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ब्रह्मराक्षस कौन हैं | Is Brahmarakshas the no 1 evil ?
कौन होते हैं ब्रह्मराक्षस, कितने शक्तिशाली हैं ब्रह्मराक्षस ? कौन बनता है ब्रह्मराक्षस, क्यों सभी प्रेतों में ब्रह्मराक्षस सबसे शक्तिशाली माना जाता है, आइये विस्तार से जानते हैं Brahmarakshas के बारे में
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ब्रह्मराक्षस का परिचय
ब्रह्मराक्षस नाम का एक धारावाहिक जबसे हमने देखा था तब से हमें इस विषय में काफी रुचि थी, जिज्ञासा वश हमने इस विषय पर काफी अध्यन किया और काफी खँगालने के उपरांत भी हमें अधिकतर समय कीवदंतियाँ ही मिली जिनका कोई प्रमाण हमें अपने धर्म ग्रन्थों में नहीं मिला, पर ब्रह्मराक्षस के बारे में हमारे कुछ पुराणों में वर्णन अवश्य किया गया , ब्रह्मराक्षसों की गिनती हमारे सनातनी धर्म ग्रन्थों में सर्वोच राक्षसों में की जाती है , ब्रह्मराक्षस मूलतः ब्राह्मण वर्ग की आत्माए होती है, जो मृत्यु के अंत तक धर्म का पालन और आध्यात्मिक शक्ति से युक्त रहते है, ब्रह्मराक्षस को देवतुल्य गन्धर्वों से भी ऊपर की योनि में माना गया है
भगवान शिव ने पार्वती जी को ब्रह्मराक्षस की जानकारी दी
ब्रह्मा पुराण अध्याय 94 में पार्वती जी जब भगवान शिव से राक्षसों के बारे में प्राशन करती हैं तो शिव जी उनसे कहते हैं , देवी। लोक धर्म के प्रतिपादक शास्त्र और प्राचीन मर्यादा को प्रमाण मानकर जो उसका अनुसरण करते हैं , वह दृड संकल्प एवं यज्ञ तत्पर माने जाते हैं परंतु जो मोह के वशीभूत हो अधर्म को ही अधर्म बताते हैं , वह व्रत और मर्यादा का लोप करने वाले मानव ब्रह्मराक्षस होते हैं
कौन बनता है ब्रह्मराक्षस और कैसे
ब्रह्मा पुराण अध्याय 96 में ब्रह्मराक्षस और चांडाल से जुड़ी एक कथा है, जिसे पढ़ने से हम यह जान पाएंगे के कैसे एक मनुष्य ब्रह्मराक्षस बन जाता है, किस पाप के कारण उसे यह योनि प्राप्त होती है
ब्रह्मराक्षस और चांडाल की कहानी
इस पृथ्वी पर अवन्ती नाम से प्रसिद्ध एक नगरी थी जहां भगवान विष्णु विराजमान थे, इस नगरी के किनारे एक चांडाल रहता था, जो संगीत में कुशल था, वह उत्तम वृत्ती से धन पैदा कर के कुटुंभ के लोगों का भरण पोषण करता था , भगवान विष्णु के प्रति उसकी बड़ी भक्ति थी , वह अपने व्रत का दृढ़तापूर्वक पालन करता था, प्रत्येक मास की एकादशी तिथि को वह उपवास करता और भगवान् के मंदिर के पास जाकर उन्हें गीत सुनाया करता था, इस प्रकार विचित्र गीतों द्वारा भगवान् विष्णुकी प्रसन्नता का सम्पादन करते हुए उस चाण्डाल की आयुका अधिकांश भाग बीत गया
चांडाल का ब्रह्मराक्षस से सामना
एक दिन चैत्र के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि को वह भगवान विष्णु की सेवा करने के लिए जंगली पुष्पों का संग्रह करने के निमित्त वन में गया, क्षिप्रा के तट पर महान वन के भीतर एक बहेड़े का वृक्ष था , उसके नीचे पहुँचने पर किसी राक्षस ने उस चांडाल को देखा और भक्षण करने के लिए पकड़ लिया, यह देख उस चांडाल ने उस राक्षस से कहा आज तुम मुझे ना खाओ , कल प्रातः काल खा लेना , आज मेरा बहुत बड़ा कार्य है, मुझे विष्णु की सेवा के लिए रात्रि में जागरण करना है, तुम्हें उसमें विघ्न नहीं डालना चाहिए, ब्रह्मराक्षस! सम्पूर्ण जगत् का मूल सत्य ही है, अतः मेरी बात सुनो। मैं सत्य की शपथ खाकर कहता हूँ, पुनः तुम्हारे पास लौट आऊँगा, चांडाल की यह बात सुन कर ब्रह्मराक्षस को बड़ा विस्मय हुआ, उसने कहा जाओ अपनी की हुई प्रतिज्ञा का पालन करो
चांडाल का वापिस लौटकर पुजा करना
राक्षस के यूं कहने पर चांडाल फूल लेकर भगवान विष्णु के मंदिर आया , उसने सभी फूल ब्राह्मण को दे दिये। ब्राह्मण ने उन्हें जलसे धोकर उनके द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया और अपने घर की राह ली; किंतु चाण्डाल ने मंदिर के बाहर ही भूमि पर बैठकर उपवासपूर्वक गीत गाते हुए रातभर जागरण किया,रात बीती, सबेरा हुआ और चाण्डाल ने स्नान करके भगवान् को नमस्कार किया; फिर अपनी प्रतिज्ञा सत्य करनेके लिये वह राक्षसके पास चल दिया।
चांडाल का पुनः उस राक्षस के पास लौटना
चांडाल को आया देख ब्रह्मराक्षस के नेत्र आश्चर्य से चकित हो उठे और बोला तुम वास्तव में सत्या वचन का पालन करने वाले हो मैं तुम्हें चांडाल नहीं मानता , तुम्हारे इस कर्म से मैं तुम्हें पवित्र ब्राह्मण समझता हूँ , अब मैं तुमसे धर्म संबंधी कुछ बातें पूछता हूँ , बताओ। तुमने भगवान विष्णु के मंदिर में कौन सा कार्य किया ? तब चांडाल ने कहा–‘सुनो, मैंने मन्दिर के नीचे बैठकर भगवान् के सामने मस्तक झुकाया और उनका यशोगान करते हुए सारी रात जागरण किया, राक्षस ने फिर पूछा “बताओ, तुम्हें इस प्रकार भक्तिपूर्वक विष्णु मन्दिर में जागरण करते कितना समय व्यतीत हो गया ?’ चाण्डाल ने हँसकर कहा–‘राक्षस! मुझे प्रत्येक मासकी एकादशी को जागरण करते बीस वर्ष व्यतीत हो गये
ब्रह्मराक्षस ने चांडाल से क्या मांग लिया
यह सुनकर राक्षस ने कहा–‘साधो!। अब मैं जो कहता हूँ , वह करो , मुझे एक रात के जागरण का फल अर्पण करो , ऐसा करने से तुम्हें छुटकारा मिल जाएगा, अन्यथा में तीन बार सत्यकी दुहाई देकर कहता हूँ कि तुम्हें कदापि नहीं छोडगा।’ यों कहकर वह चुप हो गया, चांडाल ने कहा , निशाचर , मैंने तुम्हें अपना शरीर अर्पित कर दिया है , अतः अब दूसरी बात करने से क्या लाभ, तुम मुझे इच्छनुसार खा जाओ , तब राक्षस ने कहा , अच्छा, रात के दो ही पहर के जागरण का पुण्य मुझे दे दो , यह सुन कर चांडाल ने कहा या कैसी बेसिर पैर की बातें करते हो , मुझे इच्छानुसार खा लो मैं जागरण का पुण्य नहीं दूंगा , चाण्डालकी बात सुनकर ब्रह्मराक्षस ने कहा-‘ भाई! तुम तो अपने धर्म-कर्म से सुरक्षित हो; कौन ऐसा अज्ञानी होगा जो तुमपर आक्रमण करने अथवा तुम्हें पीड़ा देने का साहस कर सके।दीन, पापग्रस्त, विषयविमोहित, नरकपीड़ित और मूढ़ जीवपर साधु पुरुष सदा ही दयालु रहते हैं। महाभाग ! तुम मुझपर कृपा करके एक ही याम के जागरण का पुण्य दे दो अथवा अपने घरको लौट जाओ।’
चाण्डालने फिर उत्तर दिया ‘न तो मैं अपने घर लौटूँगा और न तुम्हें किसी तरह एक याम के जागरण का पुण्य ही दूँगा।’ यह सुनकर ब्रह्मराक्षस हँस पड़ा और बोला ‘ भाई! रात्रि व्यतीत होते समय जो तुमने अन्तिम गीत गाया हो, उसी का फल मुझे दे दो और पाप से मेरा उद्धार करो.
ब्रह्मराक्षस के पूर्व जन्म की कहानी
यह सुन चांडाल ने राक्षस से कहा , पूर्व में ऐसा कौन सा दोष आपने किया जिसके कारण आप ब्रह्म राक्षस हुए , ऐसी कौन सी बुरी क्रिया आप से हुई, उनके शब्दों को सुनकर ब्रह्मराक्षस ने अपने द्वारा किए गए बुरे कार्यों को याद किया और अत्यंत व्यथित हो गए और चांडाल से बोले , मैं पहले कौन था , मैंने ऐसा क्या किया था जिसके परिणाम स्वरूप मुझे एक दुष्ट गर्भ से एक राक्षस के रूप में जन्म लेना पड़ा इसे सुना जाना चाहिए
पूर्व समय में, मैं एक ब्राह्मण था जिसे सोमशर्मा के नाम से जाना जाता था। मैं देवशर्मन का पुत्र था, जो यज्ञ करते थे और नियमित रूप से वेदों का भी अध्ययन करते थे। उस समय एक राजा थे जिनके यहाँ मैंने एक यज्ञ किया था , हालांकि उस यज्ञ में उस राजा को कुछ मंत्रों का उपयोग करने से मना किया गया था , क्यूंकी मेरी रुचि उस यज्ञ को पूर्ण करने की थी तो मैं यज्ञोपवीत संस्कार से उसी में लगा रहा
लालच और भ्रम से प्रभावित होकर मेंने यज्ञ में अग्नीद्ध्र का कर्तव्य निभाया , मैंने मूर्खता और अभिमानी होकर यह सब कर दिया है , मैंने 12 दिनों तक चलने वाले उस यज्ञ को आरंभ कर दिया , जब मैं उस यज्ञ को कर रहा था तभी मेरे पेट में पीड़ा होने लगी , दस दिन पूरे हो गए परंतु अभी भी यज्ञ समाप्त नहीं हुआ था , चूंकि वह यज्ञ भगवान शिव को स्मरपित था और उसमें आहुती राक्षस रूप में दी जा रही थी, मेरी बीच में ही मृत्यु हो गयी ,
चांडाल ने गीत का पुण्य राक्षस को दिया
इसी गलती के कारण मैं ब्रह्मराक्षस बन गया , मुझे उस यज्ञ को करने की पूरी जानकारी नहीं थी, उस यज्ञ को करते समय मंत्र बोलने थे मुझे उसका उच्चारण भी सही से करना नहीं आता था और न ही उन मंत्रों की ही मुझे पूरी जानकारी थीइस दोषपूर्ण प्रदर्शन के कारण मैं ब्रह्मराक्षस बन गया। इसलिए मैं पाप के महान सागर में डूबा हुआ हूं। इसीलिए हे चांडाल आप मेरी सहायता कीजिये , तब चाण्डाल ने उससे कहा ‘यदि तुम आज से किसी प्राणीका वध न करो तो में तुम्हें अपने पिछले गीत का पुण्य दे सकता हूँ; अन्यथा नृहीं।’ “बहुत अच्छा’ कहकर ब्रह्मराक्षस ने उसकी बात मान ली। तब चाण्डाल ने उसे आधे मुहूर्त के जागरण और गान का फल दे दिया। उसे पाकर ब्रह्मराक्षस ने चाण्डालको प्रणाम किया , उस गीत के फल से पुण्य की वृद्धि होने के कारण उसका उस राक्षस योनि से उद्धार हो गया ,हजारों वर्षों के बाद उसने पुनः जनम लिया , वह जितेंद्रिय ब्राह्मण हुआ और उसे पूर्व जनम का स्मरण बना रहा