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मंदोदरी से जुड़े 13 तथ्य | Was Mandodari the most Powerful Queen of Lanka ?
मंदोदरी, लंका की महारानी और रावण की प्रमुख पत्नी, एक ऐसी व्यक्तित्व थीं जो सुंदरता, बुद्धिमत्ता, और नैतिकता का अद्वितीय संगम थीं। मंदोदरी की जीवन यात्रा में कई ऐसे अनसुने रहस्य छिपे हैं, जो उन्हें एक रहस्यमयी और प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनाते हैं।
उनकी कहानी केवल एक रानी की नहीं है, बल्कि एक ऐसी महिला की है जिसने अपने जीवन में कई अनकहे और अनसुने रहस्यों को समेटे रखा। आइये, विस्तार से जानते हैं मंदोदरी के जीवन से जुड़े 13 ऐसे तथ्य जिनहे जान आप भी विस्मित हो जाएँगे
मंदोदरी: लंका की महारानी के अनसुने रहस्य
मंदोदरी की सुंदरता
माता सीता के बाद संपूर्ण रामायण में मंदोदरी दूसरी सबसे सुंदर महिला थीं। जब माता सीता की खोज करते हुए हनुमान जी लंका पहुंचे थे, तो उन्होंने रावण के महल का कोना-कोना छान मारा, किन्तु कहीं भी उन्हें सीता जी के दर्शन नहीं हुए। सीता जी को न देख पाने के कारण वह बहुत ही दुखी और चिंतित हो रहे थे। तदन्तर रावण के महल में हनुमान जी ने सुंदर रूप वाली मंदोदरी को पलंग पर लेटे हुए देखा।
हनुमान जी ने उस अलंकृत को देखा और तर्क किया कि सौंदर्य और यौवन की संपदा से परिपूर्ण यह देवी सीता ही हो सकती है। उन्हें कुछ क्षणों के लिए ऐसा भ्रम हुआ कि यही सीता जी हैं, लेकिन तुरंत उन्होंने समझ लिया कि यह सीता जी नहीं हो सकतीं। यह तो अत्यंत प्रसन्न दिखलाई दे रही हैं। माता सीता जी तो जहां भी होंगी भगवान श्रीरामचंद्र जी से दूर होने के कारण बहुत ही दुखी होंगी। इस वृतांत से यह ज्ञात होता है कि मंदोदरी अति सुंदर थी।
किसकी पुत्री थी मंदोदरी
मंदोदरी हेमा नामक अप्सरा की पुत्री थी। उनके पिता मायासुर थे, जो असुरों में एक प्रतिभाशाली वास्तुकार थे। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मधुरा नामक एक अप्सरा कैलाश पर्वत पर पहुंची। देवी पार्वती को वहां न पाकर वह भगवान शिव को आकर्षित करने का प्रयत्न करने लगी। तब देवी पार्वती ने क्रोध में आकर मधुरा को 12 वर्षों तक एक मेंढकी बनके कुएं में रहने का श्राप दे दिया, और कहा कि अगर इसने 12 वर्षों तक घोर तप किया तब उसे उस योनि से मुक्ति मिल जाएगी। मधुरा ने 12 वर्षों तक उस कुएं में रहकर मेंढक रूप में कठोर तप किया।
उधर असुरों के राजा मायासुर और उनकी पत्नी हेमा के दो पुत्र थे, लेकिन वे एक बेटी चाहते थे। इसलिए उन्होंने बेटी की प्राप्ति के लिए घोर तप किया। जब वे दोनों कैलाश पर्वत पर तपस्या कर रहे थे, तब इस बीच मधुरा की 12 साल की कठोर तपस्या भी समाप्त होने वाली थी। जैसे ही मधुरा की तपस्या पूर्ण हुई, वह अपने मूल स्वरूप में आ गई और सहायता के लिए चिल्लाने लगी।
मायासुर और हेमा ने मधुरा की पुकार सुनी और तुरंत उसे कुएं से बाहर निकाल लिया। उसे देख कर दोनों के मन में स्वतः ही वात्सल्य जाग उठा और दोनों ने उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया और उसकी छरहरी काया के कारण उन्होंने उसका नाम मंदोदरी रखा।
रावण की प्रमुख रानी
मंदोदरी रावण की प्रमुख रानी थी। रावण की लगभग 1000 पत्नियाँ थीं, लेकिन उनमें से किसी का भी रामायण में मंदोदरी की तरह प्रमुखता से और बार-बार उल्लेख नहीं मिलता है। रावण ने त्रिकूट पर्वत के ऊपर अपना भव्य विलास भवन बना रखा था जहाँ रावण के साथ बैठने की अनुमति केवल मंदोदरी को ही थी।
रावण ने बलपूर्वक किया था मंदोदरी का विवाह
एक समय रावण मायासुर की नगरी में पहुंचा, वहाँ मंदोदरी को देखते ही वह उस पर मोहित हो गया। रावण ने मायासुर से कहा कि वह उनकी बेटी से विवाह करना चाहता है। रावण एक शक्तिशाली शासक था, राक्षस माया ने अपनी पुत्री मंदोदरी को रावण को उसके पराक्रम से डरकर ही भेंट कर दिया था। रावण ने भी सहर्ष मंदोदरी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था।
मंदोदरी का जन्म स्थान आज भी है
ऐसा माना जाता है कि जोधपुर से सटा मंडोर शहर मंदोदरी का मूल स्थान है और उन्होंने और लंकापति रावण ने वहीं पर एक दूसरे के साथ विवाह किया था।
मंदोदरी के कितने पुत्र थे
मंदोदरी के दो प्रमुख पुत्र थे: मेघनाद और अक्षयकुमार। मेघनाद: रावण और मंदोदरी का सबसे बड़ा पुत्र था जिसका वध लक्ष्मण जी के हाथों हुआ, और वहीं उनके दूसरे पुत्र अक्षयकुमार का वध हनुमान जी द्वारा हुआ था।
पंच तत्वों में एक मंदोदरी
पांच तत्वों में रानी मंदोदरी को जल के समान माना जाता है जो ‘सतह पर अशांत और गहराई में अपनी आध्यात्मिक खोज में है।’
बुद्धिमान और विदुषी:
मंदोदरी ने वेदों, शास्त्रों और विभिन्न कलाओं में शिक्षा प्राप्त की थी। उनकी बुद्धिमत्ता और ज्ञान का स्तर इतना उच्च था कि रावण भी उनसे परामर्श लेता था।
मंदोदरी ने की थी सीता की रक्षा
दुष्ट रावण माता सीता का वध करना चाहता था, लेकिन मंदोदरी ही थी जिसने उसे इस पाप से रोका। वाल्मीकि रामायण सुंदरकाण्ड सर्ग 58 के अनुसार, एक समय रावण देवी सीता के पास जाकर बोला, “सीते, यदि तू घमंड में आकर मेरा अभिनंदन नहीं करेगी तो आज से दो महीने के बाद मैं तेरा खून पी जाऊंगा।” रावण की ये बात सुनकर देवी सीता बोली, “नीच निशाचर, तुझमें क्या पराक्रम है? जब मेरे पति मेरे निकट नहीं थे तब तू मुझे हर लाया।
तू भगवान श्रीराम की समानता नहीं कर सकता। तू तो उनके दस होने के योग्य भी नहीं है।” सीता जी की ऐसी कठोर बातें सुनकर रावण क्रोध से जल उठा और दाहिना मुक्का तानकर देवी सीता को मारने के लिए तैयार हो गया। यह देख मंदोदरी ने रावण को ऐसा करने से रोका, और साथ ही रावण से कहा, “राक्षसराज, सीता से तुम्हें क्या काम है? आज मेरे साथ रमण करो, सीता मुझसे अधिक सुंदर नहीं है।” तदनंतर वह रावण को महल में ले गई और इस प्रकार मंदोदरी ने सीता जी के प्राणों की रक्षा की।
मंदोदरी ने रावण को श्रीराम से क्षमा मांगने और संधि करने को बोला था
रामायण में कई बार इसका प्रसंग आया है कि मंदोदरी ने अंतिम समय तक रावण को समझाने का बहुत प्रयास किया कि वह सीता को लौटा दे तथा श्रीराम की शरण में चला जाए। मंदोदरी भगवान विष्णु के बल से अच्छी तरह परिचित थी और वह श्रीराम को दिव्य और धर्मपरायण मानती थीं। मंदोदरी ने लंका के विनाश से पहले रावण को श्रीराम से संधि करने का सुझाव दिया था, जिसे रावण ने अस्वीकार कर दिया। उन्होंने केवल रावण को ही नहीं, अपितु अपने पुत्र मेघनाद को भी समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन विफल रही। पुत्र और भाई का वध हो जाने पर भी रावण ने राजरानी मंदोदरी की बात न मानी और कुल का सर्वनाश करा दिया।
मंदोदरी की पंच कन्याओं में होती है गणना
मंदोदरी की गणना प्राय: स्मरणीय पंच कन्याओं में की जाती है। पंचकन्या वे पाँच कन्याएँ हैं, जिनका हिन्दू धर्मग्रंथों में विशिष्ट स्थान है। पुराणों के अनुसार ये पाँच कन्याएँ विवाहित होते हुए भी पूजा के योग्य मानी गई हैं। इन पाँचों कन्याओं के नाम इस प्रकार हैं: अहिल्या, द्रौपदी, कुंती, तारा और मंदोदरी।
रावण की मृत्यु के बाद क्या हुआ मंदोदरी का
रावण की मृत्यु के पश्चात उसके कुल से केवल विभीषण और कुल की कुछ महिलाएं ही जीवित बची थीं। युद्ध के पश्चात अन्य विधवाओं के साथ मंदोदरी भी युद्ध भूमि पर गई और वहां अपने पति, पुत्रों और अन्य संबंधियों का शव देखकर अत्यंत दुखी हुई।
रावण की मृत्यु के बाद वह विलाप करती है, जिस पर वाल्मीकि रामायण में एक पूरा अध्याय है। किन्तु इसके बाद मंदोदरी का क्या होता है, वाल्मीकि रामायण में इस पर कुछ नहीं बताया गया है। श्रीराम ने लंका के सुखद भविष्य हेतु विभीषण को राजपाट सौंप दिया था।
मंदोदरी और विभीषण के विवाह का सत्य
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में ऐसा कहीं भी वर्णित नहीं है के रावण वध के उपरांत मंदोदरी का विवाह विभीषण से हुआ था।, हाँ, अद्भुत रामायण के अनुसार विभीषण के राज्याभिषेक के बाद प्रभु श्रीराम ने बहुत ही विनम्रता से मंदोदरी के समक्ष विभीषण से विवाह करने का प्रस्ताव रखा था, उस समय मंदोदरी ने इस प्रस्ताव पर कोई उत्तर नहीं दिया।
ऐसी पति व्रता पत्नी का अन्य पुरुष के साथ विवाह करना मात्र एक कीवदनती ही प्रतीत होती है