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यमराज: मृत्यु, न्याय और कर्म के देवता – संपूर्ण रहस्य (क्या वे हैं सबसे शक्तिशाली?)
क्या आप जानते हैं कि मृत्यु के देवता यमराज आखिर कितने शक्तिशाली हैं? क्या वे ही समस्त देवों में श्रेष्ठ हैं? उन्हें ही क्यों मिला है प्राण हरने का उत्तरदायित्व? क्या वे भी पूजे जाते हैं? हमारे धर्म में उनका कितना महत्व है? ऐसे ही सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए इस वीडियो के अंत तक बने रहें। अगर आपको यह वीडियो पसंद आए तो इसे लाइक और हमारे चैनल को subscribe अवश्य करें!
हिंदू धर्म में, यमराज को केवल मृत्यु का देवता मानना उनकी भूमिका का एक छोटा सा पहलू है। वे वास्तव में न्याय, धर्म और कर्मों के विधान के संरक्षक हैं। उनकी सत्ता यमलोक, यानी पितृलोक तक फैली हुई है, जहाँ हर प्राणी अपने जीवन के अच्छे-बुरे कर्मों का लेखा-जोखा देता है। उनका नाम सुनते ही कई लोगों के मन में भय उत्पन्न होता है, लेकिन वे वास्तव में एक ऐसे देव हैं जो धर्म और न्याय के सिद्धांतों पर अटल रहते हैं।
इस विस्तृत ब्लॉग पोस्ट में, हम यमराज की उत्पत्ति से लेकर उनकी शक्तियों, उनके परिवार, और भारतीय धर्मग्रंथों में उनके महत्व तक, सभी पहलुओं पर गहराई से प्रकाश डालेंगे। हमारा उद्देश्य आपको यमराज के बारे में प्रामाणिक और विस्तृत जानकारी प्रदान करना है।
यमराज की उत्पत्ति: एक पौराणिक वंश वृक्ष
यमराज के जन्म की कथा हिंदू पुराणों में वर्णित है, जो उन्हें एक विशिष्ट और प्रतिष्ठित वंश से जोड़ती है:
- विष्णु पुराण के प्रथम अंश के अनुसार, सृष्टि के पालनकर्ता महाविष्णु जी से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई।
- ब्रह्मा जी से मरीचि, मरीचि से कश्यप।
- कश्यप से सूर्य देव (जो नवग्रहों में से एक हैं) और सूर्य देव से ही यम की उत्पत्ति हुई।
इस प्रकार, यमराज का संबंध सीधा भगवान विष्णु से जुड़ता है, जो उनकी दिव्यता और महत्व को दर्शाता है।
सूर्यपुत्र यम: संज्ञा और छाया की कथा
यमराज के जन्म से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण कथा है, जो उनके क्रोध और उनके श्राप के पीछे के कारणों को स्पष्ट करती है।
- भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा जी की पुत्री संज्ञा से हुआ था। संज्ञा अपने पति सूर्य देव के अत्यधिक तेज को सहन नहीं कर पाती थीं और उनकी ओर देखते ही आँखें बंद कर लेती थीं।
- इस पर सूर्य भगवान ने संज्ञा से कठोर वचन बोले: “मुझको देखकर जो तू सदैव नेत्र बंद कर लेती है, इसीलिए तू प्रजाओं को पीड़ा देने वाले पुत्र यम को उत्पन्न करेगी।”
- संज्ञा से उन्हें तीन संतानें हुईं: मनु, यम और यमी।
संज्ञा और छाया की कथा (हरिवंश पुराण के अनुसार):
- एक बार संज्ञा ने अपनी शक्ति से अपनी छाया को ही अपने समान नाम और रूपवाली बनाकर तैयार कर दिया। उन्होंने उस छाया को सूर्यदेव के साथ ही रहने का निर्देश दिया और उनके दोनों पुत्रों (मनु, यम) तथा कन्या (यमी) का ध्यान रखने को कहा।
- संज्ञा ने छाया से यह भी कहा कि उनके यहां से चले जाने की जानकारी कभी भी सूर्य देव को न हो।
- इसके उपरांत, संज्ञा अपने पिता विश्वकर्मा के निवास स्थान पर चली गईं। परंतु विश्वकर्मा जी ने उससे अपने पति के पास ही लौट जाने को कहा। तब वे कुरुदेश को चली गईं और एक घोड़ी का रूप धारण कर वहां तपस्या करने लगीं।
- वहीं दूसरी ओर, सूर्य देव (दिवास्पति) ने छाया को स्वयं संज्ञा समझकर उससे तीन संतानें उत्पन्न कीं: शनि देव, सावर्ण मनु और तपती (नदी) नामक कन्या।
- वह छाया अपने पुत्रों से अधिक स्नेह करती थी, परंतु वैसा स्नेह सूर्य और संज्ञा के पुत्रों से नहीं करती थी। मनु ने यह सह लिया, परंतु यम इसे न सह सके। यम बाल स्वभाव एवं रोष के वशीभूत हो छाया को पैर दिखाकर डांटने लगे। इस पर छाया ने कोप में भरकर यम को श्राप दे दिया कि “तुम्हारा यह चरण गिर जाए।”
- छाया-संज्ञा के उस शाप से भयभीत हो यम ने यह बात अपने पिता सूर्य से कह दी। वे पिता से बोले, “पिताजी! मुझे यह शाप न लगे। देखिये, माता को तो सब पुत्रों के प्रति समान रूप से स्नेहपूर्वक व्यवहार करना चाहिए, पर यह हम सबको छोड़कर सबसे छोटे से ही स्नेह व्यवहार करती है। यह हमारी माता कैसे हो सकती हैं, क्योंकि अयोग्य पुत्र के प्रति भी माता कभी अनुचित व्यवहार नहीं करती। बस मैंने पैर उठाया ही था, उनपर रखा नहीं था। आप मुझे क्षमा कर दें।” यम ने वहां माता से क्षमा मांगी, परंतु छाया नहीं मानी।
- तब सूर्यदेव यम से बोले, “पुत्र! मैं तुम्हारी माता के वचनों को लौटा नहीं सकता, पर कीड़े तुम्हारे चरण में से मांस लेकर पृथ्वीतल पर चले जाएंगे तब तुम्हें सुख मिलेगा, और तुम्हारी माता का कहा हुआ वचन भी सत्य हो जाएगा।”
- फिर सूर्य ने छाया से पूछा कि जब सभी पुत्र बराबर हैं तो तू एक से क्यों स्नेह करती है? तब छाया ने कोई उत्तर नहीं दिया और हँसती ही रह गई। तब भगवान सूर्य ने चित्त को एकाग्र करके योग के द्वारा सारा सत्य जान लिया, और जैसे ही छाया के केश पकड़ वो उसे श्राप देने लगे तो उसने सारा सत्य बता दिया था।
- तब भगवान सूर्य घोड़े का ही रूप धारण कर संज्ञा के समीप पहुंचे। और वहां उनके योग से उन दोनों को 2 अश्विनीकुमारों और रेवंत नामक पुत्र प्राप्त हुए। कुछ समय तक वैसे समय बिताने पर फिर वे संज्ञा को भी अपने निवास पर ले आए और संज्ञा तथा छाया दोनों के साथ रहने लगे।
यमराज: पितृलोक के स्वामी और कर्मों के न्यायाधीश
यमलोक, जिसे पितृलोक भी कहा जाता है, उसके स्वामी होने के कारण ही यमराज को यमराज कहलाया जाता है। यह लोक तीनों लोकों के मध्य में, अतल लोक के ऊपर स्थित है।
- न्याय के देवता: जब किसी भी प्राणी की मृत्यु होती है, तो वह सर्वप्रथम पितृलोक ही पहुंचता है। वहां यमराज के अनुयायी चित्रगुप्त उस प्राणी के अच्छे-बुरे कर्मों का विस्तार से वर्णन करते हैं।
- पुनर्जन्म का निर्धारण: उसी के आधार पर यम देव उस व्यक्ति का पुनर्जन्म होने से पहले यह निर्धारित करते हैं कि वह नरक में रहेगा या स्वर्ग में जाएगा। गरुड़ पुराण के अनुसार, यमलोक के चार द्वार हैं और वह यमपुरी 1000 योजन में फैली हुई है।
- यमधर्म: मार्कण्डेय पुराण के अध्याय उनासी के अनुसार, यमराज को जो धर्म में दृष्टि रखते थे और मित्र तथा शत्रु को समभाव से देखते थे, भगवान सूर्य ने प्रजाओं के धर्माधर्म का निर्णय करने के हेतु नियुक्त किया। न्याय प्रदान करने में सत्यपरायण होने के कारण यम को यमधर्म भी कहा जाता है। वह अपने दूतों द्वारा वहां लाए गए सभी प्राणियों को उनके सांसारिक जीवन के दौरान उनके गुणों और दोषों के अनुसार न्याय प्रदान करते हैं। उनके पास लोगों के गुणों और अवगुणों का आकलन करने और उन्हें उचित दंड देने की शक्ति है। पापियों को उनके पापों की प्रकृति और गंभीरता के अनुसार यमधर्म द्वारा विभिन्न नरकों में भेजा जाता है।
यमराज की शक्तियां और अस्त्र-शस्त्र
यमराज की शक्तियां उन्हें समस्त देवों में एक विशिष्ट स्थान दिलाती हैं, विशेषकर न्याय और मृत्यु के क्षेत्र में।
- मृत्यु के नियंत्रक: मृत व्यक्तियों को यमलोक तक ले जाने का कार्य यमदूत करते हैं। केवल दुर्लभ अवसरों पर ही यम स्वयं इस कार्य को करने आते हैं।
- सत्यवान-सावित्री प्रसंग: ऐसा ही एक उदाहरण है सत्यवान और सावित्री का, जब यमराज स्वयं सत्यवान के प्राण हरने आए थे। तब सावित्री ने बड़ी चतुराई से उनसे वरदान मांगकर अपने पति सत्यवान के प्राणों को बचा लिया था।
- मार्कण्डेय का प्रसंग: महात्मा मार्कण्डेय के प्राण हरने भी यमराज स्वयं गए थे। यह दर्शाता है कि कुछ विशेष आत्माओं के लिए यमराज स्वयं प्रकट होते हैं।
अस्त्र-शस्त्र: यमराज के पास अत्यंत शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र हैं जो उनकी शक्ति का प्रतीक हैं:
- महाभयंकर कालदंड: यह उन्हें ब्रह्मा जी से प्राप्त हुआ था। यह अजय कालदंड अगर एक बार किसी पर छोड़ दिया जाए तो शत्रु को नष्ट करके ही लौटता है। इसी कालदंड से ब्रह्मा जी ने रावण को बचा लिया था।
- यमपाश: यह एक शक्तिशाली पाश है जिसका उपयोग वे प्राणियों के प्राणों को हरने के लिए करते हैं।
- शक्तिशाली गदा: यह भी उनके प्रमुख अस्त्रों में से एक है।
क्या यमराज सभी देवों में श्रेष्ठ हैं? उनकी चुनौती और ब्रह्मा जी का हस्तक्षेप
रामायण के उत्तर कांड के अनुसार, यमराज की शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे कितने शक्तिशाली हैं और कैसे उन्होंने एक बार शक्तिशाली रावण को भी चुनौती दी थी:

- एक समय रावण त्रिलोकी विजय करने के उद्देश्य से हर ओर विचरण कर सबको पराजित कर रहा था। परंतु जब वह यमलोक पहुंचा और रावण ने यमराज को चुनौती दी, तो वहां यम के महाबली सैनिक रावण पर टूट पड़े।
- हजारों योद्धा एक साथ रावण के ऊपर शस्त्र प्रहार कर उसे पीड़ित करने लगे। रावण ने तब उनपर पाशुपातास्त्र चलाकर उन्हें भस्म कर दिया।
- तब यम अपनी गदा तथा पाश लेकर रावण पर टूट पड़े। लंबे समय तक उन दोनों का युद्ध चला पर कोई विजयी न हो सका।
- तदनंतर यमराज क्रोधित होकर कालदंड उठा लिया। जब यमराज, रावण पर कालदंड चलाने वाले थे, तब ब्रह्मा जी उनके समीप आकर बोले, “हे यमराज, तुम इस दंड को चलाकर इस राक्षस को न मारो, क्योंकि मैं इसको वरदान दे चुका हूं, अतः मेरी बात तुम्हें असत्य ना ठहरानी चाहिए।”
- ब्रह्मा जी के यूं कहने पर यमराज ने अपना कालदंड वापिस ले लिया। तब वहां रावण स्वयं को ही विजय घोषित कर, और अपने नाम का ढिंढोरा पिटवाकर यमपुरी से चल दिया।
यह घटना दर्शाती है कि यमराज अत्यंत शक्तिशाली हैं, और उनके कालदंड में इतनी शक्ति है कि वह रावण जैसे महाबली को भी नष्ट कर सकता था। ब्रह्मा जी का हस्तक्षेप ही रावण के जीवन को बचा पाया, जो यमराज की अदम्य शक्ति को प्रमाणित करता है। हालाँकि, “समस्त देवों में श्रेष्ठ” की उपाधि आमतौर पर ब्रह्मा, विष्णु या शिव को दी जाती है, लेकिन यमराज अपने क्षेत्र (न्याय और मृत्यु) में निश्चित रूप से सर्वोच्च और अत्यंत शक्तिशाली हैं।
क्या यमराज पूजे जाते हैं? धर्म में उनका महत्व
हाँ, यमराज की पूजा की जाती है, विशेषकर कुछ विशिष्ट अवसरों और उद्देश्यों के लिए:
- पितृ पूजा में महत्व: यमराज पितृलोक के स्वामी हैं, और इसलिए पितरों को शांति प्रदान करने और उनके मोक्ष की कामना के लिए यमराज की पूजा अप्रत्यक्ष रूप से की जाती है।
- भैया दूज: भाई-बहन के पवित्र त्योहार भैया दूज पर, बहनें अपने भाई की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए यमराज और यमुना (उनकी बहन) की पूजा करती हैं।
- दीपावली पर यम दीपदान: नरक चतुर्दशी (दीपावली से एक दिन पहले) पर यम दीपदान किया जाता है। घर के बाहर दीपक जलाकर यमराज को समर्पित किया जाता है ताकि अकाल मृत्यु से बचा जा सके और पितरों को शांति मिले।
- कर्मफल विधान: धार्मिक ग्रंथों में यमराज को ‘धर्मराज’ भी कहा गया है, क्योंकि वे धर्म के नियमों के अनुसार न्याय करते हैं। उनकी पूजा हमें अपने कर्मों के प्रति सचेत रहने और धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित करती है।
हमारे धर्म में यमराज का महत्व एक न्यायाधीश और अनुशासनकर्ता के रूप में है। वे भय के देवता से अधिक न्याय और संतुलन के प्रतीक हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि ब्रह्मांड में कर्मों का चक्र सुचारू रूप से चलता रहे। वे हमें सिखाते हैं कि हर कार्य का फल होता है और हमें अपने जीवन में धर्म का पालन करना चाहिए।
ऐसे युग जब यमराज नहीं थे!
हमारे पुराणों के अनुसार, कुछ ऐसे असाधारण युग भी आए जब पृथ्वी पर यमराज का कार्य बाधित हुआ या वे उपस्थित नहीं थे:
- कृतयुग में पृथ्वी पर भार: महाभारत के वन पर्व अध्याय 142 के अनुसार, एक ऐसा अवसर बीते हुए कृतयुग में आया था। उस समय पर पृथ्वी पर किसी की भी मृत्यु नहीं होती थी, जिस कारण पृथ्वी पर इतना भार बढ़ गया कि पृथ्वी 100 योजन नीचे को धंस गई। तब भूदेवी ने महाविष्णु जी से प्रार्थना की, तदनंतर विष्णु जी ने वराह अवतार धारण कर पृथ्वी को पुनः 100 योजन ऊपर उठा दिया। यह एक संकेत है कि मृत्यु का चक्र कितना आवश्यक है।
- मार्कण्डेय प्रसंग: एक और अवसर तब आया, जब मार्कण्डेय जी 16 वर्ष के हो गए तो यमराज ने अपने दूतों को मार्कण्डेय के प्राण निकालने के लिए भेजा। जब वे सफल न पाए, तो स्वयं यमराज वहां प्रकट हुए। वहां पहुंचते ही उन्होंने मार्कण्डेय की गर्दन में अपना कमंड डाला और उसे लिंगम से दूर खींचना शुरू कर दिया। जब मार्कण्डेय असहाय होकर रोने लगे,

- तो अपने भक्त की ऐसी दुर्दशा देखकर भगवान शिव अनायास ही मार्कण्डेय और यम दोनों को आश्चर्यचकित करते हुए उस लिंगम से वहां प्रकट हो गए। भगवान शिव ने क्रोध में अपने त्रिशूल से मृत्यु देव को भेद दिया और वे वहीं मूर्छित होकर गिर पड़े। यह दिखाता है कि देवों के हस्तक्षेप से यमराज का कार्य भी रुक सकता है।
- नैमिषारण्य में यम का यज्ञ: महाभारत के आदि पर्व में वर्णित एक कथा के अनुसार, एक बार यम ने नैमिषारण्य में बहुत लंबी अवधि तक चलने वाला यज्ञ आरंभ किया और वे वहीं व्यस्त हो गए। उस समय संसार में कोई मृत्यु नहीं हुई। सभी जीवित प्राणी अनिश्चित काल तक जीवित रहे। तब समस्त देवता इस समस्या को हल करने के अनुरोध के साथ यम के पास पहुंचे। यम ने तब अपना यज्ञ समाप्त किया और अपने कार्य पर लौट आए, जिससे मृत्यु का पृथ्वी पर पुनः आगमन हुआ।
ये घटनाएं यमराज की भूमिका की अनिवार्यता और उनके बिना सृष्टि के संतुलन में आने वाली बाधाओं को दर्शाती हैं।
धर्मराज और यमराज: क्या वे एक ही हैं?
यह एक सामान्य प्रश्न है कि क्या धर्मराज और यमराज एक ही हैं या अलग-अलग?
- कुछ पुराणों के अनुसार, धर्मराज और यमराज एक नहीं हैं, बल्कि अलग-अलग हैं। माना जाता है कि धर्मराज की उत्पत्ति ब्रह्मा जी से हुई थी, जबकि यमराज सूर्य और संज्ञा के पुत्र हैं।
- हालांकि, महाभारत का अध्ययन करें तो दोनों एक ही प्रतीत होते हैं। यमराज को ‘धर्मराज’ के नाम से भी पुकारा जाता है क्योंकि वे न्याय और धर्म के नियमों का पालन करते हुए ही प्राणियों के कर्मों का निर्णय करते हैं।
इस जटिलता को समझना महत्वपूर्ण है, लेकिन व्यवहार में और सामान्य हिंदू मान्यताओं में, यमराज को ही धर्मराज के रूप में स्वीकार किया जाता है, जो उनके न्यायपूर्ण स्वभाव को दर्शाता है।
निष्कर्ष
यमराज, जिन्हें मृत्यु के देवता के रूप में जाना जाता है, वे केवल प्राण हरने वाले ही नहीं, बल्कि न्याय, कर्मफल और धर्म के संरक्षक भी हैं। उनकी शक्तियां अतुलनीय हैं, विशेषकर उनका कालदंड। वे समस्त देवों में श्रेष्ठ भले ही न हों, लेकिन अपने कार्यक्षेत्र में वे अत्यंत शक्तिशाली और अनिवार्य हैं, जिनके बिना सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा।
omganpataye.com पर हमारा यह प्रयास है कि हम आपको हमारे धर्म के ऐसे गूढ़ रहस्यों और देवी-देवताओं के बारे में प्रामाणिक जानकारी प्रदान करें। यमराज का महत्व हमारे जीवन में उनके भय से नहीं, बल्कि उनके द्वारा स्थापित कर्म और न्याय के सिद्धांतों को समझने और उनका पालन करने से है। अपने जीवन में धर्म का पालन करें और सद्कर्मों का संचय करें।
हमें उम्मीद है कि इस पोस्ट ने आपके मन में यमराज से संबंधित सभी प्रश्नों के उत्तर दिए होंगे।
धन्यवाद, जय श्री राम!
