शनि जयंती 2025: कौन हैं शनिदेव? शत्रु या मित्र? और क्यों उनकी दृष्टि से भयभीत है संसार?

शनि जयंती 2025

शनि जयंती 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

इस वर्ष, शनि जयंती 2025 मंगलवार, 27 मई को मनाई जाएगी। यह दिन कर्मफल दाता भगवान शनिदेव को समर्पित है। इस पवित्र अवसर पर शनिदेव की विशेष पूजा-अर्चना और व्रत करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और शनि दोषों से मुक्ति मिलती है।

शनि जयंती 2025 कब है ?

हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि 26 मई को दोपहर 12 बजकर कर 11 मिनट से आरंभ होकर अगले दिन यानि 27 मई को सुबह 8 बजकर 31 मिनट तक चलेगी, तो इस साल शनि जयंती 27 मई को होगी या मित्र? और क्यों उनकी दृष्टि से भयभीत है संसार?

शनिदेव: शक्ति, प्रभाव और उनका रहस्य

एक ऐसा देव, जिनकी दृष्टि मात्र से सम्राट मिट्टी में मिल जाए… जिनकी परीक्षा से स्वयं देवता भी कांपते हैं… आखिर कितने शक्तिशाली हैं शनि देव? उनकी शक्ति की कोई सीमा है या वे स्वयं काल से भी प्रबल हैं? और क्यों उनकी वक्र दृष्टि से समस्त संसार भयभीत रहता है? शनि देव से जुड़े ऐसे ही अन्य और भी रोचक प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें।

शनिदेव की उत्पत्ति: स्कंद पुराण के अनुसार

स्कंद पुराण के आवंत्यखंड, चतुरशिती लिंग महात्म्य के अनुसार, विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य देव से हुआ था। संज्ञा अपने पति के अत्यधिक तेज को सहन नहीं कर पाती थीं।

suryadev aur sangya

एक बार उन्होंने अपनी शक्ति से अपनी एक छवि अर्थात छाया बनाई। उन्होंने उस छाया को सम्मानपूर्वक सूर्यदेव के साथ ही रहने का निर्देश दिया। संज्ञा ने छाया से कहा कि मेरे यहाँ से चले जाने की जानकारी कभी भी सूर्य देव को न हो। उसके उपरांत, संज्ञा अपने पिता विश्वकर्मा के निवास स्थान पर चली गईं।

दूसरी पत्नी छाया को स्वयं संज्ञा समझकर, दिवास्पति (सूर्य) ने उनसे शनैश्चर नामक पुत्र को उत्पन्न किया। शनैश्चर के जन्म से ही सभी देवता, असुर और मनुष्य भयभीत हो गए। जन्म के तुरंत बाद, उन्होंने सभी प्राणियों को भयभीत कर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। देवराज इंद्र भी शनि से भयभीत हो गए थे और वे ब्रह्मा जी की शरण में गए और उनसे सूर्य-पुत्र के कार्यों का वर्णन किया। उन्होंने ब्रह्मा जी को बताया कि कैसे जन्म के तुरंत बाद ही रवि के पुत्र ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया है।

इंद्र देव के वचनों को सुनकर ब्रह्मा जी ने तुरंत ही सूर्य देव को बुलाया और उनसे बोले, “हे भानु, समस्त लोकों में शिष्टाचार बना रहना चाहिए। आपके पुत्र पर अंकुश लगाना बहुत आवश्यक है, उसने तीनों लोकों पर ज़बरदस्ती अपना अधिकार जमा लिया है।” ब्रह्मा जी के वचनों को सुनकर सूर्यदेव बोले: “मेरा पुत्र प्राकृतिक रूप से ही अशिष्ट है। इसे आप ही नियंत्रित कर सकते हैं। आप ही देखिये, खेल-खेल में इसकी दृष्टि पड़ने मात्र से ही मेरे पैर जल गए।”

शनि देव का यह कार्य सुन ब्रह्मा जी भी भयभीत हो गए और उन्होंने ध्यान लगाकर मन से ही श्री हरि को सब बताया। ब्रह्मा के वचनों को सुनकर श्री हरि भी अचंभित हुए और वे दोनों महादेव के पास गए।

भगवान शिव और शनिदेव का संवाद

भगवान शिव ने जैसे ही शनि देव के बारे में सोचा, वे तुरंत ही वहाँ उपस्थित हो गए। उस समय शनिदेव ने अपने नेत्र झुका रखे थे। शनि देव बोले, “हे शंकर, आपने मुझे क्यों याद किया, बोलिए मेरे लिए क्या आज्ञा है? मुझे क्या करना चाहिए? कृपया मेरा विधिवत मार्गदर्शन करें।”

bhagwan shiv aur shanidev

भगवान शिव बोले, “तुम तीनों लोकों को प्रताड़ित करना बंद कर दो।” शनि देव बोले, “ठीक है, आप मुझे खाने और पीने के लिए तथा विश्राम के लिए स्थान दें।” भगवान शिव ने शनि देव को एक उत्कृष्ट स्थान प्रदान किया। वे बोले, “मेष तथा अन्य राशियों में उचित क्रम से रहते हुए आप मनुष्यों को परेशान कर सकते हैं। इससे तुम निश्चित ही संतुष्ट तथा प्रसन्न रहोगे।”

कुंडली में पहले, दूसरे, चौथे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होने पर आप हमेशा विरोधी रहेंगे। तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में स्थित होने पर आप लोगों के लिए लाभदायक रहेंगे, इसलिए आपकी पूजा की जाएगी। वहीं पंचम, सप्तम या नवम भाव में स्थित होने पर आप तटस्थ रहेंगे। इस प्रकार जब पुरुष अपने कर्मों को भोग रहे होंगे, आप अलग-अलग राशियों में स्थित रहेंगे। (यहां हम एक बात स्पष्ट कर दें, हमें राशियों की जानकारी नहीं है, हम केवल जैसा स्कंद पुराण में कहा गया है वही यथार्थ बता रहे हैं।)

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शनिदेव की कहानी पर हमारा विडियो अवश्य देखें

आशा करते हैं आपको शनि जयंती 2025 के दिवस हमारी शनि देव पर आधारित विस्तृत कथा अच्छी लगी होगी