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काल भैरव कौन है | Kaal Bhairav story
भगवान काल भैरव भगवान शिव का ही एक उग्र रूप हैं, उन्हे कलियुग के जागृत देवता भी माना जाता है, कितना शक्तिशाली है शिव का यह काल भैरव रूप, शिव पुराण में उनकी एवं ब्रह्महत्या की उत्पत्ति का वृतांत बड़े ही विस्तार से किया गया है
काल भैरव की उत्पत्ति कैसे हुई
शिव महापुराण के श्रीशत रुद्र संहिता अध्याय 8 में भैरव जी की उत्पत्ति का सम्पूर्ण विवरण हमें मिलता है, इसके अनुसार भगवान शिव के परम रूप भैरव जी हैं, और उनकी उत्पत्ति की कथा बड़ी आनंददायक है
ब्रह्मा जी और विष्णु जी का झगड़ा
एक समय की बात है, ब्रह्मा जी सुमेरु पर्वत पर बैठकर ध्यान में मगन थे, उसी समय देवता उनके पास आए और उन्होने ब्रह्मा जी से पूछा के इस संसार में अविनाशी तत्व क्या है ? इस पर ब्रह्मा जी बोले इस संसार में मुझसे बड़कर कोई भी नहीं , मेरे द्वारा ही यह सारा संसार उत्पन्न हुआ है, मैं ही स्वयं भू, आज ईश्वर, अनादि, भोक्ता , ब्रह्मा और निरंजन आत्मा हूँ, मेरे कारण ही संसार प्रवृत और निवृत होता है,
ब्रह्मा जी के इन वचनों को सुनकर वहीं बैठे श्री हरी विष्णु को बहुत बुरा लगा और वह ब्रह्मा जी से बोले तुम इस प्रकार अपनी स्वयं ही प्रशंसा न करो क्योंकि मेरी आज्ञा के फलस्वरूप ही तुम इस सृष्टि के रचीयता हो, इस प्रकार श्री हरी और ब्रह्मा जी आपस में ही लड़ाई करने लगे,
तब उन्होने अपने को उच्च सिद्ध करने के लिए वेदों का स्मरण किया , फलस्वरूप चारों वेद वहाँ उपस्थित हो गए , सर्वप्रथम ऋग्वेद बोले, जिसके भीतर समस्त भूत निहित हैं तथा जिसके द्वारा सबकुछ प्रवृत होता है , जिनहे इस संसार में परम तत्व कहा जाता है वह एक भगवान शिव ही हैं, यजुर्वेद बोले उनही भगवान शिव शंकर को सम्पूर्ण यज्ञों तथा योग में स्मरण किया जाता है,
तत्पश्चात सामवेद बोले की जो समस्त संसार के लोगों को भरमाता है और जिसकी खोज में सदा ऋषि मुनि लगे रहते हैं , जिनकी कान्ति से सारा विश्व प्रकाशमान होता है वह त्र्यंबक महादेव जी हैं , इस पर अथर्व बोल उठे , भक्ति से साक्षत्कार कराने वाले तथा समस्त दुखों का नाश करने वाले एकमात्र देव भगवान शिव ही हैं लेकिन भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु दोनों अविश्वास में हंसने लगे और बोले, हे वेदों । तुम्हारे वचनों से सिर्फ तुम्हारी अज्ञानता ही झलकती है
भगवान शिव से ब्रह्मा जी के अप्रिय वचन
ब्रह्मा जी और विष्णु जी के इन वचनों को सुनकर ओंकार भी उन दोनों को समझाते हुए वही सब बोले जो वेदों ने पहले कहा था, ओंकार की बातें सुनकर भी उनका विवाद थम नहीं रहा था, तभी उन दोनों के बीच में एक विशाल ज्योति प्रकट हो गयी जिसका न कोई आरंभ दिखता था और न ही कोई अंत, उस अग्नि की ज्वाला से ब्रह्मा जी का पाँचवाँ मुख जलने लगा , उसी समय भगवान शिव वहाँ प्रकट हुए, ब्रह्मा जी शिव जी से बोले, हे पुत्र तुम मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा, तुम मेरे सिर से ही प्रकट हुए हो
भगवान शिव का ब्रह्मा जी पर क्रोधित होना
ब्रह्मा जी इस प्रकार के वचनों को सुनकर भगवान शिव को भी क्रोध आ गया, उनके क्रोध से तत्काल ही एक पुरुष उत्पन्न हो गया , उसका नाम काल भैरव था, भगवान शिव ने उस पुरुष को आदेश देते हुए कहा – हे कालराज, तुम साक्षात काल के समान हो इसीलिए आज से तुम जगत में काल भैरव के नाम से विख्यात होगे, तुम ब्रह्मा का गर्व नष्ट करो तथा इस संसार का पालन करो, आज से मैं तुम्हें काशीपुरी का आधिपत्य प्रधान करता हूँ | वहाँ के पापियों को दंड देना तुम्हारा ही कार्य होगा, वहाँ के मनुष्यों द्वारा किए गए अच्छे बुरे कर्मों का लेखा चित्रगुप्त स्वयं लिखेंगे
काल भैरव द्वारा ब्रह्मा जी का मस्तक काटना
भगवान शिव के इस आदेश को काल भैरव ने प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण किया , तत्पश्चात उन्होने अपनी बाएँ उंगली के अग्रभाग से ब्रह्मा जी का पाँचवाँ सिर काट दिया, यह देख कर ब्रह्मा जी भयभीत होकर शतरुद्रीय का पाठ करने लगे , भगवान शिव की कृपा से ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच का विवाद तुरंत समाप्त हो गया, ब्रह्मा जी को शिव जी का अपमान करने पर अत्यंत पछतावा हुआ, और वहाँ भगवान शिव ने उन्हे क्षमा भी कर दिया, तत्पश्चात भगवान शिव ने काल भैरव को आज्ञा दी के वे सदा ब्रह्मा और विष्णु का आदर करें और पापियों को दंड प्रदान करें
काल भैरव का काशी नगरी में निवास
भगवान शिव की आज्ञा से काल भैरव ने कापालिक व्रत को धारण किया, वह अपने हाथों में कपाल लेकर काशी नागरी की और चल दिये, परंतु ब्रह्म हत्या नामक कन्या उनके पीछे लग गयी , एक दिन जब जब काल भैरव कापालिक वेश धारण कर के भगवान नारायण के स्थान पर गए तब भगवान शिव के भैरव रूप को आता देख सब देवताओं एवं ऋषि मुनियों ने उनको हाथ जोड़कर प्रणाम किया,
भगवान विष्णु जी ने भी देवी लक्ष्मी के सामने काल भैरव महिमा मण्डल किया और उन्हे बताया के यह भगवान शिव के ही रूप हैं, परंतु काल भैरव को इस प्रकार भिक्षा मांगते देख भगवान विष्णु ने इसका तात्पर्य पूछा, काल भैरव जी बोले , हे नारायण मैंने ब्रह्मा जी का पाँचवाँ सिर काट दिया था , इसीलिए उस पाप का पश्चाताप करने हेतु मैं यह कर रहा हूँ , तब देवी ने भिक्षा के रूप में मनोरथी नाम की विद्या भैरव जी के भिक्षा पात्र में दाल दी , भिक्षा प्राप्त कर भैरव जी अन्य स्थान की और निकल पड़े,
तभी विष्णु जी ने भैरव जी के पीछे जाती हुई ब्रह्महत्या को देखा और उससे कहा के वह शिव जी का पीछा छोड़ दे, परंतु ब्रह्महत्या ने कहा की इस बहाने ही मैं शिव जी की सेवा करती हूँ यह कहकर ब्रह्महत्या फिर भैरव जी का पीछा करते हुई काशी नगरी के समीप आ गयी, वहाँ पहुँचते ही ब्रह्महत्या पाताल में समा गयी और ब्रह्मा जी का सिर भैरव जी के हाथ से छूटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा ,
जिस स्थान पर काल भैरव जी के हाथ से ब्रह्मा जी का पाँचवाँ सिर गिरा था वह स्थान कपाल मोचन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गया , जब तक भैरव जी पूरी पृथ्वी का भ्रमण करके काशी नहीं पहुंचे , उनके हाथ में ब्रह्मा जी का सिर चिपका रहा और काशी पहुँचते ही वह छूट गया, इसीलिए काशी नगरी को पाप नाशिनी माना जाता है