शरभ अवतार की कहानी | Is Sharabh most powerful avatar of Shiva ?

शरभ

जगत का संहार करने वाले महादेव जी ने भयानक और विकृत शरभ अवतार क्यों धरा, भगवान शिव का यह रूप धारण करने उद्देश्य क्या था , क्या उनका यह अवतार उनके सभी अवतारों से अधिक शक्तिशाली था, उनके हाथों से किनका वध हुआ था, शरभ अवतार से जुड़े एक एक तथ्य को जानने के लिए इस लेख को पूरा अवश्य पढ़ें

शरभ अवतार की उत्पत्ति कैसे हुई

अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु जी नृसिंह का रूप धारण कर स्वयं प्रकट हो गए थे , वहाँ उन्होने बांधवों सहित हिरण्यकश्यप का वध कर डाला , उस दैत्यों के स्वामी का वध कर के युग के अनतकाल की प्रलयकालीन अग्नि के समान अन्य कई प्रमुख दैत्यों को पीड़ित किया, नृसिंह की भयंकर दहाड़ और घोर गर्जन से सारा जगत भयभीत हो गया , नृसिंह को देख कर देव , असुर नाग , सिद्ध, साध्य अपने जीवन की रक्षा के लिए विभिन्न दिशाओं में भागे ,

अंततः वह सभी अपनी रक्षा के लिए भगवान शिव की शरण में गए , उन्होने ने भगवान की स्तुति की और फिर शिव जी से बोले के हम नृसिंह रूप धारी विष्णु जी के अमित तेज से संतप्त हैं , अतः , हेय देव आप सब लोगों के हित के लिए इसको रोकने की इच्छा करें ,

उनके द्वारा ऐसा कहे जाने पर शिव जी ने मुसकुराते हुए उन देवताओं को अभयदान दिया और कहा के मैं उनका संहार करूँगा। इसके बाद शिव जी को प्रणाम करके इन्द्र सभी देवताओं के साथ जैसे आये थे, वैसे ही चले गये और भगवान्‌ ब्रह्मा तथा अन्य श्रेष्ठ देवता भी चले गये

भगवान शिव ने किया वीरभद्र का आह्वान

इस प्रकार देवताओं के प्रार्थना करने पर भगवान शिव ने नृसिंह के तेजको नष्ट करनेका निश्चय किया और इसके लिये रुद्रने अपने भैरवरूप महाबली वीरभद्रका स्मरण किया ॥
तब [वीरभद्र] शीघ्र ही वहाँ आये। वे करोड़ों श्रेष्ठ गणोंसे घिरे हुए थे, वीरभद्र जी ने स्वयं निवेदन किया हे जगत्स्वामिन्‌! यहा पर मुझको स्मरण करनेका क्या कारण है? आज्ञा प्रदान कीजिये


श्रीभगवान्‌ बोले–हे भैरव वह नृसिंहरूपी अग्नि प्रज्वलित हो रही है; इस अति भयंकर अग्निको शान्त करो। उसे सान्त्वना देते हुए पहले समझाओ, यदि उससे वह शान्त नहीं होती है, तब मेरे महाभयंकर भैरवरूप को दिखाओ।

वीरभद्र का नृसिंह के पास जाकर उनको समझाना

इस प्रकार आज्ञा प्राप्त किये हुए गणेश्वर वीरभद्र शान्त स्वरूप धारण करके वेगपूर्वक वहाँ पहुँच गये, जहाँ नृसिंह विराजमान थे। तदनन्तर भगवान्‌ वीरभद्र जी ने पहले तो नृसिंहरूपधारी उन विष्णु जी स्तुति गायी फिर उनको समझाते हुए उनसे बोले |

हे केशव! जिसके लिये आपने यह अवतार लिया है, वह [हिरण्यकशिपु भी] आपके द्वारा मारा जा चुका है। आप का नृसिंह रूप बहुत भयानक है , हे विश्वात्मा , मेरी उपस्थिती में आप अपने इस रूप को बदल लें , वीरभद्र जी के शब्दों को सुन कर नृसिंह जी ने पहले से अधिक बेहद भयानक क्रोध में अपने को प्रकट किया


श्रीनृसिंह बोले–[हे वीरभद्र!] तुम जहा आये हो, वहाँ चले जाओ; हितकी बात मत बोलो।मै इस समय इस चराचर जगतूका संहार कर प्रवर्तक तथा निवर्तक हूँ॥
शक्तिसम्पन्न ब्रह्मा, इद्र | आदि देवता मेरे ही अंश हैं। पूर्वकालमें चतुर्मुख ब्रह्म | मेरे नाभिकमलसे उत्पन्न हुए थे और उनके ललाट्से भगवान्‌ वृषभध्वज (शिव) उत्पन्न हुए थे॥ २९-३१॥ |

अत: मेरी शरण प्राप्त करके तुम संतापरहित होकर [यहाँ से] जाओ; भूतोंके महेश्वर तुम मेरे इस परम भावको समझो ॥ मैं काल हूँ, मैं काल के भी विनाश का कारण हँ. मैं लोकों का संहार करने में प्रवृत्त हूँ। हे वीरभद्र! तुम मुझको मृत्यु की भी मृत्यु जानो; ये देवता भी मेरी कृपासे जी रहे हैं॥

वीरभद्र का क्रोधित होना और शरभ अवतार का प्रादुर्भाव

नृसिंह जी की अहंकारपूर्ण इन बातों को सुनकर श्री वीरभद्र बोले क्या आप संहारकर्ता, पिनाकधारी विश्वेश्वर (शिव)-को नहीं जानते हैं? गलत बात विवाद करने से केवल आपका विनाश होगा । अपने आत्मा के द्वारा आत्मा को रोक लो , नहीं तो मृत्यु तुम्हारे ऊपर गिरेगी , , इस प्रकार सब कुछ सोचकर अपने रूपको पूर्णरूप से समेट लीजिये अन्यथा महा भैरवरूपी रुद्र के क्रोध का वह शरभ रूप आप पर मृत्यु बनकर उसी प्रकार गिरेगा, जैसे पर्वत वज्र गिरता है


वीरभद्र के इस प्रकार कहने पर , नृसिंह क्रोध से व्याकुल होकर गरजने लगे और तीव्र वेग से वीरभद्र जी को पकड्ने का प्रयास करने लगे | इसी बीच विपक्ष में भय उत्पन्न करने वाला, महाभयंकर, गगनव्यापी तथा दुर्धर्ष शिव-तेज उत्पन्न हुआ। उस क्षण वीरभद्र जी का जो रूप दिखायी पड़ा; वह न सुवर्णमय था, न चन्द्रमासे उत्पन्न था, न सूर्यसे उत्पन्न था, न अग्निसे उत्पन्न था, न विद्युत्‌ के समान था और न चन्द्रके तुल्य था। वह शिवसे सम्बन्धित अनुपम रूप था। उस समय सभी तेज उस शिव-रूप में विलीन हो गये; और शरभ नृसिंह-ये दो व्यक्तरूप प्रकट हुए॥


वह रूप भयंकर आकृतिवाला तथा रुद्र के विशिष्ट चिह्नों से युक्त प्रकट हुआ। सभी देवताओं के देखते-देखते वे शिव रूप हजार भुजाओं वाले,हो गए , वह जटाधारी, और सिरपर अर्धचन्द्र धारण किये हुए थे , उनका आधा शरीर पशु रूप में था , वह दो पंखों से तथा चोंच से युक्त हो गये। उनके दाँत विशाल तथा अति तीक्ष्ण थे। वे नीलकंठ थे तथा भयंकर तथा गम्भीर ध्वनि कर रहे थे। उनके तीनों नेत्र क्रोध से फैले हुए विशाल आग के गोले के समान हो गए

शरभ और नृसिंह का युद्ध

उन शरभ रूप को देखते ही नृसिंह जी का बल तथा पराक्रम नष्ट हो गया।। इसके बाद हर रूप शरभ ने अपने पंखों से उनके पैरों अपने पुंछ से बांधकर और अपने भुजाओं से उनके बाहु मंडलों को कस लिया , और इसी प्रकार शरभ नृसिंह जी को लेकर आकाश में उड़ गए , उनके पीछे आकाश में देवता और महर्षि भी गए , उन शरभ द्वारा परवश निसहाय दशा में ऊपर ले जाते हुए हाथ जोड़कर नृसिंह जी ने परमेश्वर शिव की स्तुति की, नृसिंह जी -ने एक सौ आठ अमृतमय नामों से शरभरूप ईश्वर (शिव)-को स्तुति करके पुन: उनसे प्रार्थना कौ

हे परमेश्वर! जब-जब अति अहंकार से दूषित अज्ञान मुझमें उत्पन्न हो, तब-तब आप उसे दूर करें । इस प्रकार शंकर से प्रार्थना करते हुए वे नृसिंह प्रसन्न हो गये; तब वीरभद्र जी ने कहा–! आप वास्तवमें अशक्त हैं और जीवनके अन्तमें पराजित हुए हैं।’ इसके बाद वीरभद्र जी ने क्षणभरमें ही [नूसिंह रूपधारी] विग्रह को बचे हुए मुख वाला करके शेष विग्रह से त्वचा खींचकर उन्हे मात्र हड्डियों से युक्त कर दिया और इस प्रकार बह विग्रह अति श्वेत वर्णवाला हो गया॥

देवताओं का शरभ अवतार को शांत करना

तब वहाँ सभी देवतागनों ने मिलकर प्रसन्नचित होकर वीरभद्र जी की स्तुतु की ,
देवता बोले-हे वीरभद्र! ब्रह्मा आदि हम सभी देवता आपकी दृष्टिसे उसी प्रकार जीवित हैं, जैसे वृक्ष मेघसे जीवन प्राप्त करते हैं, जिसके भयसे अग्नि जलती है, साक्षात्‌ सूर्य उगता है, और वायु बहती है , वह आप ही हैं, आप हमारे परमेश्वर हैं । आपके अन्त नहीं है-ऐसा जानिये, हे भगवन्‌! कभी भी हत न होने वाले महान्‌ बलसे युक्त आप यहाँ पर हम लोगोंकी रक्षा कीजिये


तत्पश्चात्‌ [वीरभद्र ]-ने उन देवताओं तथा प्राचीन ऋषियोंसे कहा–जैसे जल में जल, दूध में दूध तथा घृतमें घृत डाले जानेपर एक हो जाता है; वैसे ही विष्णु जी शिवमें लीन हैं, इन में कोई अंतर नही, यह ही नृसिंह रूप हैं जो की दर्प सहित महाबलवान हैं , यह महाबली नृसिंह , विश्व के संहारकर्ता के द्वारा कार्य करने के लिए बनाया गया है , यह पूजनीय हैं ,

शरभ अवतार पर हमारा विडियो अवश्य देखें

महाबली वीरभद्र इतना कहकर सब भूतों द्वारा देखते देखते स्वयं वहाँ अन्तर्धान हो गए , तब से शंकर नृसिंह के चरम को वस्त्र रूप में धारण करते हैं अर्थात नृसिंह कृत्तिवसन हो गए , शंकर जी मुंडमाला में सिंह का मुंड मुख्य मुंड हो गया और मणि के रूप में शोभा पाने लगा , उसके बाद विस्मय से प्रसन्न नेत्र देवतागन आतंक से मुक्त हो कर इन कथा को कहते हुए अपने स्थान को वापिस चले गए ,


यह वृतांत हमने लिंग पुराण के अध्याय 96 से लिया है , भागवत पुराण तथा विष्णु पुराण में प्रह्लाद स्वयं ही नृसिंह जी के क्रोध को शांत करते हैं, परंतु इस कथा में शरभ अवतार ने ऐसा किया, यह बात हम पहले ही स्पष्ट कर रहे हैं की , विभिन्न पुरानों में एक घटना विभिन्न प्रकार से घटित हुई है , और इन में अंतर आ जाता है , यह कल्प भेद के कारण होता है , जय श्री हरी , जय भोलेनाथ