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कर्ण का रथ का पहिया निकालने का प्रयास करना ठीक था, नए रथ पर क्यों नहीं चढ़े कर्ण ? Why Didn’t Karna Move To Another Chariot ?
कर्ण का रथ से उतरना ठीक था या गलत ? महाभारत युद्ध के प्रत्येक दिन योद्धाओं के रथ नष्ट होते थे, और तब वे या तो वहाँ उपलब्ध अतिरिक्त रथों पर चढ़ जाते थे, या किसी अन्य योद्धा के रथ पर उनके साथ सम्हलित हो जाते थे, या फिर पीछे हटकर नया रथ लेकर वापस आते थे। लेकिन इन तीन उपायों में से कोई एक चुनने के बजाय, कर्ण रथ से नीचे उतरे और रथ के पहिए को उठाने का प्रयास करने लगे। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि इतने वीर और अद्वितीय योद्धा कर्ण ने उस निर्णायक क्षण में नया रथ क्यों नहीं लिया?
क्या यह सिर्फ एक दुर्घटना थी, या इसके पीछे कुछ ऐसा गूढ़ रहस्य छिपा था जो कर्ण के भाग्य, धर्म, और युद्धनीति से गहराई से जुड़ा था? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए यह लेख अंत तक अवश्य पढ़ें
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क्या कर्ण का रथ से उतरकर पहिया निकालना ठीक निर्णय था ?
कर्ण का रथ से उतरना सही था या गलत, इस निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले पूरे परिदृश्य का सही ढंग से विश्लेषण करना आवश्यक है। कर्ण को दो प्रमुख श्राप प्राप्त हुए थे।
कर्ण को प्राप्त हुए श्राप
पहला श्राप उन्हें तब मिला, जब उन्होंने अभ्यास करते हुए एक वेदपाठी ब्राह्मण की होमधेनु गाय को मार डाला। तब क्रोधित होकर ब्राह्मण ने उन्हें श्राप दिया कि “तू जिसके साथ सदा ईर्ष्या रखता है और जिसे परास्त करने के लिए निरंतर चेष्टा करता है, उसके साथ युद्ध करते हुए तेरे रथ के पहिए को धरती निगल जाएगी। नराधम! जब पृथ्वी में तेरा पहिया फँस जाएगा और तू अचेत-सा हो रहा होगा, उस समय तेरा शत्रु पराक्रम करके तेरे मस्तक को काट गिराएगा।”
और दूसरा श्राप उन्हें झूठ बोलकर शिक्षा ग्रहण करने पर परशुराम जी ने दिया था। वे कर्ण से बोले, “तूने ब्रह्मास्त्र के लोभ से झूठ बोलकर यहाँ मेरे साथ मिथ्याचार किया है, इसलिये जब तक तू संग्राम में अपने समान योद्धा के साथ नहीं भिड़ेगा और तेरी मृत्यु का समय निकट नहीं आ जाएगा, तभी तक तुझे इस ब्रह्मास्त्र का स्मरण बना रहेगा। जो ब्राह्मण नहीं है, उसके हृदय में ब्रह्मास्त्र कभी स्थिर नहीं रह सकता।”
चलिये जानते हैं कर्ण का रथ धँसने से पहले क्या-क्या हुआ था
महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 88 के अनुसार, कर्ण और अर्जुन के अंतिम युद्ध में जब अर्जुन कर्ण पर हावी होने लगे, तब दुर्योधन, कृतवर्मा, शकुनि, कृपाचार्य – यह सभी महारथी कर्ण का साथ देने आए। तदनंतर कर्ण और वे चार महारथी श्रीकृष्ण और अर्जुन को घायल करने लगे। यह देख अर्जुन ने उनके धनुष, तरकश, ध्वज, घोड़े, रथ और सारथि-इन सबको अपने बाणों द्वारा एक साथ ही प्रमथित करके चारों ओर खड़े हुए शत्रुओं को शीघ्र ही बींध डाला और कर्ण पर भी बारह बाणों का प्रहार किया।
तदनंतर वहाँ सैकड़ों रथी और सैकड़ों हाथी-सवार आततायी बनकर अर्जुन को मार डालने की इच्छा से दौड़ आए। उनके साथ शक, तुषार, यवन आदि काम्बोज देशों के अच्छे घुड़सवार भी थे। परंतु अर्जुन ने अपने हाथ के बाणों और क्षुरों द्वारा उन सबके उत्तम-उत्तम अस्त्रों को काट डाला। शत्रुओं के मस्तक कट-कटकर गिरने लगे। अर्जुन ने विपक्षियों के घोड़ों, हाथियों और रथों तथा युद्ध में तत्पर हुए उन शत्रुओं को भी पृथ्वी पर काट गिराया।
कर्ण पर्व अध्याय 89 के अनुसार, जब कर्ण अपने बाणों से पांडव सेना का संहार करने लगे और श्रीकृष्ण और अर्जुन को भी घायल कर दिया, तो श्रीकृष्ण द्वारा प्रोत्साहित होने पर अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र प्रकट किया, परंतु उसे कर्ण ने बाणों की बौछार कर नष्ट कर दिया। तब अर्जुन ने एक और दिव्यास्त्र चलाया, जिससे शूल, फरसे, चक्र और सैकड़ों नाराच आदि घोरतर अस्त्र-शस्त्र प्रकट होने लगे, जिनसे सब ओर के योद्धाओं का विनाश होने लगा।
अर्जुन के उस दिव्यास्त्र ने शत्रुपक्ष के सभी मुख्य-मुख्य योद्धाओं का संहार कर डाला और दुर्योधन की सारी सेना का विध्वंस कर दिया। तत्पश्चात् उन्होंने दस बाण छोड़कर सभापति नामक राजकुमार को मार डाला। इसके बाद अर्जुन ने पुनः अपने बाणों द्वारा कर्ण को बारंबार घायल करके अस्त्र-शस्त्रधारी सवारों सहित चार सौ हाथियों को मारकर आठ सौ रथों को नष्ट कर दिया। तदनंतर सवारों सहित हजारों घोड़ों और सहस्त्रों पैदल वीरों को मारकर रथ, सारथि और ध्वज सहित कर्ण को भी शीघ्रगामी बाणों द्वारा ढ़क्कर अदृश्य कर दिया।
अर्जुन के बाणों से घायल होकर कौरव सैनिक चारों ओर से कर्ण को पुकारने लगे – “कर्ण! शीघ्र बाण छोड़ो और अर्जुन को घायल कर डालो। कहीं ऐसा न हो कि ये पहले ही समस्त कौरवों का वध कर डालें।” तदनंतर अर्जुन और कर्ण का पुनः युद्ध आरंभ हो गया। क्रोध में भरे हुए अर्जुन ने बाणसमूहों का जाल फैलाकर कर्ण के रथ को ढक दिया। फिर अर्जुन ने कर्ण के चक्ररक्षक, पादरक्षक, अग्रगामी और पृष्ठरक्षक सभी कौरव दल के सारभूत प्रमुख वीरों को, जिनकी संख्या दो हजार थी, एक ही क्षण में रथ, घोड़ों और सारथियों सहित काल के गाल में भेज दिया।
तदनंतर जो मरने से बच गए थे, वे कर्ण को छोड़कर वहाँ से भाग गए। तब दुर्योधन ने उनमें से श्रेष्ठ वीरों को पुनः कर्ण के रथ के पीछे जाने के लिए आज्ञा दी। दुर्योधन के दस प्रकार कहने पर भी वे योद्धा वहाँ खड़े न हो सके। अर्जुन के बाणों से उन्हें बड़ी पीड़ा हो रही थी; भय से उनकी कांति फीकी पड़ गई थी, इसलिए वे क्षणभर में दिशाओं और उनके कोनों में जाकर छिप गए।
क्या कर्ण का रथ से उतरकर पहिया निकालना उनके भय को दर्शाता है?
पहले बताई गयी घटनाओं से यह ज्ञात होता है कि कर्ण के साथ युद्ध में, प्रारंभ में सभी कौरव योद्धा अर्जुन पर लगातार आक्रमण कर रहे थे, लेकिन अर्जुन ने अपनी धनुर्विद्या कौशल के कारण उन सभी को पराजित कर दिया। अर्जुन कर्ण पर पूरी तरह से हावी हो चुके थे। इसके बाद अर्जुन ने कर्ण के आगे और पीछे रक्षा कर रहे योद्धाओं, रथ के पहियों की सुरक्षा करने वालों को मार गिराया। उन्होंने दुर्योधन सेना के 2000 प्रमुख योद्धाओं का संहार कर दिया।
अर्जुन ने उनके रथ, घोड़े और सारथियों समेत सभी को नष्ट कर दिया। जो बाकी बचे थे, वे कर्ण को छोड़कर युद्धभूमि से भाग खड़े हुए। दुर्योधन और अश्वत्थामा, कृपाचार्य जैसे अन्य कुरु योद्धा भी भाग निकले। इस प्रकार सभी दिशाएँ कौरव सेना से खाली हो गईं।
कर्ण वहाँ अकेले बच गए थे। उनके आस-पास जितने भी सैनिक थे, उन्हें या तो अर्जुन ने मार दिया या वे पीछे हटने पर विवश हो गए। कुछ सैनिक अर्जुन और कर्ण के बीच हो रहे भीषण युद्ध की तीव्रता को देखकर भयभीत हो गए थे। वे सभी बहुत दूर से युद्ध देख रहे थे; किसी में अब इतना साहस नहीं बचा था कि वे कर्ण की सहायता कर पाते। इसी कारण से कर्ण का रथ से उतरकर किसी अन्य रथ पर जाने का कोई अवसर नहीं था।
अंततः कर्ण का रथ से उतरना
जब अर्जुन ने कर्ण का वध करने हेतु रौद्रास्त्र का आह्वान किया था, ठीक उसी समय ही कर्ण का रथ धरती में धँस गया। उस समय अर्जुन ने रौद्रास्त्र का प्रयोग नहीं किया। कर्ण रथ से उतरकर रथ का पहिया उठाने का प्रयास करने लगे और अर्जुन से विनती की कि वह तब तक प्रतीक्षा करें जब तक वह रथ का पहिया उठा न लें।
प्रश्न यह उठता है के कर्ण ने रथ का पहिया उठाने का प्रयास क्यों किया? इस बहुत से कारण थे जो इस प्रकार हैं
कर्ण को यह एहसास हो गया था कि वह किसी भी तरह से अर्जुन को पराजित नहीं कर सकते । उनके सर्पमुख बाण, ब्रह्मास्त्र और अन्य अस्त्र भी अर्जुन को मारने में असफल रहे थे। इस स्थिति में कर्ण के पास कोई और उपाय नहीं बचा था, और उसने यह अंतिम प्रयास किया।
कर्ण अर्जुन के बाणों से बुरी तरह घायल हो चुके थे । अर्जुन ने अपने बाणों से कर्ण के महत्वपूर्ण अंगों पर प्रहार किया, जिससे उन्हे तीव्र पीड़ा होने लगी थी।
उनके पास अब सेना का कोई समर्थन नहीं था, क्योंकि अर्जुन ने उन सभी को नष्ट कर दिया था। दुर्योधन और अश्वत्थामा, अर्जुन के भयानक बाणों के भय से युद्ध स्थल से दूर हो गए थे। केवल शल्य ही वहां कर्ण के साथ वहाँ शेष बचे थे और वे भी कर्ण का रथ संभालने तथा अर्जुन के द्वारा घायल हुए रथ के घोड़ों को नियतरित करने में व्यस्त रहे
कर्ण के पास अब युद्ध जारी रखने की ऊर्जा नहीं बची थी, और इसीलिए उन्होने रथ के पहिए के बहाने समय को टालने का प्रयास किया, कर्ण का रथ से उतरना उनका अपने प्राण बचाने का अंतिम प्रयास था, और इस लेख के मुख्य विषय की बात करें के कर्ण दूसरे रथ पर क्यों नहीं चड़े तो इसका उत्तर साफ है, वहाँ कोई दूसरा रथ बचा ही नहीं था, न कोई घोडा और न ही कोई हाथी और न कोई योद्धा, सबका अर्जुन ने सफाया कर दिया था और जो बच गए वो वहाँ से भाग गए, कर्ण का रथ फसना तो नियति थी, परंतु अर्जुन का पराक्रम भी उस दिन कम न था, जय श्री कृष्ण