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हिन्दू धर्म के अनुसार 9 सबसे शक्तिशाली तांत्रिक विद्याएँ | Is Tantrik vidya more powerful than weapons ?
हिंदू धर्म की रहस्यमयी परंपराओं में तंत्र मंत्र और जादू का विशेष स्थान है। क्या आप जानते हैं, वशीकरण, इंद्रजाल और मारीकरण आदि जैसी प्राचीन तांत्रिक विद्या सिर्फ मिथक नहीं, बल्कि गूढ़ विज्ञान हैं? और एक बार किसी पर प्रयोग में लाने से इसका ऐसा परिणाम निकलता जिसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते।
Table of Contents
क्या है तांत्रिक विद्या
तंत्र विद्या या तांत्रिक विद्या एक ऐसी विद्या है जो प्रयोग करने के साथ ही उसी क्षण अल्प समय में ही सिद्धि प्रदान करती है। इस विद्या के महामंत्र, कलयुग में कीलन से मुक्त हैं। इन तंत्र-मंत्रात्मक मंत्रों की साधना के लिए ना तिथि, ना नक्षत्र, ना कोई विशेष नियम, ना वार ना व्रत और ना होम का नियम है, यह समय आदि से मुक्त हैं। यह विद्या उसी को मिलती है जो गुरु भक्त है।
दत्तात्रेय तंत्र नामक ग्रंथ के अथ प्रथम पटल के अनुसार, यह विद्या भगवान शिव द्वारा ही रचित है। इस में महादेव दत्तात्रेय जी से कहते हैं के जिस की गुरु के प्रति भक्ति-श्रद्धा और उनके वचनों पर विश्वास नहीं उसे यह विद्या नहीं देनी चाहिए।
तांत्रिक विद्या पर आधारित ग्रंथ
तंत्र शास्त्र मानव जीवन के यथार्थों से अनुप्राणित हैं, यह शास्त्र कालांतर की असंख्य दर्शन-पद्धतियों के स्त्रोत हैं। तंत्र शास्त्र पर आधारित बहुत से ग्रंथ हैं जैसे की रुद्रयामल तंत्र, विज्ञान भैरव तंत्र, दत्तात्रेय तंत्र, कामाख्या तंत्र, महानिर्वाण तंत्र, कुब्जिका तंत्र आदि। तंत्र शास्त्र के अनुसार सबसे शक्तिशाली तांत्रिक विद्याएँ कौन सी हैं, और उनका विस्तृत प्रभाव क्या होता है, कैसे और कौन उसे सिद्ध कर सकता है तथा एक बार किसी पर उन विद्याओं का प्रयोग हो जाने पर उस मनुष्य के साथ क्या होता है, तांत्रिक विद्या के बारे में और भी विस्तार से जानने के लिए इस लेख के अंत तक बने रहें
तांत्रिक विद्या / तंत्र विद्या के प्रकार
दत्तात्रेय तंत्र के अनुसार, सम्पूर्ण तंत्र विद्या में मारण, मोहन, स्तंभन, विद्वेषन, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, इंद्रजाल, यक्षिणी साधन आदि यह सभी विद्याएँ सम्हालित हैं।
बृहद इंद्रजाल के अनुसार, एक समय रावण ने भगवान शिव जी की बड़ी तपस्या की, भोले शंकर उससे बहुत प्रसन्न हुए। रावण बोला, हे देवाधिदेव, अपने चरणों में दास का प्रणाम स्वीकार करें, कृपया क्षणमात्र में सिद्धि प्रदायनी महान तंत्र विद्या का वर्णन करिए। रावण की प्रार्थना से प्रसन्न होकर महादेव जी ने अनेक प्रकार की इन्द्र्जालिक तांत्रिक और मांत्रिक विद्याओं का वर्णन किया, जिसका उल्लेख अनेकों ग्रंथों में किया गया है।
महादेव जी ने तांत्रिक विद्या के बारे में बताया की मनुष्य की साधना से पैदा हुई शक्ति अस्त्रों की शक्ति से कई गुणी तेज और विशाल होती है। उसकी सिद्धि से कोई भी शक्ति मनुष्य का कुछ नहीं बिगाड़ पाती। मंत्रों का प्रयोग सैकड़ों मील की दूरी से भी किया जा सकता है।
तांत्रिक विद्या / तंत्र विद्या के कर्म
तांत्रिक विद्या के षट्कर्म (छः प्रकार के कर्म) निम्नलिखित हैं:
- शांति कर्म: जिस कर्म के प्रयोग करने से रोग, ग्रहकष्ट एवं बुरे कर्मों की शांति होती है।
- वशीकरण: जिस कर्म के करने से प्राणी मात्र अपने वशीभूत हो जाए अथवा किसी को वश कर सके, उसे वशीकरण कहते हैं। इस क्रिया द्वारा स्त्री पुरुष आदि जीवधारियों वश में करके कर्ता की इच्छानुसार कार्य लिया जाता है।
- स्तंभन: जिस कर्म के प्रयोग से किसी चलती हुई चीज़ को रोक दिया जाये, वह स्तंभन कहलाती है। इस क्रिया के द्वारा समस्त जीवधारियों को अवरोध किया जाता है।
- विद्वेषन: जिस कर्म द्वारा दो विभिन्न प्राणियों में विरोध एवं वैमनस्यता उत्पन्न की जाये, उसे विद्वेषन कहते हैं। इस क्रिया द्वारा प्रियजनों की प्रीति, परस्पर की मित्रता एवं स्नेह नष्ट किया जाता है।
- उच्चाटन: जिसके द्वारा प्राणी का मन उच्चाटन किया जाये, वह जहां है वहाँ से भागने को, विदेश से घर या घर से विदेश जाने को आतुर होवे, उसे उच्चाटन कहते हैं। इस कर्म के करने से जीवधारियों की इच्छाशक्ति को नष्ट करके मन में अशांति, उचाट उत्पन्न की जाती है और मनुष्य अपने प्रियजनों को छोड़कर खिन्नता पूर्वक अन्यत्र चले जाता है।
- मारण: जिस कर्म के द्वारा किसी भयंकर शत्रु के प्राणों का अपहरण किया जा सके, उसे मारण कहते हैं। इस क्रिया के करने इच्छानुसार किसी भी जीव की असामयिक मृत्यु संभव है। यह प्रयोग अत्यंत जघन्य होने के कारण वर्जित है।
षट्कर्मों की देवियाँ:
- शांति कर्म की देवी रति हैं, रति को कामदेव की पत्नी माना गया है।
- वशीकरण की देवी सरस्वती हैं, वीणापाणि मराल वाहिनी जिनसे सभी नीचे हैं।
- स्तंभन की देवी विष्णु-प्रिया लक्ष्मी जगदंबा हैं।
- विद्वेषन की देवी ज्येष्ठा हैं।
- उच्चाटन की देवी महिषासुर मर्दनी असुर विनाशिनी देवी दुर्गा हैं।
- मारण की देवी स्वयं महाकाली हैं।
तांत्रिक विद्या / तंत्र विद्या के 9 प्रकार के प्रयोग
षट्कर्मों के बाद आइये अब जानते हैं आइये अब 9 प्रकार के प्रयोग के बारे में जानते हैं। 9 में 6 की हमने पहले ही व्याख्या की है, बाकी तीन के बारे में जानते हैं:
मोहन तंत्र प्रयोग: जिस कर्म के द्वारा किसी स्त्री या पुरुष को अपने प्रति मुग्ध करने का भाव निहित हो, वो ‘मोहनकर्म’ कहलाता है। मोहन अथवा सम्मोहन यह दोनों प्रायः एक ही भाव को प्रदर्शित करते हैं। निष्ठुर, विरोधी, विरक्त, प्रतिद्वंदी अथवा अन्य किसी को भी अपने अनुकूल, प्रणयी और स्नेही बनाने के लिए मोहन कर्म का प्रयोग किया जाता है।
यक्षिणी साधन: यक्षिणी सिद्ध हो जाने से कार्य बड़ी सरलता पूर्वक हो जाता है और बुद्धि तीव्र होती है। मनुष्य कठिन से कठिन समस्याओं को क्षण मात्र में पूर्ति कर सकता है, दूसरे के मन का गुप्त हाल पहचान सकता है, जो कुछ मुंह से कहता है सत्या होता है। अनेक प्रकार के चमत्कार यक्षिणी द्वारा दिखाकर मनुष्यों को अपने वश में कर लेती है, संसार में कोई उसका दुश्मन नहीं रहता, सब उसको मान और प्रतिष्ठा से बुलाते हैं। यक्षिणियों के कई प्रकार हैं और उनको सिद्ध करने के तरीके भी अलग-अलग हैं।
रसायन क्रिया: यह क्रिया तंत्र विद्या का एक महत्वपूर्ण और जटिल अंग है, जिसका उद्देश्य शरीर और आत्मा को शुद्ध करना और शक्तिशाली बनाना है। यह प्रक्रिया प्राचीन भारतीय तांत्रिक और आयुर्वेदिक परंपराओं में गहराई से जुड़ी हुई है। रसायन क्रिया का मुख्य उद्देश्य साधक को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाना है। यह क्रिया जीवन ऊर्जा (प्राण) को बढ़ाने, दीर्घायु, और अद्वितीय मानसिक और शारीरिक क्षमताओं को प्राप्त करने में मदद करती है।
निष्कर्ष:
इस लेख में हमने केवल तांत्रिक विद्या के बारे में जानकारी साझा की है। इन क्रियाओं के प्रयोग को हम नहीं बता सकते क्योंकि न ही हम इनमें दक्ष हैं और न ही इनका प्रदर्शन करना या सिखाना हमारा उद्देश्य है। तंत्र क्रियाएं बेहद गूढ़ और संवेदनशील हो सकती हैं, और उनका गलत प्रयोग घातक सिद्ध हो सकता है। इसलिए, कृपया इन विधाओं का अभ्यास स्वयं से न करें और योग्य गुरु की सलाह अवश्य लें। हमारी मंशा केवल जानकारी प्रदान करना है, न कि इन क्रियाओं को प्रोत्साहित करना।