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कलिपुरुष कौन है | Kali Purusha Story
कलिपुरुष कौन है, वह कहाँ उत्पन्न हुआ ? वह किस प्रकार पृथ्वी का अधीश्वर बन गया तथा उसने नित्य-धर्म को किस प्रकार विनष्ट कर दिया ? कितना शक्तिशाली था कलिपुरुष जिसके लिए स्वयं श्री हरी नारायण को उसके विनाश के लिए पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा , आइये विस्तार से जानते है कलि पुरुष के सम्पूर्ण रहस्य को
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कलिपुरुष की उत्पत्ति की कहानी
कल्कि पुराण के प्रथम अध्याय में श्री शुकदेव द्वारा वर्णित भागवत उपाख्यान है, जो भविष्य में घटित होने वाला है, इसके अनुसार, जब प्रलयकाल व्यतीत हो गया, तब पितामह ब्रह्मा जी ने अपनी पीठ से घोर मलीन पातक को उत्पन्न किया, उसी पातक का नाम अधर्म हुआ, उस अधर्म का श्रवण, स्मरण एवं रहस्य जानने से प्राणी सब पापों से मुक्त हो सकते हैं, उस अधर्म का विवाह मिथ्या से हुआ, अधर्म और मिथ्या का एक अति तेजस्वी, महाक्रोधी पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम दंभ था, उनकी एक पुत्री भी हुई जिसका नाम माया था , दंभ और माया के सयोग से लोभ नामक पुत्र और निकृति नाम की कन्या हुई ,
लोभ और निकृति के सयोग से क्रोध नामक पुत्र हुआ और हिंसा नामक पुत्री हुई, क्रोध और हिंसा के सयोग से संसार को नष्ट करने वाले कलि की उत्पत्ति हुई, उस कलिपुरुष की देह कान्ति के काजल के समान काली थी , भयानक दुर्गंध युक्त शारेरधारी इस कलि ने ध्युत , मदिरा, वेश्यावृत्ति में प्रवरित महिलाएं, तथा स्वर्ण में निवास किया, कलि और दुरुक्ति के सयोग से उनका भय नामक पुत्र और मृत्यु नामक पुत्री उत्पन्न हुई, मृत्यु ने निरय नामक पुत्र और यातना नामक पुत्री को उत्पन्न किया, निरय और यातना के सयोग से हजारों पुत्र उत्पन्न हुए, इस प्रकार कलि के कुल में बहुतेरे धर्म निंदकों की उत्पत्ति हुई
यह सभी आधी व्याधि , ग्लानि , दुख , शोक और भय के आश्रय को प्राप्त होकर यज्ञ, वैदिक तथा तांत्रिक कर्मों का नाश करने वाले हुए, कलिराज के अनुचर यूथों ने चंचल और कामुक देह धारण किए , यह घोर दंभी , दुराचारी मात्र -पित्र हिंसक हुए
कलि का जन्म होते ही होने लगा अमंगल
कलि के प्रथम पाद में ही मनुष्यगण श्री कृष्ण निंदक हो गए , कलि के द्वितीय पाद में लोग श्री कृष्ण नाम को भी भूल गए , तीसरे पाद में वर्णसंकर उत्पन्न हुए और चौथे पाद में तो लोग सत्कर्म और ईश्वर को भी भूल गए ,
तब समस्त देवता आहार न मिलने से पीड़ित होकर ब्रह्मजी की शरण में गए , वहाँ जाकर सभी देवताओं ने कलि के दोषों से जो धर्म की हानी हुई थी , उसका सम्पूर्ण वृतांत निवेदन किया , ब्रह्मजी बोले मैं
भगवान विष्णु की आराधना करके तुम्हारा सब मनोरथ सिद्ध करता हूँ , ब्रह्मा जी सभी देवताओं को साथ लेकर गोलोक पहुंचे , वहाँ ब्राह्मी जी ने स्तुति की और फिर देवताओं की कामना निवेदन की
तब भगवान ने देवताओं की दुख गाथा सुनकर ब्रह्मा जी से कहा , के मैं शंभल ग्राम में में विष्णुयश के यहाँ , उनकी पत्नी सुमति के गर्भ से उत्पन्न हूंगा , तत्पश्चात भगवान श्रीहरी विष्णुयश के द्वारा उनकी पत्नी के गर्भ में प्रविष्ट होकर भ्रूण रूप हुये , और वैशाख शुक्ल द्वादशी के दिन भगवान ने अवतार लिया
धर्मराज और सतयुग की कल्कि भगवान से याचना
कुछ समय बीत जाने के उपरांत, एक भिक्षु का रूप धर सतयुग भगवान कल्कि के यहाँ पधारे , कल्कि जी ने प्रश्न किया आप कौन हैं ? भिक्षु ने कहा – मैं आपका आज्ञाकारी सत्ययुग हूँ, आपके अवतार का प्रत्यक्ष प्रभाव देखने के निमित्त ही यहाँ उपस्थित हुआ हूँ , मेरे द्वारा श्रेष्ठ धर्म पाला और मेरे द्वारा सम्पूर्ण प्रजा धर्म का अनुष्ठान करती है, कल्कि जी ने सतयुग को इस प्रकार आया देख कर कलियुग के शासन में स्थित विशासन नामक नगरी में युद्ध करने की इच्छा करते हुए अपने अनुयाइयों को युद्ध के लिए तैयार हो जाने के लिए कहा, तभी वहाँ कितनी ही अक्षौनी सेना एकत्रित हो गयी
इतने में ही वहाँ धर्म का भी आगमन हुआ वह बहुत घबराए हुए थे, कल्कि जी धर्म से उनके आगमन का कारण पूछा, धर्म बोला हे प्रभो – मैं ब्रह्म स्वरूप धर्म आपके वक्ष स्थल से उत्पन्न हुआ हूँ, मेरे द्वारा सभी प्राणियों के कार्यों की सिद्धि होती है, मैं यज्ञ फल प्रदान करके साधुजन का अभीष्ट पूर्ण करता हूँ,
इस समय शक, कंबोज, शबर आदि कलियुग के शासन में रहते हैं, कलिक्रम के कारण मैं उस बलवान कलिपुरुष से ही हारा हुआ हूँ, इसीलिए मैं आपके चरणों की शरण में उपस्थित हुआ हूँ
कल्कि जी धर्म से बोले, हे धर्म इधर देखो, सत्ययुग का आगमन हो चुका है, तुम्हें यह विदित ही है की मैंने ब्रह्मा जी द्वारा प्रार्थित होकर ही यह देह धारण किया है, तुम भय को त्याग दो और अपने पुत्र एवं बांधवों सहित शत्रुओं पर दिग्विजय के उदेश्य से प्रस्थान करो, मैं भी तुम्हारा साथ दूंगा
कलिपुरुष और कल्कि भगवान का युद्ध
इस प्रकार भगवान कल्कि मलेच्छों पर विजय की कामना से कलि के आवास वाले स्थान में पहुंचे, संसार के भयप्रद यह नगरी भयंकर प्रतीत होती थी, वहाँ भूतों का निवास होने के कारण वहाँ गो मास की दुर्गंध आ रही थी, वहाँ का अधीश्वर कल्कि जी का आक्रमण सुन कर अपने उल्लू की ध्वजा वाले रथ पर आरुड़ होकर बाहर आया,
उस कलि को देख कर भगवान कल्कि की आज्ञा से धर्म ने उसके साथ संग्राम प्रारम्भ किया , दंभ से ऋत और लोभ से प्रसाद भिड़ गया, क्रोध के साथ अभय और भय के साथ सुख का युद्ध होने लगा , वहाँ अत्यंत घोर एवं दारुण संग्राम उपस्थित हो गया, कोक विकोक के साथ स्वयं भगवान कल्कि युद्ध में तत्पर हुए , यह कोक – विकोक ब्रह्मा जी से वर प्राप्त करने के कारण अत्यंत अहंकारी हो गए थे , इन दोनों का भगवन के साथ प्रलयंकारी युद्ध आरंभ हो गया ,
इस प्रकार भयंकर युद्ध होता देख कर सतयुग सहित धर्म ने अत्यंत क्रोधपूर्वक कलि से युद्ध प्रारम्भ किया, तब कलि इन दोनों की भीषण बाण वर्षा को सहन न कर पाया और अपने वाहन गधे को वहीं छोड़ कर भागता हुआ अपनी पूरी में घुस गया, उसका रथ चकनाचूर हो गया, तत्पश्चात सतयुग को साथ लेकर धर्म कलि की राजधानी में प्रविष्ट हुआ और उसने कलि के सहित उसकी सम्पूर्ण नगर को अपने बाणों से जला दिया, कलि के सभी अंग जल गए, उसकी पत्नी और पुत्र सभी मारे गए, तब वह रोता हुआ अप्रकट रूप से अन्य वर्ष अर्थात कल्प में पलायन कर गया |
कलि तो वहाँ से गायब हो गया , परंतु कल्कि भगवान का कोक विकोक से युद्ध चलता रहा, बड़ी कठिनाइयों के बाद अंततः कल्कि जी के हाथों वह दोनों मारे गए ,इस प्रकार विजय को प्राप्त हुए कल्कि जी अपनी विशाल सेना सहित आगे बड़े, और भल्लाट नगर में पहुंचे, परंतु कलिपुरुष अगले युग में प्रस्थान कर चुका था