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सांभ की कहानी | क्या कृष्ण पुत्र सांभ खलनायक था | Is Sambh the most powerful son of Krishna ?
श्री कृष्ण पुत्र सांभ कितने शक्तिशाली थे, क्या वह सच में दुष्ट थे, क्या श्री कृष्ण उन्हें एक शत्रु की नजर से देखते थे, कितने युद्ध लड़े थे उन्होंने, क्या है सांभ की रहस्यमय कहानी, उनके जीवन से जुड़े एक-एक तथ्य को जानें आगे हमारे इस लेख में
कैसे हुआ था सांभ का जन्म
सांभ के जन्म की कथा हमें देवी भागवत स्कंद 4 में मिलती है। इसके अनुसार, एक समय देवी रुक्मिणी के प्रद्युम्न आदि गुण संपन्न पुत्रों को देख कर, दीन भाव से जाम्बवती ने श्री कृष्ण से संतान हेतु याचना की। तब तपस्या करने का निश्चय करके वह पर्वत पर चले गए जहां महान तेजस्वी तथा शिव भक्त मुनि उपमन्यु विराजमान थे। वहाँ पर पुत्राभिलाषी श्रीकृष्ण ने उपमन्यु को अपना गुरु बनाकर उनसे पाशुपत दीक्षा ली।
श्री कृष्ण ने वहाँ घोर तपस्या की और भगवान शिव ध्यान में लीन होकर शिव मंत्र का जप किया। तत्पश्चात छठे महीने में भगवान रुद्र उनके भक्तिभाव से प्रसन्न हो गए और श्री कृष्ण को देवी पार्वती सहित प्रत्यक्ष दर्शन दिए, और श्री कृष्ण से वर मांगने को कहा। तब श्री कृष्ण ने भगवान शिव के ही समान एक पुत्र प्राप्ति का वर मांगा। तत्पश्चात जांबवती को पुत्र प्राप्त हुआ। क्यूंकि भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप को सांभ नाम से जाना जाता है, इसलिए जांबवती के उस पुत्र का नाम भी साम्भ रखा गया।
सांभ की शिक्षा, शाकी और बल का परिचय
भागवत पुराण के अनुसार साम्भ को कार्तिकेय जी का अवतार माना गया है। महाभारत के सभा पर्व अध्याय 4 के अनुसार प्रद्युम्न, सांभ, सात्यकि तथा अनिरुद्ध ने अर्जुन के पास रहकर धनुर्वेद की शिक्षा ली थी। अपने भाई प्रद्युम्न की तरह उन्हें भी मायावी शक्तियों का ज्ञान था। महाभारत के सभा पर्व अध्याय 14 में श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं, “हमारी सेना में अपने भाई के साथ चारूदेष्ण, चक्रदेव, सात्यकि, मैं, बलराम जी, सांभ और प्रद्युम्न – ये सात अतिरथी वीर हैं।” यहाँ श्री कृष्ण कहते हैं कि सांभ बल और प्राक्रम में उनके ही समान हैं।
सांभ द्वारा लड़े गए युद्ध और उनका पराक्रम
वन पर्व अध्याय 120 में सात्यकि युधिष्ठिर को सांभ के बारे में बताते हुए कहते हैं कि जाम्बवतीनन्दन साम्ब रणभूमि में बड़े प्रचण्ड पराक्रमशाली बन जाते हैं। उस समय इनके लिये कुछ भी असह्य नहीं है। इन्होंने बाल्यावस्था में ही सहसा शम्बरासुर की सेना को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। इन्होंने युद्ध में अश्वारोहियों की कितनी ही सेनाओं का संहार किया है था और अश्वचक्र को मार डाला था।
जब शाल्व ने अपनी विशाल सेना सहित द्वारका पर आक्रमण कर दिया था, तो उस समय सांभ ने शाल्व के मंत्री तथा सेना पति क्षेमवृद्धि के साथ युद्ध किया। सांभ ने क्षेमवृद्धि की मायामय बाणजाल को माया सी क्षीणन भिन्न कर और उसे अति घायल कर युद्ध भूमि से भगा दिया था। शाल्व के क्रूर सेनापति क्ष्मेंवृद्धि के भाग जाने पर वेगवान नामक बलवान दैत्य ने सांभ पर आक्रमण किया, उसे तो सांभ ने अपनी गदा के प्रहार से ही मार डाला। तदानंतर वे शाल्व की सेना में घुसकर उनसे युद्ध करने लगे और उन्हें शाल्व तथा उसकी सेना संहार के लिए प्रद्युम्न तथा श्री कृष्ण की सहायता की थी।
जब बाणासूर ने श्री कृष्ण के पोते अनिरुद्ध को बंधी बना लिया था, तो उस समय बलराम, श्री कृष्ण, प्रद्युम्न आदि के साथ वे भी लगभग 12 अक्षौनी सेना के साथ बाणासुर की राजधानी शोणितपुर पर धावा बोला था और वहाँ सांभ का बानासूर के पुत्र के साथ युद्ध हुआ था।
सांभ द्वारा दुर्योधन पुत्री का अपहरण और उनका सभी कौरवों से युद्ध
भागवत पुराण दशम स्कन्ध अध्याय 68 के अनुसार, जांबवतीनन्दन अकेले ही बहुत बड़े-बड़े वीरों पर विजय प्राप्त करने वाले थे। वे स्वयंवर में स्थित दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा को हर लाए। इससे कौरवों को बड़ा क्रोध हुआ, वे बोले- ‘यह बालक बहुत ढीठ है। देखो तो सही, इसने हम लोगों को नीचा दिखाकर बलपूर्वक हमारी कन्या का अपहरण कर लिया। वह तो इसे चाहती भी न थी। अतः इस ढीठ को पकड़कर बाँध लो।’
ऐसा विचार करके कर्ण, शल, भूरिश्रवा, और दुर्योधनादि वीरों ने सांभ को पकड़ लेने की तैयारी की। जब महारथी सांभ ने देखा कि धृतराष्ट्र के पुत्र मेरा पीछा कर रहे हैं, तब वे अकेले ही रणभूमि में डट गये। और तुरंत अपना धनुष उठाकर कर्ण आदि छः वीरों पर, जो अलग-अलग छः रथों पर सवार थे, छः-छः बाणों से एक साथ अलग-अलग प्रहार किया। उसके इस अद्भुत हस्तलाघव को देखकर विपक्षी वीर भी उनकी प्रशंसा करने लगे।
इसके बाद उन छहों वीरों ने एक साथ मिलकर सांभ को रथहीन कर दिया। चार वीरों ने एक-एक बाण से उनके चार घोड़ों को मारा, एक ने सारथि को और एक ने उनका का धनुष काट डाला। इस प्रकार कौरवों ने युद्ध में बड़ी कठिनाई और कष्ट से सांभ को रथहीन करके बाँध लिया। इसके बाद वे उन्हें तथा अपनी कन्या लक्ष्मणा को लेकर हस्तिनापुर लौट आए। जब इसकी सूचना बलराम जी को मिली, तो उस समय उन्होंने कुरुवंशियों और यदुवंशियों के लड़ाई-झगड़े को ठीक न समझा।
बलराम जी क्रोधित यदुवंशियों को शांत कर स्वयं रथ पर सवार होकर हस्तिनापुर गये। वहाँ बलराम जी के क्रोध को कुरुवंशी योद्धा सहन न कर पाए। एक समय तो उन्होंने हस्तिनापुर को ही अपने हल से खींच कर गंगा में डालना आरंभ कर दिया। बलराम जी का यह कार्य देख दुर्योधन आदि कुरु योद्धा भयभीत हो गए थे, और दुर्योधन ने अपनी कन्या का श्रीकृष्ण पुत्र से करवा दिया।
श्री कृष्ण की पत्नियों सांभ पर मोहित होना और श्री कृष्ण का उन्हे श्राप देना
भविष्य पुराण के ब्रह्मा पर्व अध्याय 73 के अनुसार, एक समय महर्षि दुर्वासा तीनों लोकों में विचरते हुए द्वारका पूरी में आए। आए हुए ऋषि को देख सांभ ने अपने रूप सौंदर्य के अभिमान वश ऋषि के कृषित शरीर के अंगों का अनुकरण करने लगा। उनके मुख की भांति मुख बनाकर उनके देखने की भांति देखने और चलने की भांति चलने लगा। यह देख महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए और उन्होंने सांभ से कहा, “अपने रूप सौंदर्य के अभिमानवश तुमने मुझे वीरूप देख कर मेरी नकल की, इसीलिए तुम्हें अतिशीघ्र कुष्ट रोग हो जाएगा।”
नारद मुनि सभी लोकों में विचरते ही रहते थे, वह भी श्री कृष्ण के दर्शन करने नित्य ही द्वारका पुरी में आते रहते थे। सांभ महात्मा नारद का सदैव अपमान ही करता था और अपने यौवन के मद में सर्वदा क्रीड़ा में निमग्न रहता था। ऐसे अविनयपूर्ण उसके व्यवहार को देखकर नारद जी ने सोचा कि मैं इस अविनीत को विनीत बनाऊं तभी इसका कल्याण होगा। ऐसा विचार करते हुए उन्होंने जानकार वासुदेव जी से कहा, “आपकी यह सोलह सहस्त्र स्त्रियाँ सांभ से प्रेम करती हैं, क्योंकि इस चराचर लोक में उसके समान कोई सुंदर नहीं है।”
नारद की ऐसी बात सुनकर श्री कृष्ण ने मन में सोचा कि नारद की कही बात असत्य नहीं हो सकती, परंतु श्री कृष्ण ने नारद जी से कहा, “आपने जो कुछ कहा, उस पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा।” नारद जी ने कहा, “मैं इसके लिए ऐसा प्रयत्न करूंगा, जिससे आपकी उस बात पर विश्वास होगा।” तो एक समय जब श्री कृष्ण अपनी स्त्रियों के साथ क्रीड़ा कर रहे थे, तब नारद सांभ के पास जाकर बोले, “शीघ्र चलो, महाराज कृष्ण बुला रहे हैं।” नारद जी की बातों बिना सोचे-समझे ही वह वहाँ गया और अपने पिता को प्रणाम किया।
उस समय अल्प सतवागुण वाली सभी स्त्रियों के मन में, जिन्होंने उसे कभी देखा नहीं था, सौंदर्यपूर्ण सांभ को देखकर विकार उत्पन्न हो गया। ऐसा देख श्री कृष्ण ने क्रुद्ध होकर उन्हें शाप दिया, “महानपापी! अपने सौंदर्य के अभिमान से मतवाला होकर तूने अपने पिता की भार्याओं के साथ प्रेम किया है।
इसलिये यद्यपि तू मेरा पुत्र है, फिर भी तू कुल को कलंकित करने वाला हो गया है। इसलिए मैंने तुझे शाप दिया कि हे दुरात्मन्! तेरे मन में जो विकार उत्पन्न हुआ है, उसे इस समय अपने वश में कर ले, परंतु दूसरी बार तेरे मन में विकार उत्पन्न होते ही, तू मृगी हो जाएगा।” जब ऐसा कहकर श्री कृष्ण अपनी पत्नियों सहित चले गए, तब नारद जी ने सांभ को बुलाकर कहा, “हे पुत्र! श्री कृष्ण के शाप से डरना नहीं चाहिए, मैंने अपने प्रयत्न से तुम्हें विनीत बना दिया है।”
सांभ बने थे यदुवंश के विनाश का कारण
महर्षि विश्वामित्र, कण्व के साथ देवर्षि नारद ने सांभ को एक मूसल को जन्म देने का शाप दिया था, जो आगे चलकर यदुवंश के विनाश का कारण बना |
भागवत पुराण के अनुसार यादवों के संहार का मुख्य कारण सांभ ही था। द्वारका में रहने वाले यादव आपस में ही लड़ कर मर गए थे। तदंतर श्री कृष्ण ने देखा कि यादवों का विनाश हो चुका है, तब श्री कृष्ण ने बलराम जी को अपने शरीर का त्याग कर भगवान का ध्यान करने को कहा। बलराम जी ने भी महासागर के किनारे बैठ समाधि द्वारा योग क्रिया के द्वारा अपने शरीर को त्याग दिया। उसके बाद जब श्री कृष्ण महासागर के किनारे पर शोक में व्याकुल खड़े थे, तो उसी समय एक शिकारी ने जरा नामक व्याध समझ कर अपने तीर का प्रहार किया था। तीर के प्रहार से श्री कृष्ण ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था।
सांभ के बारे में अन्य महत्वपूर्ण जानकारियाँ
महाभारत के महासभा पर्व में उल्लेख है कि एक बार सांभ और काशीराज सुबाहु की कन्या बाणावली परस्पर प्रेम करते थे, जब काशी नरेश ने इस बात का विरोध किया, तो श्रीकृष्ण को युद्ध करके उसे मार डालना पड़ा था। एक बार उन्होंने श्रीकृष्ण से आशीर्वाद प्राप्त कर अष्टावक्र ऋषि का उपहास किया, तो उन्होंने सांभ को सर्प योनि में जाने का श्राप दे दिया था। बाणासुर के साथ हुए युद्ध में सांभ ने बहुत से वीरों का वध कर उनका पतन किया था। एक बार उन्होंने कौरवों के साथ हुए युद्ध में जरासंध को पकड़ कर कारागार में डाल दिया था। श्रीकृष्ण के अनेक पुत्रों में सांभ बड़े वीर और अदम्य शक्ति सम्पन्न थे।
हमारे सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार, सांभ के पूरे जीवन में एक वीर योद्धा और अदम्य शक्ति के रूप में उल्लेख मिलता है। हालाँकि, उन्हें श्रापित जीवन और अंत में दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु का सामना करना पड़ा, जिसने उनके जीवन को एक ट्रैजिक दिशा में मोड़ दिया। सांभ की कहानी हमें यह सिखाती है कि अद्वितीय शक्ति और योग्यता के बावजूद भी जीवन में संयम और विनम्रता का महत्व कितना महत्वपूर्ण है।