महाकाली रूप | पार्वती कैसे बनी काली ?

पार्वती महाकाली

दशम महाविद्या का प्रथम स्वरूप महाकाली हैं । वह आदि शक्ति का उग्र स्वरूप भी हैं, परंतु उनके सच्चे भक्त के लिए वह माता स्वरूप ही हैं जो सदैव उनकी रक्षा करती हैं, श्रद्धा लगन से भक्ति करने वाले अपने भक्तों के जीवन से माँ, अंधकार, भय, दरिद्रता और शत्रुओं को दूर कर देती हैं, परंतु माँ काली का उद्भव कैसे हुआ था, कैसे और क्यों माता पार्वती ने धरा शक्तिशाली महाकाली का यह स्वरूप आइये जानते हैं

महाकाली बनने में शुंभ निशुंभ की भूमिका

मार्कन्डेय पुराण के अध्याय 85 के अनुसार, पूर्व काल में शुंभ निशुंभ नाम के दो राक्षसों ने इंद्रलोक तथा देवताओं का यज्ञ भाग अपने मद के बलसे हरण कर लिया, उन दोनों ने सूर्य, चंद्रमा, कुबेर, यम और वरुण पर भी अपना अधिकार जमा लिया । उन दोनों महा असुरों ने सब देवताओं को उनके अधिकारों से च्युत कर दिया और स्वर्ग से निकाल दिया, इस पर देवताओं ने अपराजिता देवी का स्मरण किया, उन्होने कहा, हे देवी, आपने हमको वर दिया है के विपत्ति में जिस समय हम आपका स्मरण करेंगे तो उसी क्षण आप हमारे कष्टों का हरण कर लेंगी, ऐसा विचार करके देवता लोग पर्वत राज हिमालय पर गए

देवताओं का हिमालय पर जाना

हिमालय पहुँचकर सब देवता भगवती की स्तुति करने लगे, जब देवता स्तुति कर रहे थे, उस समय पार्वती देवी गंगा जी के जल में स्नान करने के लिए वहाँ आई, उन भगवती ने देवताओं से पूछा, आप लोग यहाँ किसकी स्तुति करते हैं ? तब पार्वती जी के शरीर कोश से शिवा देवी प्रकट हुई और उनसे बोली, शुंभ दैत्य से तिरस्कृत और युद्ध में निशुंभ से पराजित हो यहाँ एकत्रित हुए समस्त देवता यह मेरी ही स्तुति कर रहे हैं, उसी समय शुंभ निशुंभ के भृत्य चंड मुंड वहाँ आए और उन्होने परम मनोहर रूप धारण करने वाली अंबिका देवी को देखा, वे दोनों शुंभ के पास जाकर बोले की, हे महाराज, हिमालय पर्वत पर एक अत्यंत सुंदर स्त्री है, ऐसा उत्तम रूप किसी का कहीं भी नहीं देखा गया है, मालूम होता है वो कोई देवी है, आप उसको ग्रहण करें

शुंभ का देवी के पास अपना दूत भेजना

यह वचन सुनकर शुंभ ने महा दैत्य सुग्रीव को दूत बनाकर देवी के पास भेजा, दूत तुरंत देवी के यहाँ पहुँचकर बोला, हे देवी, दैत्यराज शुंभ इस समय तीनों लोकों के परमेश्वर हैं, और उनकी आज्ञा का कोई भी उलंघन नहीं कर सकता है, वह सम्पूर्ण देवताओं को परास्त कर चुके हैं, इसीलिए उनकी आज्ञा अनुसार आप भी उनके अधीन हो जाओ क्योंकि वह आपको संसार की स्त्रियॉं में रत्न मानते हैं और आप रत्नस्वरूपा हो इसीलिए आप निशुंभ की सेवा में आ जाओ, आप अपनी बुद्धि से विचार कर उनकी पत्नी बन जाओ,

देवी पार्वती का शुंभ के लिए संदेश

दूत के यों कहने पर भगवती दुर्गा देवी मुसकुराई और उससे बोलीं, दूत, तुमने सत्य कहा, इसमें तनिक भी मिथ्या नहीं है के शुंभ तीनों लोकों के स्वामी हैं और निशुंभ भी उसी के समान पराक्रमी हैं, किन्तु इस विषय में मैंने जो प्रतिज्ञा की है उसे मैं मिथ्या कैसे करूँ, जो पहले से मैंने प्रतिज्ञा कर रखी है तुम उसे सुनो, जो मुझे संग्राम में जीत लेगा, जो मेरे अभिमान को चूर्ण कर देगा तथा संसार में जो मेरे समान बलवान होगा वही मेरा स्वामी होगा, इसीलिए शुंभ और महा दैत्य निशुंभ स्वयं ही यहाँ पधारें और मुझे जीतकर शीघ्र ही मेरा पाणिग्रहण कर लें, अब तुम जाओ, मैंने तुमसे जो कुछ कहा है वह सब दैत्याराज से आदरपुरवक कहना, फिर जो उचित जान पड़े वह करें

शुंभ का अपने सेनापति ध्रूमलोचन को भेजना

देवी का यह कथन सुनकर दूत को बड़ा अमर्ष हुआ और उसने दैत्यराज के पास जाकर सब समाचार विस्तारपूर्वक कह सुनाया, दूत के उस वचन को सुनकर दैत्यराज कुपित हो उठा और उसने अपने सेनापति ध्रूमलोचन से कहा के तुम शीघ्र अपनी सेना लेकर जाओ और उस दुष्टा को केश पकड़ कर घसीटते हुए ज़बरदस्ती यहाँ ले आओ, शुंभ के इस प्रकार आज्ञा देने पर वह ध्रूमलोचन साठ हज़ार असुरों की सेना लेकर देवी की और दौड़ा, तब अंबिका ने ”हूँ ” शब्द के उच्चारण मात्र से उसको भस्म कर दिया, देवी अंबिका और उनके सिंह ने उसकी सेना का भी संहार कर दिया,

चंड और मुंड का देवी से युद्ध

महाकाली के विषय पर हमारे द्वारा बनाया गया विडियो

शुंभ ने जब सुना की देवी ने ध्रूमलोचन को मार डाला तथा उनके सिंह ने सारी सेना का सफाया कर डाला तब उसको बड़ा क्रोध आया, तब उसने चंड और मुंड नामक दो दैत्यों को आज्ञा दी के तुम लोग बड़ी सेना ले जाओ और उस देवी को बांध कर यहाँ ले आओ, यदि उनको लाने में संदेह हो तो उसका और उसके सिंह का वध कर डालना
तदन्तर शुंभ की आज्ञा पाकर वे चंड मुंड दैत्य विशाल सेना लेकर चल दिये, गिरिराज हिमालय के शिखर पर पहुंचकर उन्होने सिंह पर बैठी हुई देवी को देखा , वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी , उन्हे देख कर दैत्य लोग तत्परता से पकड़ने का उद्योग करने लगे, किसी ने धनुष तान लिया, किसी ने तलवार संभाली और कुछ लोग देवी के पास आकार खड़े हो गए

अंबिका देवी का महाकाली रूप लेना

तब अंबिका जी ने उन शत्रुओं के प्रति क्रोध किया, उस समय क्रोध के कारण उनका मुख काला पड़ गया, ललाट में भौहें टेड़ी हो गईं और वहाँ से तुरंत विकराल मुखी महाकाली प्रकट हुई, जो तलवार पाश लिए हुए थीं, वह चीते के चर्म की साड़ी पहने नर मुंडों की माला से विभूषित थीं, जिससे वह अत्यंत भयंकर जान पड़ती थीं, उनका मुख बहुत विशाल था, आँखें भीतर को धँसी हुई और लाल थीं, वे अपनी भयंकर गर्जना से सम्पूर्ण दिशाओं को गुंजा रहीं थी,

जीभ लपलपाने के कारण वे और भी डरावनी प्रतीत होतीं थी, वह कालिका देवी बड़े वेग से उन दैत्यों की सेना पर टूट पड़ीं और सबका भक्षण करने लगीं, उन्होने दैत्यों को उनके घोड़ों और हथियों सहित ही अपने मुख में डालकर दांतों से चबा डाला, किसी को गर्दन मरोड़कर तथा किसी को पाँव के नीचे दबाकर मार डाला, असुरों द्वारा चलाये गए अस्त्रों शस्त्रों को उन्होने क्रोधित होकर मुख में डालकर दांतों से पीस डाला, उन्होने कुछ बड़े राक्षसों का मर्दन कर डाला और कुछ को खा गईं , महाकाली ने बलवान एवं दुरात्मा दैत्यों की कितनी ही सेना का संहार कर डाला और कितनों को मार भगाया

महाकाली द्वारा चंड मुंड का वध

तदन्तर देवी ने बहुत बड़ी तलवार हाथ में लेकर चंड का मस्तक काट डाला, चंड को मारा गया देख, मुंड भी देवी की और दौड़ा, तब देवी ने रोष में भरकर उसका भी वध उसी तलवार से कर डाला, चंड मुंड को मारा हुआ देख बाकी सेना वहाँ से भाग गयी,

तदन्तर काली ने चंड और मुंड का मस्तक हाथ में ले अंबिका के पास जाकर प्रचंड अटहास करते हुए कहा, देवी मैंने इन दोनों महापशुओं को तुम्हें भेंट किया है, अब इस समर रूपी यज्ञ में तुम शुंभ और निशुंभ का स्वयं ही वध करना
उन महा असुर चंड मुंड को देख कर कल्याणी अंबिका, काली के प्रति मधुर बाणी में बोली, देवी , तुम चंड और मुंड को मारकर मेरे पास पास लायी हो, इसीलिए हे देवी, तुम चामुंडा नाम से संसार में विख्यात होगी, जय महाकाली