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पंचमुखी हनुमान जी की कहानी | Panchmukhi Hanuman Real Story
आज हम उस अद्वितीय और अद्भुत अवतार के बारे में जानेंगे जिसने आकाश, पृथ्वी और पाताल में अपनी महिमा को फैलाया। पंचमुखी हनुमान जो भक्ति और शक्ति के प्रतीक हैं। हनुमान जी का स्वरूप ही इतना शक्तिशाली है, तो फिर हनुमान जी ने क्यों धरा था पंचमुखी रूप? निश्चित ही यह कोई सामान्य अवतार नहीं था। पंचमुखी हनुमान जी से जुड़े एक-एक रहस्य और उनकी सम्पूर्ण शक्ति तथा किन-किन अवसरों पर हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा था, यह सब जानने के लिए इस लेख के अंत तक बने रहें
पंचमुखी हनुमत्कवच में है पंचमुखी हनुमान का विस्तार से वरना
पंचमुखी हनुमत्कवच के अनुसार हनुमान जी का पंचमुखी स्वरूप पाँच मुखों वाला, महा भयंकर पंद्रह नेत्र तथा दस भुजा युक्त है, तथा उनके भक्तों की समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला है।
- पूर्व दिशा वाला मुख करोड़ों सूर्यों के समान उज्ज्वल कांतिमयी है। इनके दाँत भयंकर हैं, क्रोध के कारण इनकी भृकुटी चड़ी हुई है, और इनका श्री मुख वानर स्वरूपा है।
- दक्षिण दिशा वाला मुख श्री नरसिंह स्वरूपा है, जो कि भीषण भयों का भी नाश कर देता है। यह अति उग्र, शीघ्र प्रभावी, महा भयंकर और महा अद्भुत स्वरूप है।
- पश्चिम दिशा वाला मुख श्री गरुड़ स्वरूपा है, जिनकी चोंच टेड़ी है एवं वे महाबलशाली हैं। यह समस्त नागों का अंत कर देते हैं। इनकी कृपा से विषों व भूतों का समापन होता है।
- उत्तर दिशा वाला मुख वराह स्वरूपा है, जो कि आकाश के समान देदीप्यमान है। यह नीले रंग वाले हैं, जो कि पाताल, सिंह, बेताल, ज्वर और अन्य रोगों का विनाश करते हैं।
- ऊपर की तरफ वाला मुख हयग्रीव के समान है, जो कि घोर दानवों का भी अंत कर देता है। इसी स्वरूप से महाबली तारकासुर का वध किया था।
जब अत्याधिक दुर्गति हो रही होती है, तब इनकी शरण में आने से समस्त शत्रुओं का संहार होता है, दुर्गति का अंत होता है, और इनकी दया की निधि प्राप्त होती है यदि रुद्र स्वरूप पंचमुखी हनुमान जी का ऐसा ध्यान किया जाए।
पंचमुखी हनुमान जी के शस्त्र और स्वरूप
खड़ग, त्रिशूल, खटवांग, पाश, अंकुश, पर्वत, मुष्टि, कौमोदकी तथा कमंडल को यह रूप धारण करते हैं। भिंदिपाल और ज्ञान मुद्राओं को प्रदर्शित करते हुए समस्त आभरणों से विभूषित श्री हनुमान जी श्वासन पर विराजते हैं।
पंचमुखी हनुमत्कवच पढ़ने से होने वाले लाभ
पंचमुखी हनुमत्कवच को पढ़ने से मिलने वाले लाभ जो इसी कवच में वर्णित हैं:
- यह महा कवच है। इसे एक बार जपने से समस्त शत्रुओं का निवारण होता है।
- प्रतिदिन दो बार इसका पाठ करने से परिवार में पुत्र-पौत्रादि की वृद्धि होती है।
- प्रतिदिन तीन बार पाठ करने से समस्त संपत्तियाँ प्राप्त होती हैं।
- चार बार प्रतिदिन पाठ करने से समस्त रोगों का निवारण होता है।
- पाँच बार नित्य पाठ करने से समस्त लोकों का वशीकरण होता है।
- प्रतिदिन छह बार पाठ करने से समस्त देवों का आकर्षण होता है।
- सात बार नित्य पढ़ने से समस्त सौभाग्यों का उदय होता है।
- नित्य आठ बार पाठ करने से अहिलाषा पूर्ण होती है।
- नव बार नित्य पाठ करने से राज्य के सुख का उपभोग मिलता है।
- प्रतिदिन दस बार पाठ करने से त्रैलोक्य का ज्ञान प्राप्त होता है।
- तथा प्रतिदिन ग्यारह बार पाठ करने से साधक के समस्त कार्य सिद्ध होते हैं।
पंचमुखी हनुमत्कवच अत्याधिक तीव्र व शीघ्र प्रभावी कवच है, जो दुर्लभ ग्रंथ सुदर्शन संहिता से लिया गया है।
पंचमुखी हनुमान जी का स्वरूप और महत्व
श्री हनुमान का यह रूप बहुत लोकप्रिय है और इसे पंचमुखी अंजनेय के नाम से भी जाना जाता है। (अंजनेय, जिसका अर्थ है “अंजना का पुत्र”)। ये पाँच मुख दर्शाते हैं कि दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है जो पाँच चेहरों में से किसी के प्रभाव में नहीं आता। यह पाँचों मुख भक्तों के लिए सर्वांगीण सुरक्षा का प्रतीक हैं।
यह पाँच दिशाओं – उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और ऊर्ध्व दिशा/अंचल पर सतर्कता और नियंत्रण का भी प्रतीक है।
प्रार्थना के पाँच प्रकार
प्रार्थना के पाँच प्रकार बताए गए हैं:
- नमन
- स्मरण
- कीर्तनम
- याचनम
- अर्पणम
पाँच मुख इन पाँचों को भी दर्शाते हैं। भगवान श्री हनुमान सदैव भगवान श्री राम का नमन, स्मरण और कीर्तन करते हैं। उन्होंने अपने स्वामी श्री राम के प्रति पूर्ण समर्पण (अर्पणम्) किया। उन्होंने श्री राम से अखंड प्रेम का आशीर्वाद देने की भी याचना की।
पंचमुखी हनुमान का तत्वज्ञान
सनातनी मान्यताओं के अनुसार, आव्यू (वायु), जल, पृथ्वी, अग्नि और आकाश – यह पाँच तत्व मानव देह के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं
- वायु हमें प्राणवायु प्रदान करती है।
- जल हमें ऊर्जा प्रदान करता है।
- अग्नि हमें ऊष्मा देती है।
- आकाश तत्व का मानव शरीर पर लौकिक प्रभाव पड़ता है।
- पृथ्वी वे सभी संसाधनों को प्रदान करती है जो मानव शरीर के लिए आवश्यक हैं।
हनुमान जी का यह पंचमुखी स्वरूप इन सभी महत्वपूर्ण पाँच तत्वों का एकरूपक प्रतिनिधित्व करता है।
ग्रंथों में पंचमुखी हनुमान का वर्णन
पंचमुखी हनुमान जी का वर्णन कई ग्रंथों में किया गया है, जैसे के विद्यार्णव तंत्र, सुदर्शन संहिता, पराशर संहिता, कई तंत्र ग्रंथ, तथा कृत्तिवासी रामायण आदि। इन सभी ग्रंथों में पंचमुखी हनुमान जी की महिमा गाई गई है।
शंकरजी के पाँच मुख – तत्पुरुष, सद्योजात, वामदेव, अघोर और ईशान हैं; उन्हीं शंकरजी के अंशावतार हनुमान जी भी पंचमुखी हैं। हनुमान जी का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है।
हनुमान जी ने दो बार पंचमुखी हनुमान रूप धरा था:
- पहली बार जब श्रीराम और रावण के युद्ध के दौरान मेघनाद की मृत्यु हो गई। तब रावण धैर्य खो बैठा और अपनी विजय के उपाय सोचने लगा। उसने अपने सहयोगी और पाताल के राक्षसराज अहिरावण को बुलाया, जो माँ भवानी का परम भक्त और तंत्र-मंत्र का ज्ञाता था।
रात्रि के समय जब श्रीराम की सेना शयन कर रही थी, तब हनुमान जी ने अपनी पूंछ बढ़ाकर सबको घेरे में ले लिया। लेकिन अहिरावण विभीषण का वेष बनाकर अंदर प्रवेश कर गया। उसने अपने माया के दम पर भगवान राम की सेना को निद्रा में डाल दिया और राम तथा लक्ष्मण का अपहरण कर पाताललोक ले गया।
विभीषण ने यह पहचान लिया कि यह कार्य अहिरावण का है और उन्होंने हनुमान जी को श्रीराम और लक्ष्मण की सहायता के लिए पाताललोक जाने का आदेश दिया।
हनुमान जी तुरंत पाताल लोक पहुंचे। वहां उन्होंने पांच दीपक पांच दिशाओं में रखे देखे, जिन्हें अहिरावण ने माँ भवानी की पूजा के लिए जलाया था। ऐसी मान्यता थी कि जब तक यह दीपक जलते रहेंगे तब तक अहिरावण की मृत्यु नहीं हो सकती।
अहिरावण के वध के लिए हनुमान जी को एक साथ सभी पांच दीपकों को बुझाना था। तभी हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धारण कर लिया। और पाँचों दिशाओं में स्थित दीपकों को बुझाया और अहिरावण का वध कर दिया। फिर हनुमान जी श्रीराम और लक्ष्मण को कंधों पर बैठाकर लंका की ओर उड़ चले ।
दूसरी बार यह रूप उन्होने तब धरा था जब माँ सीता ने शतानंद रावण का वध करने के लिए महाकाली रूप धारण किया था। ऋषि गर्ग ने उन्हें हनुमान मंत्र का ज्ञान दिया, जिसके बाद उन्होंने यह रूप धारण किया और पंचमुखी हनुमान के कंधे पर रहकर, माँ सीता ने अपने महाकाली रूप में, शतानंद रावण की सेना संहार किया । बाद में जब उन मरते हुए राक्षसों के रक्त की प्रत्येक बूंद के साथ और अधिक राक्षस पनपने लगे, तो पंचमुखी हनुमानजी ने अपनी पूंछ से धरती को ढक दिया जिस कार्न उन राक्षसों की वृद्धि रुक गयी
पंचमुखी हनुमान जी में भगवान के पांच अवतारों की शक्ति समायी हुयी है इसलिए वे किसी भी महान कार्य को करने में समर्थ हैं । पंचमुखी हनुमानजी की पूजा-अर्चना से वराह, नृसिंह, हयग्रीव, गरुड़ और शंकरजी की उपासना का फल प्राप्त हो जाता है । जैसे गरुड़जी वैकुण्ठ में भगवान विष्णु की सेवा में लगे रहते हैं वैसे ही हनुमानजी श्रीराम की सेवा में लगे रहते हैं
जय श्री राम! जय श्री पंचमुखी हनुमान!