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शत्रुघ्न की अनसुनी कहानी | क्या शत्रुघ्न भी श्रीराम के समान शक्तिशाली थे | Was Shatrughan as powerful as Rama?
श्री राम और लक्ष्मण जी प्राकरम से तो सब अवगत हैं, परंतु उनके भाई शत्रुघ्न का बल और पराक्रम ऐसा था जिसे सुन आप भी अचंभित हो जाएंगे, आखिर कितने शक्तिशाली थे शत्रुघ्न, जब श्री राम वनवास में थे तो उनके जीवन में क्या घट रहा था इसका ज्ञान कम ही लोगों को है, आइये विस्तार से जानते हैं शत्रुघन्न जी की अनसुनी कहानी को
शत्रुघ्न का जन्म कैसे हुआ, किसके अवतार थे वे
वाल्मीकि रामायण बाल कांड सर्ग 18 के अनुसार, इक्ष्वाकु वंश को बढ़ाने वाले भगवान विष्णु का आधा भाग कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। सत्य पराक्रमी भरत, कैकई के गर्भ से उत्पन्न हुए, भरत विष्णु भगवान का चतुर्थांश थे और सभी गुणों से युक्त थे। सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न उत्पन्न हुए, ये दोनों विष्णु जी के अष्टमांश थे और सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र चलाने की विद्या में कुशल शूरवीर थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ये चारों भगवान विष्णु के ही अवतार थे। इन चारों का नामकरण संस्कार वशिष्ठ जी ने किया था। सभी राजकुमार परम ज्ञानी और सर्वगुण सम्पन्न थे, तथापि उनमें महातेजस्वी श्रीराम चंद्र जी ही थे।
पद्मा पुराण के अनुसार, शत्रुघ्न सुदर्शन चक्र के अंश से प्रकट हुए थे। गर्ग संहिता, नारद पुराण, स्कन्द पुराण और आदि रामायण के अनुसार शत्रुघन स्वयं भगवान विष्णु के अनिरुद्ध व्यूह हैं। राजा जनक के भाई कुशध्वज की पुत्रियों के साथ भरत और शत्रुघन की शादी रचाई गई थी। हालांकि वाल्मीकि रामायण में उन दोनों कन्याओं का नाम नहीं है, परंतु रामचरितमानस में भरत की पत्नी का नाम मांडवी और शत्रुघन की पत्नी का नाम श्रुतकीरति बताया गया है।
श्रीराम की अनुपस्थिति शत्रुघ्न ने संभाली अयोध्या
भगवान राम के वनवास चले जाने के उपरांत, भरत को अयोध्या का कार्यभार सौंपा गया। श्री राम की चरणपादुकाओं के साथ भरत अयोध्या के पास बसे नंदीग्राम में ही रहते थे। जब भरत अयोध्या को चलाने में व्यस्त थे, उस समय युवा शत्रुघ्न पर ही राज्य की सम्पूर्ण सुरक्षा का भार था और उन्होंने इस कार्य को सफलतापूर्वक निभाया। उन्होंने आसपास के राज्यों से युद्ध करते हुए 14 वर्षों तक अयोध्या की रक्षा की। 13 साल तो उनके युद्धभूमि में ही बीत गए। साथ ही, राम, लक्ष्मण और भरत की अनुपस्थिति में, शत्रुघ्न ही अपनी तीनों माताओं के लिए एकमात्र सांत्वना बने रहे।
शत्रुघन ने दिया था मंथरा और कैकई को दंड
जब श्री राम के वियोग में राजा दशरथ की मृत्यु हो गई थी, तब तेरहवें दिन का कार्य पूर्ण करके वहाँ शोकसंतप्त शत्रुघ्न, भरत जी से बोले, “श्री राम एक स्त्री के द्वारा वन में भेज दिए गए, यह कितनी खेद की बात है। लक्ष्मण जी तो बल सम्पन्न हैं, उन्होंने भी कुछ नहीं किया। मैं पूछता हूँ, उन्होंने पिता को कैद करके भी श्री राम को इस संकट से क्यों नहीं छुड़ाया?” जब शत्रुघ्न इस प्रकार कह रहे थे तो उस समय मंथरा वहाँ पर आई। वह राजरानियों के पहनने योग्य विविध वस्त्र धारण करके, विभिन्न आभूषणों से साज-धजकर वहाँ आई थी।
उसे देखकर शत्रुघन बोले, “इस पापिनी ने मेरे भाइयों तथा पिता को जैसा दु:ख पहुँचाया है, अपने उस क्रूर कर्म का वैसा ही फल यह भी भोगे।” ऐसे कहकर शत्रुघ्न ने मंथरा को बलपूर्वक पकड़ लिया और उसे जमीन पर घसीटने लगे। उस समय कैकई उसे छुड़ाने के लिए आईं। तब शत्रुघ्न ने उन्हें भी धिक्कारते हुए रोषपूर्वक फटकारा, और उनसे कहा, “अगर श्री राम मुझे मातृघाती समझकर मुझसे घृणा करने लगेंगे तो मैं भी इस दुष्ट आचरण करने वाली पापिनी कैकई को मार डालता।” अंततः भरत जी के कहने पर शत्रुघ्न शांत हुए थे।
शत्रुघ्न द्वारा लड़े गए युद्ध और उनका पराक्रम
हालांकि रामायण के लंका युद्ध में उनकी भूमिका नहीं थी, परंतु उन्होंने अयोध्या की रक्षा करते हुए कई युद्ध लड़े जिनका वर्णन रामायण के उत्तरकाण्ड और अन्य कई पुराणों में किया गया है। आइये विस्तार से जानते हैं शत्रुघ्न का, एक योद्धा के रूप में कैसा प्रदर्शन था।
शत्रुघ्न और लवणासुर का युद्ध
एक समय श्री राम के दरबार में च्यवन आदि ऋषियों का शुभागमन हुआ। वहाँ श्रीराम जी ने उनका सत्कार करके उनके अभीष्ट कार्य को पूर्ण करने की प्रतिज्ञा कर ली। तब उन ऋषियों ने पूर्वकाल के एक महान दैत्य मधु के बारे में श्री राम को बताया। मधु ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। तब महादेव ने प्रसन्न होकर मधु को एक शूल दिया था।
मधु ने तब महादेव से यह भी माँगा था कि यह परम उत्तम शूल मेरे वंशजों के पास भी सदा रहे। परंतु भगवान शिव नहीं माने और उन्होंने कहा कि तुम्हारे किसी एक पुत्र के पास यह शूल रहेगा। जब तक शूल तुम्हारे पुत्र के हाथ में रहेगा, तब तक वो समस्त प्राणियों के लिए अवध्य बना रहेगा। उन ऋषियों ने बताया कि उस मधु का पुत्र लवण है, अपने शक्तिशाली शूल को अपने पुत्र लवण को सौंपकर वह स्वयं समुद्र में रहने के लिए चला गया। अब वह दुष्ट उस शूल के प्रभाव से तीनों लोकों को विशेषतः तपस्वी मुनियों को बड़ा संताप दे रहा है।
तब श्री राम ने शत्रुघन से कहा कि तुम मधु के पुत्र पापात्मा लवणासुर को मारकर धर्मपूर्वक वहाँ के राज्य का शासन करो। प्रस्थान से पहले श्री राम ने शत्रुघ्न को एक दिव्य अमोघ बाण भी दिया। तदनंतर शत्रुघ्न अपनी सेना लेकर मधुपुरी की ओर निकल पड़े। जब वे मधुपुरी पहुँचे, तो उस समय लवणासुर आहार के लिए अपने नगर से बाहर गया था। तब शत्रुघन मधुपुरी के द्वार पर ही डट गए।जब लवणासुर लौटा, तो पहले उनका वहीं द्वार पर रोषपूर्ण संवाद हुआ और फिर उनका युद्ध आरंभ हो गया। उस दैत्य ने एक बड़ा सा वृक्ष उठाकर शत्रुघ्न की छाती की ओर चलाया, परंतु शत्रुघ्न ने अपने बाणों से उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए
फिर उन्होंने लवणासुर पर बाणों की झड़ी लगा दी। परंतु उन बाणों से वह दैत्य तनिक भी विचलित नहीं हुआ। तब उस बलशाली दैत्य ने पुनः एक विशाल वृक्ष उठाया और उसे शत्रुघ्न के सिर पर दे मारा। उसकी चोट से शत्रुघ्न को मूर्छा आ गई। उन्हें पृथ्वी पर गिरा देख, लवण ने समझा कि यह मर गए। इसलिए अवसर मिलने पर भी वह राक्षस अपने घर से वह महादेव का शूल लेने नहीं गया। बल्कि शत्रुघ्न को सर्वथा मरा समझकर वह अपनी भोजन सामग्री एकत्रित करने लगा।
दो ही घड़ी में शत्रुघ्न को होश आ गया और उन्होंने तुरन्त उस अमोघ बाण को अपने धनुष पर चढ़ाकर उसे लवणासुर के वक्षस्थल में चलाया। वह बाण उस राक्षस के हृदय को विदीर्ण करके पुनः शत्रुघ्न जी के पास लौट आया। इस प्रकार शत्रुघ्न के हाथों लवणासुर मारा गया और भगवान शिव का अमोघ शूल सब देखते ही देखते महादेव के पास वापस लौट गया। तदंतर देवताओं से वरदान पाकर शत्रुघ्न ने उस मधुपुरी को बसाया और उस पर शासन करने लगे और फिर बारहवें वर्ष में वहाँ से श्रीराम जी के पास जाने का विचार किया।
श्री राम के अश्वमेध यज्ञ में शत्रुघन की भूमिका
पद्मा पुराण, पाताल खंड के अनुसार, जब रावण वध के उपरांत श्री राम जी का अयोध्या में आगमन हुआ, तो महर्षि अगस्त्य की सलाह पर श्री राम ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। जब यज्ञ संबंधी अश्व छोड़ा गया, तो उसकी रक्षा के लिए श्री राम ने शत्रुघ्न को नियुक्त किया।
घोड़ा आगे बढ़ा तो कई राजाओं ने उसे बांधने का प्रयास किया, परंतु उन्हें शत्रुघन के सेनापतियों ने ही पराजित कर दिया। एक समय पाताल निवासी विद्युन्माली नामक राक्षस, जो तारकासुर का मझला पुत्र था, उसने अपने छोटे भाई उग्रदंष्ट्र और अन्य निशाचर साथियों के साथ अश्व को पकड़ लिया।
शत्रुघन के सेनापति राक्षसों से पराजित हो गए, तब स्वयं शत्रुघन उनसे युद्ध करने आए। वहाँ एक भीषण युद्ध हुआ। अंत में विद्युन्माली ने शत्रुघन पर पाशुपतास्त्र का प्रयोग किया, जिसे शत्रुघन ने नारायणास्त्र से शांत किया। जब विद्युन्माली ने शक्तिशाली त्रिशूल उठाया, तो शत्रुघ्न ने बाण से उसकी भुजा और फिर मस्तक काट दिया। अपने भाई को मारा गया देख उग्रदंष्ट्र क्रोध में भरकर शत्रुघ्न पर टूट पड़ा, परंतु शत्रुघन ने बाण से उसका भी मस्तक काट दिया और अश्व को उन राक्षसों से छुड़ा लिया।
घोड़ा वीरमणी के राज्य में पहुंचा, तो वहां बड़ा भीषण युद्ध हुआ, जिसमें हनुमान जी, वीरभद्र जी और स्वयं भगवान शिव आए। वीरमणी को भगवान शिव का वरदान था। वहां शत्रुघन का भगवान से प्रलयंकारी युद्ध हुआ, जो 11 दिनों तक चला। अंततः शिव जी के प्रहार से शत्रुघ्न मूर्छित हो गए। शत्रुघ्न को मूर्छित देख स्वयं हनुमान जी महादेव से युद्ध करने आए।
अंत में उस घोड़े को लव और कुश ने बांध लिया, जिसे छुड़ाने के लिए शत्रुघ्न सहित हनुमान जी को बड़े यत्न करने पड़े। शत्रुघ्न ने लव को बाणों से मूर्छित कर दिया, परंतु अंततः विजय लव और कुश की हुई। सीता जी के प्रभाव से शत्रुघ्न और उनके अनेक सैनिकों की जीवन रक्षा हुई।
शत्रुघ्न की मृत्यु कैसे हुई
प्रभु श्री राम, ने पृथ्वी पर 11,000 वर्षों के पूर्णतः धर्ममय शासन को पूर्ण करने के बाद, सरयू नदी में प्रवेश किया और अपने वास्तविक और शाश्वत महाविष्णु रूप में लौट आए। भरत और शत्रुघन ने उनका अनुसरण किया और वे भी सरयू नदी में प्रवेश कर परमधाम चले गए वे सभी महाविष्णु में लीन हो गए, जय श्री राम