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जामवंत की अनसुनी कहानी | कौन थे जामवंत | Is Jamwant the most powerful character in Ramayana ?
जामवंत एक भालू थे या वानर? कैसे हुआ था उनका जन्म? क्या वह हनुमान जी के समान बलशाली थे? कैसे वह रामायण से लेकर महाभारत काल तक जीवित रहे और क्या वह आज भी जीवित हैं? जामवंत से संबन्धित सभी रहस्यों को जानने के लिए इस लेख के अंत तक बने रहें
जामवंत का जन्म कैसे हुआ, किसके अवतार थे
वाल्मीकि रामायण के बाल कांड सर्ग 17 के अनुसार, महाराज दशरथ के घर में भगवान विष्णु को पुत्र रूप में अवतीर्ण होते देख ब्रह्मा जी ने सब देवताओं से कहा कि भगवान विष्णु की सहायता के लिए तुम लोग भी शक्तिशाली वानरों को, नाग कन्याओं, अप्सराओं, गंधर्व की स्त्रियों व वानरियों से उत्पन्न करो। आगे ब्रह्मा जी कहते हैं कि मैंने पहले भालुओं में श्रेष्ठ जांबवान नामक रीछ को पैदा किया था, वह जमुहाई लेते समय मेरे मुख से सहसा निकल पड़ा था।
कंब रामायण के अनुसार जब मधु कैटभ का जन्म हुआ था तो उन्होंने ब्रह्मा जी को चुनौती दी थी। उन दैत्यों की चुनौती और गर्जना को सुन ब्रह्मा जी भयभीत हो गए थे और उनके मुख पर पसीना आ गया था। उसी समय ही ब्रह्मा जी के पसीने से जामवंत का जन्म हुआ था, इसीलिए जामवंत को अंबुजात नाम से भी जाना जाता है।
चूंकि वे जाम्बूनद देश में प्रवेश करने वाले पहले व्यक्ति थे, इसलिए उन्हें जाम्बवान कहा जाता है। उनका जन्म उस समय हुआ था जब कोई ब्रह्मांड या समय नहीं था, इसीलिए उनकी आयु या जन्म तिथि का पता नहीं लगाया जा सकता था। कंब रामायण पूर्व कांड के अनुसार जामवंत ने विष्णु जी के मत्स्य से लेकर श्री राम तक सभी अवतारों को देखा है, और श्री राम के काल तक उनकी आयु 6 मन्वंतर थी।
रामायण में जामवंत ने बताया अपना बल
रामायण काल आते-आते जामवंत बहुत वृद्ध हो चुके थे। वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड सर्ग 65 के अनुसार जब जामवंत सभी वानरों की छलांग लगाने की क्षमता जांच रहे थे, तो उस समय वे कहते हैं, युवावस्था में मुझमें भी छलांग मारने की शक्ति थी, किन्तु अब तो मेरी युवावस्था रही नहीं। तथापि मैं इस कार्य की उपेक्षा नहीं कर सकता। श्री राम और सुग्रीव के इस कार्य को अवश्य करना ही पड़ेगा। मैं निसंदेह 60 योजन अब भी छलांग मार कर जा सकता हूँ।
जामवंत वहाँ वानरों से बोले, “कहीं यह मत समझ लेना कि मुझमें पहले भी इतना ही बल था। युवावस्था के समय मुझमें ऐसा पराक्रम था कि जब वामन रूप विष्णु जी ने अपना विशाल रूप धर राजा बलि के यज्ञ में तीन पैर से तीनों लोक नाप लिए, उस समय मैंने भी बड़े वेग से उनकी परिक्रमा की थी। अब तो मैं बूढ़ा हूँ और मेरी शक्ति भी मंद पड़ गयी है, परंतु जवानी में मेरे बराबर बल किसी में नहीं था।”
जामवंत का हनुमान को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाना
आगे जब जामवंत को किसी भी वानर का कौशल प्रभावित नहीं कर सका तब जाम्वंत सभी को बताते हैं कि एकमात्र व्यक्ति जो इस कठिन कार्य को सफलतापूर्वक कर सकता है, वह हनुमान जी ही हैं, और वह जामवंत ही थे जिन्होंने हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण कराया था।
जामवंत का अपनी शक्ति तथा श्राप का वर्णन
कंब रामायण युद्ध कांड के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था, उस समय जांबवन बहुत शक्तिशाली और पराक्रमी थे। जब भगवान वामन ने तीन पग में तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया था, तो उस समय जामवंत ने यह समाचार सबको देने के लिए सर्वत्र तीनों लोकों की यात्रा की। उन्होंने तीन क्षण के भीतर ही तीनों लोकों की अठारह बार यात्रा की। इससे ही आप उनकी गति का अंदाजा लगा सकते हैं।
उस समय जब वह बिजली की गति से यात्रा कर रहे थे तो उनके पैर के अंगूठे का नाखून महामेरु की सर्वोच्च चोटी को छू गया। महामेरु ने इसे अपना अपमान समझा और उन्होंने जांबवन को शाप देते हुए कहा कि “जिस जवानी और गति पर तुम्हें इतना अभिमान है, अब से तुम्हारा शरीर वहाँ नहीं पहुँच पाएगा जहाँ तुम्हारा मन पहुंचता है, और तुम सदा बुड़े रहोगे।” इसी शाप के कारण ही जामवंत बूढ़े हो गए थे।
जामवंत का रावण और मेघनाद से युद्ध
रामचरितमानस के लंका कांड के अनुसार – जब रावण वानरों और रीछों की सेना को संहार कर रहा था, यह देख जामवंत बहुत क्रोधित हो गए, और उन्होंने उछल कर रावण की छाती पर एक जोरदार लात मारी। जामवंत के पैर का प्रहार इतना घातक था कि रावण वहीं मूर्छित होकर रथ से धरती पर जा गिरा। उसे मूर्छित देख जांबवन ने एक और लात उसे मारी और प्रभु श्री राम के पास चले गए। रावण के सारथी ने रावण को उठाकर रथ पर चढ़ा लिया और उसे होश में लाने का प्रयास करने लगा।
जब मेघनाद का सामना जांबवन से हुआ था, तो उस समय मेघनाद जामवंत से बोला, “मूर्ख, मैंने बुड़ा जानकर तुम पर प्रहार नहीं किया और तुम्हें जीवनदान दिया।” यह कहते हुए मेघनाद ने एक शक्तिशाली शूल जांबवन पर चला दिया, परंतु उस शूल को जामवंत ने बीच हवा में ही पकड़ लिया और आगे बढ़ते हुए उसे वापिस मेघनाद पर ही चला दिया। उस आघात को मेघनाद सह न पाया और तड़पते हुए धरती पर गिर गया। धरती पर गिरे हुए मेघनाद को क्रोधित जांबवन ने एक जोरदार लात मारी, जिससे मेघनाद गोल घूमते हुए दूर जा गिरा। रामचरितमानस के यह दोनों ही वृत्तांत यह दर्शाते हैं कि जांबवन वृद्ध होते हुए भी बहुत बलशाली थे।
जामवंत महाभारत में भी थे और उनका युद्ध श्री कृष्ण से हुआ था
जामवंत महाभारत काल में भी थे। भागवत पुराण के दशम स्कन्द अध्याय 56 के अनुसार सत्राजित के भाई प्रसेन एक समय स्यमंतक मणि को अपने गले में धारण कर शिकार खेलने वन में चला गया। वहाँ एक सिंह ने घोड़े सहित प्रसेन को मार डाला और उस मणि को छीन लिया। वह अभी पर्वत की गुफा में प्रवेश कर ही रहा था कि मणि के लिए ऋक्षराज जाम्बवान ने उसे मार डाला। और वह मणि को अपनी गुफा में ले गए। अपने भाई प्रसेन के न लौटने से सत्राजित कहने लगा, ‘बहुत सम्भव है श्रीकृष्ण ने ही मेरे भाई को मार डाला हो; क्योंकि वह मणि गले में डालकर वन में गया था।
जब भगवान श्रीकृष्ण ने सुना कि यह कलंक का टीका मेरे ही सिर लगाया गया है, तब वे उसे मिटाने के उद्देश्य से प्रसेन को ढूँढने के लिये वन में गए। उन्होंने देखा एक रीछ ने सिंह को भी मार डाला है। तो वे ऋक्षराज की भयंकर गुफा में प्रवेश कर गए। वहाँ भगवान श्रीकृष्ण और जाम्बवान आपस में घमासान युद्ध करने लगे। पहले तो उन्होंने अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार किया, फिर शिलाओं का, तत्पश्चात् वे वृक्ष उखाड़कर एक-दूसरे पर फेंकने लगे। अन्त में उनमें बाहुयुद्ध होने लगा। वे अट्ठाईस दिन तक बिना विश्राम किए रात-दिन लड़ते रहे।
अन्त में भगवान श्रीकृष्ण के घूँसों की चोट से जाम्बवान के शरीर की एक-एक गाँठ टूट-फूट गई। तब उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से कहा- ‘प्रभो! मैं जान गया। आप ही समस्त प्राणियों के स्वामी, भगवान विष्णु हैं।’ इसके उपरांत जाम्बवान ने बड़े आनन्द से उनकी पूजा करने के लिए अपनी कन्या कुमारी जाम्बवती को मणि के साथ उनके चरणों में समर्पित कर दिया था।
जामवंत से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी
वाल्मीकि रामायण में जामवंत को किसी-किसी स्थान पर कपि कहकर भी सम्बोधित किया गया और कुछ स्थानों पर उन्हें ऋक्ष कहा गया है, ऐसा रामायण के कई दूसरे संस्करणों में भी कहा गया है। रावण और मेघनाद की दुर्गति करने वाले जामवंत, अपनी तीव्र गति से सबको प्रभावित करने वाले तथा श्रीकृष्ण से 28 दिनों तक युद्ध करने वाले ऋक्षराज जामवंत निश्चित ही बहुत शक्तिशाली थे। जय श्री राम।