भीष्म पितामह से जुड़े रोचक रहस्य | कितने शक्तिशाली थे भीष्म

भीष्म पितामह
भीष्म पितामह

असीम शक्तियों के स्वामी पितामह भीष्म, द्वापर युग के शीर्ष योद्धाओं में आते थे, कितने शक्तिशाली थे देवव्रत भीष्म, कौन से अस्त्र शस्त्र थे उनके पास, कितने युद्ध लड़े थे उन्होने, भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान किसने दिया, भीष्म पितामह से जुड़े वो तथा जो पहले नहीं बताए वो हम आगे जानेंगे

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भीष्म पितामह का जन्म

गंगा जी ने शांतनु से विवाह करने से पहले यह वचन लिया था के वह कभी भी गंगा के किसी भी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेंगे
भीष्म जी शांतनु तथा गंगा के आठवें पुत्र थे, उनसे पहले गंगा जी के जो सात पुत्र हुए थे उन सभ को गंगा जी ने जल में डुबो दिया था, गंगा उस आठवें पुत्र को भी डूबोने वाली थी मगर शांतनु से रहा न गया और उन्होने गंगा को रोक दिया

वचन भंग होने कारण, गंगा बोली वचन भंग होने के कारण अब मैं यहाँ नहीं रह सकती, और जाते हुए उन्होने शांतनु को बताया के यह तुम्हारे आठ पुत्र महाभाग वसु देवता हैं, वशिष्ठ जी के शाप से यह मनुष्य योनि में आए थे, सम्पूर्ण वसुओं के अंश से इसकी उत्पत्ति हुई है और यह द्यो वसु ही हैं, इसके उपरांत भीष्म सर्वप्रथम देवव्रत और गंगादत्त- नामों से विख्‍यात हुए थे

भीष्म प्रतिज्ञा और इच्छा मृत्यु का वरदान

राजा शांतनु, हरिदास की पुत्री सत्यवती पर मोहित हो गए थे, और उन्होने हरिदास के समक्ष उसकी पुत्री से विवाह करने का प्रस्ताव रखा, पर हरिदास ने एक शर्त रख दी के हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी सत्यवती से होने वाली संतान ही बने, तब भीष्म जी ने वहाँ आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा की और इसी से प्रसन्न होकर शांतनु ने देवव्रत को इच्छा मृत्यू का वरदान दिया था

भीष्म पितामह की शिक्षा और उनके अस्त्र शस्त्र

भीष्म पितामह ने अपनी आरंभिक शिक्षा भिन्न भिन्न गुरुओं से अर्जित की थी, जैसे के देव गुरु बृहस्पति से उन्होने दंडनीति अर्थात एक राजा का क्या कर्तव्य है वह सीखी, दैत्य गुरु शुक्राचार्य से उन्होने राजनीति तथा अन्य शास्त्रों का ज्ञान ग्रहण किया, ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी से उन्होने वेदों का ज्ञान लिया, ऋषि च्यवन से उन्हे आयुर्वेद तथा अन्य शास्त्रों का ज्ञान मिला, सनत कुमार से उन्होने मानसिक तथा आध्यात्मिक विज्ञान सीखा जिसे आन्वीक्षिकी भी कहते हैं, और परशुराम जी से उन्होने युद्ध कला, अस्त्र शस्त्र विद्या तथा धनुर्वेद का सम्पूर्ण ज्ञान अर्जित किया था
भीष्म पितामह के पास ब्रह्मास्त्र, प्रस्वापन अस्त्र, तथा वरुण, अग्नि, आदि देवों के सभी मूलभूत दिव्यास्त्र थे

उनके आरंभिक जीवन से कुरुक्षेत्र युद्ध तक उनके द्वारा प्रकट पराक्रम की

भीष्म ने कुरुक्षेत्र युद्ध से पूर्व भी कई युद्ध लड़े थे, और हस्तिनापुर नगर की रक्षा की थी, आइये विस्तार से जानते हैं कब कब और किनके से साथ हुई थी उनकी मुठभेड़

अम्बा अंबिका अंबालिका का हरण और सब राजाओं पर विजय

सत्यवती और शांतनु के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुए, जब चित्रांगद एक गंधर्व के हाथों मारे गए थे तो उस समय बालक अवस्था में भीष्म जी ने कुरु देश के राज्य पर विचित्रवीर्य को अभिषिक्त कर दिया था, जब विचित्रवीर्य युवावस्था में पहुंचे , तो भीष्म जी ने उसका विवाह करने का विचार किया और जब उनको यह ज्ञात हुआ के काशीराज अपनी तीन कन्याओं का स्वयंवर करवा रहे हैं, तो उस समय भीष्‍म एकमात्र रथ के सा‍थ वाराणसी पुरी को गये। वहाँ राजओं का समुदाय स्‍वयंवर सभा में जुटा हुआ था, उन्‍होंने उन तीनों कन्‍याओं को उठाकर रथ पर चढ़ा लिया और ललकारते हुए बोले भूमिपालों! मैं इन कन्‍याओं को यहाँ से बलपूर्वक हर ले जाना चाहता हूँ। तुम लोग मुझे रोक सकते हो रो रोक लो, आओ दिखाओ अपना बल, फि‍र तो समस्‍त राजा इस अपमान को न सह सके और उन राजाओं और भीष्‍म जी का घोर संग्राम हुआ। भीष्‍म जी अकेले थे और राजा लोग बहुत। अंततः भीष्म जी ने उन सभी को पराजित कर दिया, वहाँ शाल्व राज जो कि विवाह की इच्छा से वहाँ आया था, भीष्म को युद्ध के लिये ललकारते है, शाल्व को अपने बाणों से पीड़ित कर भीष्म जी उसे पराजित कर देते हैं और फिर सम्पूर्ण राजमण्डली को परास्त करके उन कन्याओं को लाकर उन्होंने माता सत्यवती को सुपुर्द कर दिया था

भीष्म पितामह द्वारा अकेले ही दिग्विजय और अन्य कई राजाओं की पराजय

पितामह भीष्म द्वारा सरंक्षित हस्तीनपुर की सेना – जरासंध की सेना की तरह ही अत्यंत शक्तिशाली थी, उस समय इन दोनों ने कभी एक दूसरे की सीमाओं को लांगने की चेष्ठा नहीं की, हस्तीनपुर राज्य की रक्षा का उत्तरदायित्व पीतमाह भीष्म पर था, काशी जो मगध का मित्र राज्य था, उनके नरेश की पुत्रियों को जब भीष्म अगवाह कर लाये थे, तो जरासंध उसका प्रतिशोध लेने का साहस कभी नहीं जुटा पाये थे, यह हस्तीनपुर के प्रभुत्व को ही दर्शाता है
उद्योग पर्व अध्याय 55 के अनुसार, दुर्योधन पूर्वकाल की बात बताते हुए कहता है के, अपने पिता शांतनु की मृत्यु के बाद भीष्म जी ने किसी समय अत्यंत क्रोध में भर कर एकमात्र रथ की सहायता से अकेले ही सब राजाओं को जीत लिया था, रोष में भरे हुए कुरुश्रेष्ठ भीष्म ने उस समय बहुत से राजाओं को मार डाला था, यह वृतांत हमें यह बताता है के युवा अवस्था में भीष्म अजय थे, उन्होने चक्रवर्ती राजा उग्रायुध को भी अपने अस्त्रों के प्रभाव से मार डाला था

भीष्म और सत्यवती के कहने पर वेदव्यास ने बड़ाया कुरुवंश

जब विचित्रवीर्य भी छोटी अवस्था में ही स्वर्गवासी हो गया तो उस समय सत्यवती भीष्म जी से बोलीं , भारत , तुम हमारे कुल की संतान परम्परा को सुरक्शित रखने के लिए अपने भाई विचित्रवीर्य की दोनों रानियों के गर्भ से पुत्र उत्पन्न करो, यह मेरी आज्ञा है के तुम धर्म के अनुसार इन दोनों के साथ विवाह कर लो, परंतु भीष्म पितामह ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ने से मना कर दिया था, तब भीष्म जी के सम्मति से सत्यवती ने अपने पुत्र व्यास जी का आह्वान किया, और कुरुवंश की वृद्धि के लिए विचित्रवीर्य की पत्नियों के गर्भ से पांडु तथा धृतराष्ट्र को उत्पन्न किया

भीष्म की अम्बा और द्रुपद से क्या शत्रुता थी

महाभारत के उद्योग पर्व अध्याय 188 के अनुसार पांचाल नरेश द्रुपद ने पितामह भीष्म से बदला लेने हेतु भगवान शंकर की घोर तपस्या की, और जब भगवान शिव प्रसन्न हुए तो द्रुपद बोले, मैं भीष्म से बदला लेना चाहता हूँ, इसीलिए मुझे केवल पुत्र की ही प्राप्ति हो किसी कन्या की नहीं, इसके उत्तर में भगवान शिव बोले, ऐसा संभव नहीं तुम्हें पहले कन्या ही प्राप्त होगी फिर वही पुरुष बन जाएगी, मैंने जो कहा वह कभी मिथ्या नहीं हो सकता, द्रुपद के यहाँ वही कन्या उत्पन्न हुई जो बाद में स्थूणाकर्ण नामक यक्ष की सहायता से स्त्री से पुरुष बन गयी और शिखंडी कहलाई, एक और बात यहाँ हम बताना चाहते हैं के जो तिरस्कार भीष्म जी ने अम्बा का किया था उसी का प्रतिषोद लेने के लिए अम्बा ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे भीष्म के वध करने का वरदान दे दिया था, वही अम्बा अगले जन्म में द्रुपद के यहाँ जन्मी, तभी द्रुपद को भगवान शिव ने पुत्र प्राप्ति वरदान देने से मना कर दिया था

भीष्म और परशुराम का युद्ध

पितामह भीष्म का अपने ही गुरु परशुराम जी से भीषण युद्ध हुआ था, यह युद्ध 23 दिन तक चला था, इन दोनों में हुए महसंग्राम का कारण था भीष्म द्वारा आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा जिस कारण उन्होने अम्बा का तिरस्कार कर दिया था, और वहीं परशुराम जी एक परित्यक्त महिला के सम्मान के लिए लड़ रहे थे, पराजय को स्वीकार करना इन दोनों के लिए असंभव सा हो गया था, परशुराम जी भीष्म पे हावी हो गए थे और उनको रथ पर ही गिरा दिया था, तब गंगा और वसू भीष्म जी की सहायता के लिए आए थे, और उन्होने भीष्म को प्रस्वापन अस्त्र का स्मरण कराया था, परशुराम जी ने उस समय अपने पूर्वजों के अनुरोध पर लड़ाई से हटने का निर्णय किया और उन्होने स्वयं खुद को पराजित माना था क्यूंकी उनके पास प्रस्वाप अस्त्र का कोई उत्तर नहीं था

केवल भीष्म ही विराट युद्ध में अर्जुन से पराजित नहीं हुए

विराट युद्ध अर्जुन और पितामह भीष्म का प्रलयंकारी युद्ध हुआ था, दोनों योद्धाओं ने एक दूसरे पर प्रजापति, इंद्र, अग्नि, रुद्र, कुबेर,वरुण, यम, और वायु से प्राप्त दिव्य अस्त्रों का उपयोग किया था, पीड़ा में होते हुए भी गंगा पुत्र युद्ध में अडिग रहे और लड़ते रहे वो थक चुके थे और रथ के खंबे को पकड़ स्तम्भ खड़े थे तभी उनके सारथी स्थिति देख उनको बचाने का धर्म निभाते हुए उनको सुरक्षित स्थान पर ले गए, इसीलिए हम यह नहीं कह सकते के भीष्म उस दिन पराजित हुए थे, एक मात्र भीष्म ही थे जो अर्जुन द्वारा चलाये गए सम्मोहनास्त्र को काट पाये थे, बाकी समस्त कुरु योद्धा अर्जुन के हाथों पराजित हुए थे

कुरुक्षेत्र युद्ध में पितामह भीष्म का प्रदर्शन

कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरव पक्ष से सर्वप्रथम पितामह भीष्म को ही सेनापति बनाया गया था, उन्होने प्रत्येक दिन 10000 सैनिकों तथा 1000 रथ योद्धाओं का वध किया था, युद्ध के पहले ही दिन उन्होने राजा विराट के शक्तिशाली पुत्र श्वेत को मार डाला था,
युद्ध के सातवें दिन उन्होने अकेले ही पांडवों के सामूहिक हमले को निरस्त कर दिया था, इसके अतिरित 3 और समूहिक आक्रमण को उन्होने विफल कर दिया था, एक हमले में तो वह इतने हावी हो गए थे के अर्जुन को उनको सबको बचाने के लिए आना पड़ा था, उन्होने कौरव पक्ष के शक्तिशाली योद्धा जैसे भीम, अभिमन्यु, धृष्टद्युम्न और सत्याकी आदि अन्य और भी बड़े बड़े योद्धाओं को पराजित किया था


युद्ध के नौवें दिन भीष्म ने अर्जुन के साथ इतना भीषण युद्ध लड़ा था के अर्जुन को भी उन्हे संभालने में कठनाई आ रही थी, और वे बार बार अर्जुन और कृष्ण को अपने बाणों से घायल कर रहे थे, प्रभु श्री कृष्ण यह देख इतने क्रोधित हो गए थे के वह स्वयं भीष्म को मारने को उद्युत हो गए थे, आप ही सोचिए उस दिन भीष्म जी ने कैसा प्राक्रम दिखाया होगा के श्री कृष्ण को भी अपना प्रण तोड़ना पड़ गया था, यह बात भी सत्य है के भीष्म जी के सेनापति रहते पांडव किसी भी बड़े कौरव योद्धा का वध नहीं कर पाये थे, कुल मिलाकर उन्होने 2 लाख से अधिक सैनिकों को मार डाला था जिनमें मुख्यता पांचाल और सृंजय थे

भीष्म पितामह का अंतिम युद्ध शिखंडी से मुठभेड़

अपनी मृत्यु का रहस्य भी उन्होने स्वयं ही पांडवों को बताया था, और शिखंडी को साथ लेकर अर्जुन ने भीष्म से साथ अंतिम युद्ध किया था, और उस भयंकर युद्ध के अंत में भीष्म युद्ध स्थल में अर्जुन के तीखे बाणों से अत्यंत विद्ध हो गये थे, वह पूर्व दिशा की ओर मस्तक किये रथ से नीचे गिर पड़े थे, और कुरुक्षेत्र युद्ध के 40 दिन बाद उत्तरायन के पहले पितामह भीष्म ने अपने प्राण त्याग दिये थे