महाभारत के सबसे चतुर रणनीतिकार कौन? | Top 10 Clever Strategists of Mahabharata


महाभारत के सबसे चतुर रणनीतिकार कौन थे? जानिए उन शीर्ष चतुर व्यक्तियों के बारे में जिन्होंने अपनी बुद्धि और रणनीतियों से महाभारत को प्रभावित किया

महाभारत का युद्ध, इतिहास का एक ऐसा महासंग्राम था जो न केवल योद्धाओं के बाहुबल बल्कि महाभारत के सबसे चतुर रणनीतिकारों की बुद्धि और कूटनीति का भी प्रमाण था। इस महायुद्ध में ऐसे अनेक महारथी हुए जिनकी रणनीतियों और चतुर चालों ने युद्ध की दिशा बदल दी। तो, महाभारत के सबसे चतुर रणनीतिकार कौन थे? आइये विस्तार से जानते हैं इस लेख में

महाभारत के सबसे चतुर रणनीतिकार

10. महारानी कुंती: एक दूरदर्शी रणनीतिकार

महारानी कुंती, अपनी दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता के लिए जानी जाती थीं। लाक्षागृह की घटना के बाद, वह माता कुंती ही थीं जो पांडवों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों का निर्णय लेती थीं। चाहे वह भीम को बकासुर से युद्ध करने के लिए भेजना हो या उनके सीमित भोजन का नियंत्रित वितरण करना हो, यह सब उनकी कुशल प्रबंधन क्षमता को दर्शाता है। वह अच्छी तरह भाँप गई थीं कि उनके पुत्रों की एकता के लिए द्रौपदी का पांचों से विवाह होना आवश्यक है, जो उनकी बुद्धिमत्ता का एक और प्रमाण है।

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सामाजिक कारणों से उन्होंने कर्ण के उनके पुत्र होने का रहस्य छुपाए रखा, पर युद्ध से पहले उसका खुलासा कर्ण के सामने तब किया जब उन्हें लगा कि अब इसकी आवश्यकता सबसे अधिक है। कुंती के मांगे बिना ही कर्ण ने अपने चार भाइयों को न मारने का वचन कुंती को दे दिया, जो उनकी भावनात्मक कूटनीति का उदाहरण है। उनकी रणनीतिक सूझबूझ ने पांडवों को कई बार संकट से उबारा।


9. महारानी द्रौपदी: महाभारत की चतुर रणनीति में भूमिका

द्रौपदी, पांडवों की पत्नी होने के साथ-साथ अत्यंत बुद्धिमान और चतुर थीं। बड़ी से बड़ी विपदा आने पर भी उन्होंने पांडवों की एकता को कभी भंग नहीं होने दिया। वह पांडवों के साम्राज्य की सम्पूर्ण वित्त संपत्ति का भी बड़ी चतुराई से रख-रखाव करती थीं, और यह कोई आसान कार्य नहीं था, क्योंकि अर्जुन और अन्य पांडव उस समय लगातार कई राज्यों पर विजय पा रहे थे और उनकी संपत्ति दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही थी। द्रौपदी ने यह कार्य बड़ी ही सरलता से कर लिया। अपनी चतुरता तथा बुद्धिमत्ता का प्रमाण उन्होंने द्यूतसभा में भी दिखाया था, जब वहाँ बैठे वयोवृद्ध कुरुवंशियों की खामोशी पर उन्होंने तीखे प्रश्न उठाए थे।

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द्रौपदी ने पहले ही इस बात का अंदाज़ा लगा लिया था कि उन्हें धृतराष्ट्र से कितने वरदान मिलेंगे, और बड़ी ही चतुराई से उन वरदानों को भागों में बाँट दिया। सर्वप्रथम उन्होंने युधिष्ठिर को मुक्त करवाया, फिर अगले वरदान का उपयोग करते हुए बाकी पांडवों सहित उनके अस्त्र-शस्त्रों को भी मुक्त करवा लिया ताकि समय आने पर वे सब वापस हासिल कर सकें। द्रौपदी की बुद्धिमत्ता और इच्छाशक्ति ने उन्हें विपत्ति और समृद्धि दोनों ही समय दृढ़ रहने में सक्षम बनाया था। वे वास्तव में एक चतुर रणनीतिकार थीं।


8. सत्यवती: हस्तिनापुर की दूरदर्शी रणनीतिकार

सत्यवती, महत्वाकांक्षी होने के साथ-साथ अत्यंत बुद्धिमान और दूरदर्शी भी थीं, तभी तो उन्हें अपनी शर्तों के अनुसार ही हस्तिनापुर की महारानी बनने का अवसर मिला। उन्होंने राजा शांतनु से यह वचन लिया था कि भीष्म की जगह उनके पुत्र को राज्याभिषेक करेंगे और सत्ता उन्हीं को सौंपेंगे, हालांकि भीष्म इसके हकदार थे। और इसी वजह से ही भीष्म ने भी आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा ले ली थी, जो एक अभूतपूर्व त्याग था।

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हस्तिनापुर के राजवंश की दिशा तय करने में उनकी भूमिका अद्वितीय थी। उन्होंने अपने पुत्रों (चित्रांगद, विचित्रवीर्य और व्यास के माध्यम से धृतराष्ट्र, पांडु) के माध्यम से कुरु वंश को आगे बढ़ाया, जो उनकी रणनीतिक सोच का परिणाम था। उनकी दूरदर्शिता और दृढ़ता ने हस्तिनापुर के भविष्य को आकार दिया।


7. गुरु द्रोणाचार्य: युद्ध कला के माहिर रणनीतिकार

गुरु द्रोण, कौरवों और पांडवों के गुरु होने के साथ-साथ युद्ध कला के माहिर रणनीतिकार भी थे। वे अपने जीवन में मिले हर अवसर को अपनी चतुराई से अपने लाभ में बदल लेते थे। अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का वध करने के लिए चक्रव्यूह की रचना की। एकलव्य से उसका अंगूठा मांगना भी उनकी दूरदर्शिता को दर्शाता है।

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उन्होंने अपनी बुद्धि के बल पर ही परशुराम जी को अपने अस्त्र-शस्त्र और उन्हें चलाने का समस्त ज्ञान देने पर विवश कर दिया था। गुरु द्रोण की प्रज्ञता का प्रमाण तब भी मिलता है जब भगवान विष्णु ने उन्हें अपना नारायण अस्त्र देने के योग्य माना और उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर ही भगवान शिव से आशीर्वाद स्वरूप अश्वत्थामा को पुत्र रूप में प्राप्त किया। वे निःसंदेह महाभारत के सबसे चतुर रणनीतिकारों में से एक थे।


6. शकुनि: कूटनीति का सबसे चतुर खिलाड़ी

गांधार नरेश शकुनि एक महान रणनीतिकार थे, लेकिन उनकी रणनीति छल और कपट पर आधारित थी। दुर्योधन द्वारा पांडवों के विरुद्ध रचे गए हर षड्यंत्र के लिए मुख्यतः वही जिम्मेदार थे।

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उन्हीं की कूटनीति के कारण ही अन्य राज्यों के साथ दुर्योधन के अच्छे संबंध बने थे, और उन्होंने विशाल सेना एकत्रित करने में दुर्योधन की मदद की थी। लगभग 11 अक्षौहिणी सेना का कौरव पक्ष के साथ आना शकुनि के चतुर दिमाग का ही नतीजा था। वे एक महान योद्धा भी थे और उन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध में बड़ी बहादुरी से लड़ाई लड़ी, लेकिन उनकी मुख्य शक्ति उनकी धूर्त और कपटपूर्ण योजनाएँ थीं।


5. विदुर: धर्म और न्याय के सबसे बुद्धिमान रणनीतिकार

हस्तिनापुर के महामंत्री विदुर एक सिद्धांतवादी व्यक्ति थे जिन्होंने धर्म और न्याय के मार्ग को कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने धृतराष्ट्र के मंत्री के रूप में अपना कर्तव्य अत्यंत निष्ठापूर्वक निभाया। हर अवसर पर उन्होंने राज्य की समृद्धि और बेहतरी के लिए अपने राजा को उचित सलाह दी। विदुर अपनी बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता के लिए प्रसिद्ध थे; वे दुर्योधन की बुरी योजनाओं को पहले ही भाँप गए थे और पांडवों को समय रहते चेता भी दिया था।

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उनके पास ज्ञान की कोई कमी नहीं थी, और इसका प्रमाण उनकी कालजयी रचना ‘विदुर नीति’ में मिलता है। वे अपने प्रिय एवं निकटतम लोगों को भी बड़ी निडरता से आईना दिखा देते थे, लेकिन दुर्भाग्यवश, उनके बहुमूल्य सुझावों को न तो दुर्योधन ने माना और न ही युधिष्ठिर ने, जिसका नतीजा हमने द्यूतक्रीड़ा और उसके बाद के विनाश में देखा। विदुर वास्तव में महाभारत के चतुर रणनीतिकार थे।


4. भीष्म पितामह: अनुभवी युद्ध रणनीतिकार

गंगापुत्र भीष्म ने सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान महर्षि वशिष्ठ से अर्जित किया था, बृहस्पति जी ने उन्हें राजनीति की शिक्षा दी थी, और परशुराम जी ने उन्हें युद्ध कला में निपुण बनाया था।

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भीष्म पितामह एक महान युद्ध विशेषज्ञ थे और काफी चतुराई से युद्ध की योजनाएँ बनाते थे। उन्होंने विदुर को राजनीति तथा रणनीति कैसे बनाते हैं, इसका ज्ञान दिया था। कुरुक्षेत्र युद्ध आते-आते वे काफी वृद्ध हो चुके थे, लेकिन उनके जैसा अनुभव शायद ही उस समय किसी के पास था। उनकी युद्धकला और व्यूह रचनाएं अतुलनीय थीं।


3. अर्जुन: महाभारत के बुद्धिमान धनुर्धर और रणनीतिकार

गांडीवधारी अर्जुन, भगवान कृष्ण के प्रिय शिष्य और महाभारत के सबसे महान धनुर्धर थे। उनमें अपने जीवन के लक्ष्यों एवं योजनाओं को सफल बनाने के लिए धैर्य और सहिष्णुता की कोई कमी न थी, और इसी योग्यता का उपयोग कर वे अंत में सफल भी हुए थे। वे एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने ऐसे अवसरों का भी खूब लाभ उठाया जिनमें दूसरों को असफलता दिखती थी। चाहे भगवान शिव से युद्ध कर उन्हें प्रसन्न करना हो और उनसे पाशुपतास्त्र का ज्ञान अर्जित करना हो या फिर चक्रव्यूह जैसे जटिल व्यूह को भेदने एवं बाहर आने का संपूर्ण ज्ञान अर्जित करना हो—अर्जुन ने हर चुनौती को अपनी बुद्धिमत्ता से पार किया।

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उन्होंने पाँच वर्षों तक स्वर्ग में रहकर इंद्र, कुबेर, यम, और चित्रसेन से शिक्षा ग्रहण की थी और उस ज्ञान को समेटे रखना कोई सरल कार्य नहीं था। गुरु द्रोण की दी गई हर परीक्षा में वे उत्तीर्ण रहे।

उन्होंने जयद्रथ के सिर को बड़ी ही परिकलित प्रणाली से उसके पिता की गोद में गिराया था। अर्जुन इतने बुद्धिमान थे तभी तो श्री कृष्ण ने भी अपने पुत्रों एवं पौत्रों को शिक्षा लेने के लिए अर्जुन के पास ही भेजा था, और यहाँ तक कि श्री कृष्ण जब उन्हें गीता का ज्ञान दे रहे थे तब अर्जुन ने बड़े ही जटिल प्रश्न पूछे थे जो उनके ज्ञान और उनकी जिज्ञासा को दर्शाता है। इन्हे अक्सर एक धनुर्धर के रूप में ही दिखाया गया परंतु वे महाभारत के सबसे चतुर रणनीतिकार में आते थे


2. युधिष्ठिर: धर्मात्मा और चतुर रणनीतिकार

धर्मात्मा युधिष्ठिर एक धर्मात्मा और स्थिर मन के व्यक्ति थे, जो किसी भी परिस्थिति में धार्मिकता पर अडिग रहते थे। उनकी बुद्धिमत्ता और ज्ञान का प्रमाण तब मिलता है जब उन्होंने यक्ष द्वारा पूछे गए सभी जटिल प्रश्नों का उत्तर बड़ी ही होशियारी से दिया था। वे इतने बुद्धिमान थे कि सुरोचन की सभी योजनाओं को भंग कर लाक्षागृह से जीवित बच निकलने में सफल हुए थे।

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निःसंदेह ही युधिष्ठिर बुद्धिमान होने के साथ-साथ ज्ञानी भी थे, और इसी कारण ही वे अपने चार अतिशक्तिशाली भाइयों का मार्गदर्शन एवं उन पर नियंत्रण भी रख पाते थे। उनकी यही चतुराई कई बार उनके भाइयों के काम भी आई थी, मुख्यता जब उन्हें मुश्किल परिस्थितियों से निकलना था। उन्हें महाभारत के चतुर रणनीतिकारों में गिना जाता है।


1. भगवान श्री कृष्ण: परम कूटनीतिज्ञ और सबसे चतुर रणनीतिकार

निःसंदेह, महाभारत के सबसे बड़े रणनीतिकार और मास्टरमाइंड भगवान श्री कृष्ण ही थे। उन्होंने स्वयं युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली, लेकिन अपनी असाधारण कूटनीति से पांडवों को हर असंभव मुश्किल से बाहर निकाला। हर विकट परिस्थिति में उनका मार्गदर्शन और अप्रत्याशित चालें ही पांडवों की जीत का मुख्य आधार बनीं।

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कर्ण के रथ का पहिया फंसने पर अर्जुन को प्रहार करने का आदेश देना, भीष्म पितामह की मृत्यु का रहस्य उजागर करवाना, और दुर्योधन को भीम के गदा प्रहार के लिए उकसाना, कर्ण की वासवी शक्ति को घटोत्कच पर व्यय करवाना —ये सब उनकी परम रणनीतिक क्षमता के जीवंत उदाहरण हैं। वे धर्म और न्याय के सर्वोच्च पक्षधर थे, और उनकी हर रणनीति इसी ध्येय पर आधारित थी। वे वास्तव में महाभारत के सबसे चतुर रणनीतिकार थे।

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आशा करते हैं के आपको महाभारत के सबसे चतुर रणनीतिकार पर हमारा यह लेख पसंद आया होगा, जय श्री कृष्ण