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कामदेव की कहानी | कामदेव किसके अवतार थे | Who is Kamadeva ?
कामना और सृजन शक्ति के देवता कामदेव को माना जाता है, वास्तविकता में कौन थे कामदेव, कैसे हुआ उनका जन्म? कितने शक्तिशाली थे वे, किस कार्य के लिए उनकी उत्पत्ति हुई, क्या केवल मनुष्यों को कामुक करना ही उनका एक मात्र कार्य था या फिर उनकी भूमिका इससे कहीं अधिक थी ? कामदेव से जुड़े एक एक रहस्य को आज हम इस लेख में जानेंगे
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काम देव का जन्म कैसे हुआ
महाभारत आदि पर्व अध्याय 66 के अनुसार, ब्रह्मा जी के दाहिने स्तन को विदीर्ण करके मनुष्य रूप में भगवान धर्म प्रकट हुए, जो सम्पूर्ण लोकों को सुख देने वाले हैं। उनके तीन श्रेष्ठ पुत्र हैं, जो सम्पूर्ण प्राणियों के मन को हर लेते हैं। उनके नाम हैं – शम, काम, और हर्ष। वे अपने तेज से सम्पूर्ण जगत् को धारण करने वाले हैं। काम की पत्नी का नाम रति है। शम की भार्या प्राप्ति है। हर्ष की पत्नी नन्दा है। इन्हीं में सम्पूर्ण लोक प्रतिष्ठित हैं।
कालिका पुराण में हमें कामदेव के जन्म को लेकर एक और कथा मिलती है। इसके अनुसार, ब्रह्मा जी ने दस प्रजापतियों की रचना की। उसके बाद संध्या नामक एक स्त्री की रचना हुई। संध्या के जन्म लेते ही, ब्रह्मा जी और प्रजापति उसके आकर्षण से बहुत मोहित हो गए और वे अपने स्थानों से उठ खड़े हुए। उनके सभी विचार एक ही वस्तु पर एकत्रित हो गए। उसी समय ब्रह्मा जी के मन से हाथों में पुष्प धनुष लिये एक सुन्दर युवक प्रकट हुआ।
अपने जन्म के तुरंत बाद, उन्होंने ब्रह्मा से पूछा “काम दर्पयामि” अर्थात (मुझे किसे गर्वित करना चाहिए?) ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया – जीवित प्राणियों के मन को अपने तीरों का लक्ष्य बनने दो। उन्होंने दक्ष की पुत्री रति को काम की पत्नी बनने का सुझाव दिया। चूँकि उन्होंने ब्रह्मा के मन को उद्वेलित कर दिया, इसलिए उनका नाम “मन्मथ” पड़ा, और चूँकि वे दिखने में बेहद आकर्षक थे, इसलिए उन्हें “काम” कहा जाने लगा।
ब्रह्मा जी द्वारा कामदेव को श्राप
ब्रह्मांड पुराण के अनुसार, एक समय ब्रह्मा जी सृष्टि निर्माण के उद्देश्य से परब्रह्म का ध्यान कर रहे थे। उन्हें अपने मन में कामुक विचार उठते हुए अनुभूत हुए। वहाँ तुरन्त उनके मन से एक कन्या का जन्म हुआ। वह कन्या उनके सामने प्रकट हुई और उन्हें प्रणाम किया। वह कन्या सरस्वती थी।
ब्रह्मा जी को उससे प्रेम हो गया। परंतु शीघ्र ही उन्हें अपने मन की क्षीणता पर पश्चाताप होने लगा। और उनका क्रोध कामदेव पर भड़क उठा, ब्रह्मा जी ने अपनी इस स्थिति का कारण कामदेव को ही ठहराया। उन्होंने शाप दिया कि कामदेव शिव की तीसरी आँख की अग्नि में जलकर भस्म हो जायेंगे।
भगवान शिव ने किया कामदेव को भस्म
शिव पुराण, श्री रुद्र संहिता अठारवें अध्याय के अनुसार जब ब्रह्मा जी से अद्भुत वर पाकर तारकासुर अजय हो गया और उससे सब देवता और समस्त ऋषि दुखी हो गए तो इसके निवारण हेतु इन्द्र देव ने कामदेव को बुलवाया और उन्हें बताया के ब्रह्मा जी के वरदान के कारण, तारक दैत्य का वध केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों से ही संभव है। देवी पार्वती, महादेव जी को पतिरूप में प्राप्त करने के प्रयत्न कर रही हैं, परंतु भगवान शिव अपने मन को संयम-नियम से वश में रखते हैं, तुम कुछ ऐसा प्रयत्न करो के शिव की देवी पार्वती में अत्यंत रुचि हो जाए।
कामदेव तब अपनी पत्नी रति और वसंत को साथ ले उस स्थान पर गए जहां योगीश्वर शिव तपस्या कर रहे थे। वहाँ पहुँचकर कामदेव ने शिवजी पर अपने बाण चलाये। इन बाणों के प्रभाव से शिव जी के हृदय में देवी पार्वती के प्रति आकर्षण होने लगा तथा उनका ध्यान तपस्या से हटने लगा। ऐसी स्थिति देख महायोगी शिव अत्यंत आश्चर्यचकित हुए और मन में सोचने लगे के मैं क्यों अपना ध्यान एकाग्रचित नहीं कर पा रहा हूँ, मेरी तपस्या में यह कैसा विघ्न आ रहा है? तभी उनकी दृष्टि सामने छिपे कामदेव पर पड़ी।
उस समय काम पुनः बाण छोड़ने वाले थे, उन्हें देखते ही शिव जी को बहुत क्रोध आया। वहाँ कामदेव डर से काँपने लगे। सभी देवता वहाँ आ पहुंचे। तभी भगवान शिव के मस्तक के बीचों-बीच स्थित तीसरा नेत्र खुला और उसमें से आग निकली।
इससे पूर्व के कोई देवता भगवान शिव से क्षमा याचना कर पाता, उस आग ने वहाँ खड़े कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया, और वह वहीं मृत्यु को प्राप्त हो गए। पति की मृत्यु के दुख से रति विलाप करने लगी। उनके विलाप को देख सभी देवता दुखी हो गए, और महादेव से कामदेव को पुनः जीवित करने की प्रार्थना करने लगे।
तब वहाँ शिव जी ने देवताओं से कहा की, मेरे क्रोध से जो कुछ हो गया वह अन्यथा नहीं हो सकता। तथापि कामदेव तभी तक शरीर रहित रहेगा, जब तक श्रीकृष्ण का धरती पर अवतार नहीं हो जाता। जब श्रीकृष्ण द्वारका में रहकर पुत्रों को उत्पन्न करेंगे, तब वे रुक्मणी के गर्भ से काम को भी जन्म देंगे। उस काम का ही नाम उस समय प्रद्युम्न होगा। रति, उस समय तक तुम्हें शंबरासुर के नगर में निवास करना चाहिए। वहाँ तुमसे मिलकर काम युद्ध में शंभरासुर का वध करेगा। मेरा यह कथन सर्वथा सत्य होगा।
कामदेव और शिव जी से जुड़े कामेश्वर लिंग की महिमा
स्कन्द पुराण के अवन्त्य खंड में कामेश्वर लिंग की महिमा बताई गयी है। इसके अनुसार कामेश्वर लिंग तेरहवें देवता हैं। इसके दर्शन मात्र से ही परम आनंद और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कामेश्वर किंक के अध्याय में ही ब्रह्मा जी कामदेव से कहते हैं के, सृष्टि की इच्छा से मैंने प्रजापतियों की रचना की है। लेकिन, हे काम, वे संतान उत्पन्न करने में असमर्थ हैं। उन्हें प्रसन्न रहने दो। आप संतान निर्माण में अग्रणी हैं। यह ब्रह्माण्ड आपके अधीन है।
हे कंदर्प, मेरी आज्ञा से विविध प्रकार के प्राणियों की रचना करो। ब्रह्मा जी के ऐसा कहने पर, कामदेव वहाँ से अदृश्य हो गए। यह देख ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए और उन्होंने काम को शाप दिया: के “निश्चित रूप से तुम्हारा विनाश होगा। तुम (शिव) के नेत्र से निकलने वाली अग्नि से नष्ट हो जाओगे, क्योंकि तुमने मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया।”
उस भयानक शाप को सुनकर कन्दर्प अत्यधिक भयभीत हो गए। नम्रता के साथ उन्होंने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया और कहा: “हे देव, मुझ पर प्रसन्न हों जिनके पास आपके अतिरिक्त कोई अन्य सहारा नहीं है। स्वामी, अपने आश्रितों पर अत्यधिक क्रोधित नहीं होते। तब कामदेव की अनुनय-विनय से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें रहने के लिए 12 स्थान देता हूं- स्त्रियों के कटाक्ष, केश राशि, जंघा, वक्ष, नाभि, जंघमूल, अधर, कोयल की कूक, चांदनी, वर्षाकाल, चैत्र और वैशाख महीना।
इस प्रकार कहकर ब्रह्मा जी ने कामदेव को पुष्प का धनुष और 5 बाण देकर प्रस्थित कर दिया। कामदेव, रति और प्रीति के साथ, तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करते हैं। वह ऐसे धनुर्धर हैं जो अपने धनुष से विद्वानों, तपस्वियों, वीरों, बुद्धिमानों, इंद्रियों को नियंत्रित रखने वाले पुरुष, देवता, पितरों के समूह, भूत, पिशाच, यक्ष, तथा गंधर्व आदि पर विजय पाकर उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं।
रति ने कैसे जीवित किया कामदेव को
स्कन्द पुराण के प्रभास खंड अध्याय 96 के अनुसार जब भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था, तो उसी थान पर रति ने अपने पति को पुनः प्राप्त करने के लिए घोर तप किया था।
वह चार युगों तक अपने पैरों की उँगलियों पर खड़े होकर तपस्या करती रही, और उसकी घोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए थे।
एक निश्चित समय पर, महेश्वर लिंग धरती को भेदकर रति के आगे उत्पन्न हो गया। उस समय रति को संबोधित करते हुए एक आकाशवाणी हुई, यह महेश्वर लिंग आपकी भक्ति के परिणामस्वरूप अचानक प्रकट हुआ, इसलिए आपको इसकी पूजा करनी चाहिए। इससे तुम्हें तुम्हारा पति पुनः प्राप्त हो जाएगा।आकाशवाणी के उन वचनों को सुनकर उस पतिव्रता रति ने बड़ी श्रद्धा से उस लिंग की पूजा अर्चना की। तभी कामदेव पुनः जीवित हो उठे और उसी समय से उस लिंग को कामेश्वर नाम से जाना जाने लगा।
कामदेव के अस्त्र शस्त्र, वहाँ और उनका रूप कैसा है
कामदेव को सुनहरे पंखों से युक्त एक सुंदर नवयुवक की तरह प्रदर्शित किया गया है। कामदेव का धनुष मिठास से भरे गन्ने का बना हुआ है, जिसकी प्रत्यंचा मधुमखियों के शहद से बनी है, और उनके बाण फूलों से निर्मित हैं। यह तोते के रथ पर मकर के चिन्ह से अंकित लाल ध्वजा लगाकर विचरण करते हैं।
उनके बाणों के पांच पुष्प हैं:- अरविंद, अशोक, कूट, नवमालिका, नीलोत्पला। इनके अलावा, उनके पास पांच और बाण हैं जो इस प्रकार हैं- मारण, स्तम्भन, जृम्भन, शोषण और उन्मादन। कामदेव के धनुष के तीन कोण होते हैं। यह कोण ब्रह्मा, विष्णु, महेश को दर्शाते हैं। यह धनुष बताता है कि काम के अतिरिक्त कर्म और मोक्ष भी आवश्यक होता है।
कामदेव के बारे में जितनी भी जानकारी हमने आपको दी, वे विभिन्न पुराणों और महाकाव्यों से ली गई हैं, और कल्प भेद के कारण उनमें थोड़ा सा अंतर अवश्य आएगा। आशा करते हैं आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी। जय श्रीकृष्ण।