रकार इस दुष्कर कर्म को सम्पन्न किया। फिर वे ललिता देवी को नमस्कार कर आगे स्थित हो गए और वैकुंठ को चले गए।

इसके उपरांत, ललिता देवी ने नारायणास्त्र से युद्ध में भंडासुर की समस्त अक्षौनी सेनाओं को भस्मीभूत कर दिया। पाशुपातास्त्र से चालीस सेनाओं का विमर्दन कर, शेष बचे भंडासुर को महाकामेश्वर अस्त्र से वध कर दिया। इस प्रकार, ललिता देवी तीनों जगतों की जननी और विजयश्री से संपन्न हो गईं।