रावण की सम्पूर्ण कहानी और अनसुने तथ्य | How powerful was Ravan ?

रावण

रावण विश्रवा और कैकसी का सबसे ज्येष्ठ पुत्र था, आज इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे के आखिर रावण कितना शक्तिशाली था, कौन से अस्त्र शस्त्र थे उसके पास, कितने वरदान प्राप्त थे उसे , कितने युद्ध लड़े थे उसने, और इतना शक्तिशाली होने पर भी उसकी पराजय कैसे हो गयी, क्या रहस्य था इसका, यह सब जानने के लिए इस लेख के अंत तक बने रहें

रावण को कौन से वरदान प्राप्त थे

रामायण के उत्तर कांड सर्ग 10 के अनुसार रावण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए 10 हज़ार वर्षों तक तपस्या की थी, निराहार रहकर ही वह निरंतर 10 हज़ार वर्षों तक तप करता रहा, हर एक हज़ार वर्ष पूर्ण होने पर वह अपने एक सिर को काटकर उसकी आहुती दे देता था, इस प्रकार तप करते हुए उसने नौ हज़ार वर्ष बिता दिये । जब दस हज़ार वर्ष पूरे हो गए तो उसने अपना दसवां सिर भी काटकर अग्नि में डालना चाहा,

तब उसके सामने ब्रह्मा जी प्रकट हुए, और उससे वर मांगने को बोले, रावण ने अमरता का वरदान मांगा जिसपर, ब्रह्मा जी ने कहा पूरा अमरत्व तुम्हें नहीं मिल सकता, तुम कुछ और मांगो , तब दशानन ने मांगा के गरुड , सर्प, यज्ञ , दैत्य, दानव, राक्षस और देवताओं से सदा के लिए मुझे अवध्य कर दीजिये, इनके अतिरिक्त अन्य प्राणियों की मुझे चिंता नहीं , और मनुष्य आदि को मैं तिनके के समान समझता हूँ ,

ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहकर दशानन से कहा मैं तेरे ऊपर बहुत प्रसन्न हून, अतः मैं अपनी और से भी तुझे वर देता हूँ , जिन अपने सिरों को तूने काट कर अग्नि में होम दिया वे सिर फिर से बढ़ आएंगे, एक और भी दुर्लभ वर मैं तुम्हें देता हूँ , जिस समय तू जैसा रूप धारण करना चाहेगा वैसा ही तेरा रूप हो जाएगा

रावण को मिले शाप

रावण को कई श्राप मिले थे, उनमें से प्रमुख था, जब रावण ने अपनी ही बहू समान रंभा यानि के कुबेर के बेटे नलकुबेर की पत्नी का बलात्कार किया था तब नलकुबेर ने उसे श्राप दिया था की कि यदि दशानन ने भविष्य में किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध उसके साथ ज़बरदस्ती करने का साहस किया तो उसका सिर सात टुकड़ों में फट जाएगा। इनके अतिरीक्त उन्हे वेदवती, नंदिकेश्वर, नारद, वशिष्ठ, अग्नि, बृहस्पति आदि औरों से भी कई शाप मिले थे

रावण को लंका कैसे प्राप्त हुई

उत्तर कांड सर्ग 11 के अनुसार रावण ने प्रहस्त को दूत बनाकर कुबेर के पास भेजा था, और उससे कहा था के कुबेर से कहना के यह लंकापुरी महाबलवान राक्षसों की है और तुम्हारा इसमें रहना उचित नहीं, तत्पश्चात कुबेर ने अपने पिता महर्षि विश्रवा के पास गए और उन्होने कुबेर को समझाया के जबसे रावण को वर मिला है तब से वह बड़ा दुष्टबुद्धि हो गया है अताएव अब तुम लंका छोड़ कैलाश पर्वत में बसो और वहाँ अपने लिए पूरी बनाओ, कुबेर ने बिना किसी विरोध के लंका रावण को सौंप दी थी

रावण के अस्त्र शस्त्र

रावण के अस्त्रों शस्त्रों की बात करें तो वो हर प्रकार के युद्ध करने में निपुण था जिसका वर्णन हम आगे करेंगे, धनुष, खड़ग भाला तथा गदा चलाने में उसे महारथ थी, वो अपने आप में ही एक शस्त्र था, उसमें असीम शारीरिक बल था और जो कवच वह धारण करता था, उसे कोई भी अस्त्र भेद नहीं पाया था सिवाय एक अस्त्र को जिसे श्री राम ने अंत में चलाया था, उसके पास वरुणास्त्र ,आग्नेयास्त्र ,असुरास्त्र, माया अस्त्र , सौरास्त्र, गंधर्वास्त्र, नागास्त्र ब्रह्मा जी का एक दिव्य भाला, तथा वाल्मीकि रामायण की क्रिटिकल एडिशन के अनुसार उसके पास पाशुपतास्त्र भी था, इनके अतिरिक्त वह इंद्रजीत की तरह कई मायावी शक्तियों का ज्ञाता था

रावण की दिग्विजय और उसके द्वारा लड़े गए युद्ध

रावण और कुबेर का युद्ध

रावण ने सबसे पहला युद्ध अपने भाई कुबेर के विरुद्ध ही लड़ा था, लंकापति अपने साथ एक बड़ी राक्षसी सेना लेकर कुबेर पर विजय पाने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचा था, वहाँ उसके शक्तिशाली राक्षसों ने कुबेर की यक्ष सेना को पराजित कर दिया, उसके उपरांत दशानन ने कुबेर के शक्तिशाली द्वारपाल सूर्यभानु नामक यक्ष को पराजित कर दिया, फिर उसने कुबेर पर हमला कर दिया और वहाँ उसका कुबेर के साथ भीषण युद्ध हुआ, दोनों ने एक दूसरे पर कई दिव्यास्त्र चलाये परंतु कुछ समय में ही राखसराज के प्राक्र्म को देख कर कुबेर पीछे हट गए, और उसने तब कुबेर से उनका पुष्पक विमान छीन लिया था

रावण का कैलाश पर्वत पहुँचकर शिव जी को चुनौती देना

कुबेर पर विजय प्राप्त करने के उपरांत रावण भगवान शिव के निवास स्थान पर पहुंचा, अपने रास्ते में रुकावट देख कर उसने तुरंत ही अपनी भुजाएँ पर्वत के नीचे घुसेड़ दी और वह पर्वत को उठाने लगा, तब वह पर्वत काँपने लगा अथवा हिला, तब महादेव ने बिना किसी प्रयास के अपने पैर के अंगूठे से उस पर्वत को दबा दिया, पर्वत के दबते ही रावण की भुजाएँ पिच गयी और वह ज़ोर से चिल्लाया, उसके उस चीत्कार से तीनों लोक थर्रा उठे थे |

तब रावण ने सामवेद के विविध मंत्रों से भगवान शिव की स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिव जी ने उसको भुजाएँ निकाल लेने दी और उसे वर स्वरूप चंद्रहास तलवार भी दी, यह वृतांत दर्शाता है के रावण के शरीर और उसकी भुजाओं में कितना बल था, जहां स्वयं भगवान शिव विराजमान थे, चाहे थोड़ा ही सही परंतु उस पर्वत को उठा लेना कोई छोटी बात न थी

मारुत के साथ युद्ध

उत्तर कांड सर्ग 17 के अनुसार, एक समय रावण उशीरबीज नामक देश पहुंचा, जहां राजा मरुत अन्य देवताओं के साथ यज्ञ कर रहे थे, वहाँ दशानन को देख कर देवतागण पक्षियों का रूप धारण कर उड़ गए, इन्द्र मोर, धर्मराज काग, कुबेर गिरगिट और वरुण ने हंस का रूप धारण कर लिया,

यज्ञशाला में पहुँच कर रावण मरुत से बोला की या तुम मुझसे लड़ो या अपनी हार मानो, तदान्तर राजा मरुत धनुष बान लेकर युद्ध करने के लिए निकाल ही रहे थे के वहाँ आए हुए मुनियों ने कहा के आप अपने यज्ञ पर ध्यान दीजिये , इस राक्षस के साथ आपका युद्ध करना मंगलकारी नहीं है, यह यज्ञ समाप्त न हुआ तो तुम्हारे कुल का विनाश हो जाएगा, वैसे भी यह राक्षस अजय है, तब वहाँ लंकापति के मंत्री ने मरुत को हारा हुआ निश्चय कर यह घोषणा की के दशानन से राजा मरुत हार गया, जाते जाते रावण ने वहाँ कई मुनियों का वध कर दिया

रावण का श्री राम के पूर्वजों से युद्ध

एक समय दशानन ने पृथ्वी के सारे राजाओं को पराजित करने का मन बना लिया, दुष्यंत, सुरथ, गाधि, गया और पुरुरवा को पराजित करने के बाद वह अयोध्या पहुंचा जहां उस समय राजा अनरण्य का राज था,

वहाँ लंकापति और अनरण्य ने अपनी पूरी शक्ति के साथ एक दूसरे का साथ युद्ध किया, राक्षस राज के घातक बाणों से घायल हुए अनरण्य ने वहाँ मरने से पहले रावण को शाप दिया था के आगे चलकर अयोध्या में ही जन्मे मनुष्य के हाथों ही उसकी मृत्यु होगी, इसके उपरांत रावण ने पृथ्वी के सभी राजाओं को अपने अधीन कर लिया था

यमराज और रावण का युद्ध

अगला युद्ध उसका यम से हुआ था, जब यमलोक पहुँच कर दशानन ने यमराज को चुनौती दी तो यमराज के महाबली सैनिक रावण पर टूट पड़े , हजारों योद्धा एक साथ उसके ऊपर शस्त्र प्रहार कर उसे पीड़ित करने लगे

रावण ने तब उनपर पाशुपतास्त्र चला कर उन्हे भस्म कर दिया, तब यम अपनी गदा तथा पाश लेकर राक्षसराज पर टूट पड़े, लंबे समय तक उन दोनों का युद्ध चला पर कोई विजयी न हो सका, तदन्तर यमराज ने क्रोधित होकर कालदण्ड उठा लिया , जब यमराज, दशानन पर कालदण्ड चलाने वाले थे तब ब्रह्मा जी उनके समीप आकार बोले , हेय यमराज , तुम इस दंड को चलाकर इस राक्षस ना मारो , क्यूंकी मैं इसको वरदान दे चुका हूँ , अतः मेरी बात तुम्हें असत्य ना ठहरानि चाहिए , ब्रह्मा जी के यूं कहने पर यमराज ने अपना काल दंड वापिस ले लिया , तब वहाँ रावण स्वयं को ही विजय घोषित कर , और अपने नाम का ढिंडोरा पिटवाकर यमपुरी से चल दिया

पाताल लोक में रावण का वासुकि तथा अन्य नागों से युद्ध

यमराज से युद्ध कर वो रसातल में घुस गया वहाँ उसने सभी साँपों तथा दैत्यों पर विजय पायी, फिर उसका सामना वासुकि, तक्षक आदि नागों से हुआ, वो भी अधिक समय तक दशानन के सामने टिक न पाये और पराजित हो गए


फिर वो निवातकवच के साथ युद्ध करने पहुंचा, उनके साथ लड़ते लड़ते एक वर्ष बीत गया तब वहाँ ब्रह्मा जी पहुंचे और निवातकवचों को रोक कर बोले के इस राक्षस को युद्ध में सुर या असुर कोई भी नहीं जीत सकता और आपको भी कोई नहीं मार सकता, अतः मैं चाहता हूँ आपकी इस राक्षस के साथ मैत्री हो जाये ,

तब दशानन की उनके साथ मित्रता हो गयी और उनसे रावण ने सौ प्रकार की मायाएँ सीखी, इसके उपरांत वो कालकेय दैत्यों के नगर पहुंचा और उनको भी रन में मार गिराया, इसी युद्ध में रावण ने अपने बहनोई अर्थात शूर्पनखा के पति को भी तलवार से काट डाला था, और इस प्रकार कालकेय को भी पराजित कर सम्पूर्ण रसातल पर भी दशानन का आधिपत्य हो गया

वरुण देव से युद्ध

इस बाद दशानन ने अगला आक्रमण वरुण देव पर किया, वहाँ दशानन ने भयंकर युद्ध कर पहले वरुण देव के पुत्रों को पराजित किया और फिर वरुण देव पर टूट पड़ा, रावण के बाणों से पीड़ित होने पर, वरुण युद्ध छोड़कर ब्रह्मा के निवास को चले गए। रावण ने तब वरुण देव के भवन को अपने अधीन कर लिया और वरुण के क्षेत्र पर अपना शासन स्थापित किया

रावण का इंद्र तथा अन्य देवताओं से युद्ध

अंत में दशानन की नज़र इन्द्र की नगरी अमरावती पर पड़ी, उसने उस नगरी को चारों और से घेर लिया, रावण के साथ कुंभकर्ण, मेघनाद, प्रहस्त, मारीच आदि और भी कई शक्तिशाली राक्षस थे, इन्द्र के साथ भी, अदित्या, रुद्र, साध्य, मारुत आदि देव थे, वहाँ बड़ा ही भयंकर युद्ध हुआ था, उस युद्ध में लंकापति, इन्द्र के वज्र के प्रहार को भी सह गए थे, अंत में उस युद्ध में रावण विजयी हुए थे


देवताओं द्वारा चलाये विष्णु जी का चक्र भी दशानन पर विफल हो गया था, वह केवल उसके शरीर पर घाव ही दे पाया था

रावण का विवाह

राक्षस माया ने अपनी पुत्री मंदोदरी को लंकापति के पराक्रम से डरकर ही भेंट किया था। राक्षसराज ने भी सहर्ष मंदोदरी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था

माता सीता का अपहरण और रावण का श्री राम से युद्ध

जब रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया तो, तब श्री राम ने लंका की और कूच कर दिया था,

दशानन की राम जी की सेना मैं सबसे पहली भिड़ंत हनुमान जी के साथ हुई थी, उसने एक जोरदार प्रहार हनुमान जी पर किया था जिससे वह कुछ क्षन्न के लिए डगमगा गए थे , जवाब में हनुमान जी ने भी एक शक्तिशाली प्रहार रावण पे किया जिसने रावण को पूरा हिला कर रख दिया वहाँ रावण के मुह कान से खून निकल आया था,

इसके बाद दशानन ने फिर से एक प्रहार हनुमान जी की छाती पर किया , जिससे अभी हनुमान जी संभाल ही रहे थे के रावण नल से युद्ध करने लगा , वहाँ आग्नेयास्त्र चलाकर रावण ने नल को पराजित किया और बाकी वानरों भी वहाँ से भागने पर मजबूर कर दिया
युद्ध के दूसरे दिन सुग्रीव ने रावण को युद्ध के लिए चुनौती दी थी पर वह भी लंकापति के आगे अधिक समय टिक नहीं पाये थे और पराजित हो गए थे

इसके उनकी भिड़ंत लक्ष्मण जी के साथ हुई थी, लक्ष्मण जी और उसका युद्ध प्रलयंकारी था , दोदनों ने एक दूसरे पर कई दिव्यास्त्र चलाये थे और एक दूसरे के कई दिव्यास्त्रों को अपने अस्त्रों से काट दिया था , अंततः रावण ने ब्रह्मा जी का एक भाला लक्ष्मण पर चला दिये जिससे लक्ष्मण जी बेहोश हो गए थे , लक्ष्मण जी पर विजय पाने के बाद दशानन लंका लौट आया

प्रभु श्री राम के साथ उसका अंतिम युद्ध लगातार 7 दिन और रात तक चला था, उसने कई दिव्य अस्त्र श्री राम पर चलाये थे जिन्हें राम ने निष्प्रभावी कर दिया, उसी तरह श्री राम के भी कई अस्त्रों को रावण ने निष्क्रिय किया था और अपने बाणों के प्रहार से श्री राम को चोट पहुंचाई थी, दशानन रौद्रास्त्र के प्रहार को भी सह गया था,

रावण की सम्पूर्ण कहानी पर हमारा विडियो

जिस बाण से श्रीराम ने बाली को मारा था वो बाण भी लंकापति का कुछ न बिगाड़ पाया, यहाँ तक की जिस ब्रह्मास्त्र से राम जी ने खर और मारीच को मारा था वो भी उस राक्षस पर विफल हो गया था, अंत में महर्षि अगस्त्य द्वारा दिये गए ब्रह्मा जी के एक दिव्य बाण के द्वारा श्री राम ने लंकापति का वध किया था